________________ जिन सूत्र भाग : 2 FESTI R योगासनों का अभ्यास आरंभ कर दिया और सालभर में वह योग लेकिन यदि अभी जीवन में कुछ भी संभावना शक्ति की थी, में दक्ष हो गया। घंटों शीर्षासन में खड़ा रहता। एक दिन मुल्ला अगर जीवन में अभी एक बूंद भी रस बचा था तो उस रस को भी की पत्नी से डाक्टर ने पूछा, योग के कारण नसरुद्दीन में कोई ध्यान में परिवर्तित करना है। उस रस को भी परमात्मा की खोज परिवर्तन आया? पत्नी ने कहा, हां एक दृष्टि से तो काफी में लगाना है। परिवर्तन आया है। अब वे सिर के बल खड़े होकर भी मजे में तो जल्दबाजी न करे। क्योंकि बहुत लोग भगोड़े हैं। अगर पूरी बोतल पी सकते हैं। उन्हें मरने का मौका मिल जाए तो वे कोई छोटे-से कारण से ही होगा! क्योंकि हम जैसे हैं, जैसे ही कोई नियम हमें मिला, हम | मर जाएंगे। कोई छोटी-मोटी बात, और वे मर जाएंगे। अहंकार उसे अपना रंगरूप दे देते हैं। वह नियम हमारे जैसा हो जाता है। को लगी कोई छोटी-मोटी चोट और वे मर बजाय इसके कि नियम हमें बदले, हम नियम को बदल लेते हैं। कल मैं पढ़ता था कि एक सर्कस के शेरों को सिखानेवाले रिंग इसलिए तो दुनिया में इतने वकील हैं। उनका कुल काम इतना मास्टर ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि एक शेर ने उसकी आज्ञा न है कि कानून जब बने तो वे अपराध के हिसाब से कानून को मानी। अब शेर...! आदमी भी होता तो भी ठीक था! उसने बदलने की चेष्टा करें। वे अपराध के रंग में कानून को रंगें। तो आज्ञा न मानी इससे उनका बड़ा भारी, आत्मसम्मान की हानि हो जितने कानून बढ़ते जाते हैं उतने वकील बढ़ते जाते हैं। क्योंकि गई। उन्होंने आत्महत्या कर ली। भद्द हो गई होगी क्योंकि अपराधी अपराध छोड़ने को राजी नहीं है। वह कहता है, कानून | सर्कस का मामला! वे चिल्लाते रहे होंगे, आवाज देते रहे होंगे। से तरकीब निकालो। वह कानून का ही उपयोग अपराध करने के शेर तो शेर! वह बैठा रहा होगा कि अच्छा चलो, देते रहो लिए कर लेता है। आवाज। / तुम्हारे भीतर भी है जिसको तुम बुद्धि मगर यह अहंकार को लगी चोट कोई आत्महत्या करने लायक कहो, तर्क कहो, मन कहो। तो नियम को समझना और मन की नहीं थी। हंसकार टाल जाना था। आदमी बड़ी छोटी-छोटी चालबाजी से सावधान रहना। बातों पर मरने को तैयार हो जाता है, यह खयाल रखना। तुमने महावीर कहते हैं, 'साधक को पग-पग पर दोषों की आशंका | भी कई दफे सोचा होगा कि मर ही जाओ। परीक्षा में फेल हो गए (संभावना) को ध्यान में रखकर चलना चाहिए।' कि इंटरव्यू में न आए, मर ही जाओ। चरे पयाइं परिसंकमाणो, जं किचिं पास इह मन्नमाणो। __ मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ऐसा आदमी खोजना कठिन है, जिसने छोटे-छोटे दोष को भी समझपूर्वक देखना चाहिए। ऐसा न जीवन में कम से कम दस बार आत्महत्या का विचार न किया कहे कि छोटा-सा दोष है, क्या हर्ज है, चल जाएगा। क्योंकि हो। छोटी-छोटी बात-पति से झगड़ा हो गया कि बस पत्नी छोटा बड़ा हो जाता है। छोटा बीज बड़ा वृक्ष हो जाता है। छोटा सोचने लगती है, कि क्या करें? केरोसिन डाल लें, कि गैस के कांटा आखिर में नासूर बन जाता है। चूल्हे में आग लगा लें, कि बिल्डिंग से कूद पड़ें, कि ट्रेन के नीचे छोटे दोष को छोटा न समझे। सावधान रहे। सो जाएं? जरा-जरा सी बात! लाभंतरे जीविय वूहइत्ता... मैं एक घर में रहता था। और मेरे पड़ोस में ठीक दीवाल से और जीवन का एक ही अर्थ है कि इससे महाजीवन का लाभ लगे हुए एक बंगाली प्रोफेसर रहते थे। अभी नया-नया मैं आया होता रहे। था और दीवाल बड़ी पतली थी, जैसी आजकल के मकानों की पच्चा परिण्णाय मलावंधसी... होती है। तो उनकी सब बातें मुझे सुनाई पड़ती थीं-न सुनना और अगर वह लाभ बंद हो जाए तो मौत को स्वेच्छा से चाहूं तो भी। पहले दिन...दूसरे दिन मैं थोड़ा हैरान हुआ। स्वीकार करे। लेकिन क्योंकि वह दूसरे दिन उन्होंने एकदम धमकी दी कि मैं जाकर मर तस्स ण कप्पदि भत्त-पइण्णं अणवट्ठिदे भये पुरदो। जाऊंगा। तो मेरी कोई ज्यादा पहचान भी नहीं थी। बस थोड़ा सो मरणं पत्थितो, होदि ह सामण्णणिव्विण्णो।। परिचय हुआ था। अब वे तो निकल भी गए घर से अपना छाता 562 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org