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________________ प्रेम के कोई गुणस्थान नहीं सकता। स्त्री का हो सकता है कि नहीं इस पर पूरा, किसी को अगर जैनों ने मल्लीबाई को मल्लीनाथ कहा, तो ठीक ऐसे ही कोई दावा नहीं कहने का; लेकिन इतनी बात पक्की है कि जेन | चैतन्य महाप्रभु को चैतन्यबाई कहा जा सकता है। वह स्त्रैण शास्त्र से तो नहीं हो सकता। क्योंकि जैन शास्त्र से स्त्री का मेल चित्त है। वह गौरांग का नाचता हुआ रूप!-जैसे राधा हो ही नहीं बैठ सकता। वह उनमें हृदय है ही नहीं। उसमें तो सभी गए। किसी ने ऐसी हिम्मत नहीं की। क्योंकि स्त्री को पुरुष पुरुषों का भी बैठ जाए मेल, यह भी कठिन मालूम होता है। बनाना तो आसान मालूम होता है। कहते हैं, 'खूब लड़ी मर्दानी तो जैन शास्त्रं ठीक ही कहते हैं कि स्त्री का मोक्ष नहीं हो वह तो झांसीवाली रानी थी। लेकिन किसी पुरुष को नामर्द सकता। क्योंकि जैन शास्त्र पुरुष मन की खोज है-तर्क, कहो तो झगड़ा खड़ा हो जाता है। चिंतन, मनन। प्रेम की खोज नहीं है। इसलिए एक बड़ी अनूठी पुरुषों की दुनिया है यह। यहां स्त्री को अगर पुरुष कहो तो घटना घटी। जैनों का एक तीर्थंकर-तेईसवां—एक तीर्थंकर मालूम होता है, प्रशंसा कर रहे हो। और अगर पुरुष को स्त्री स्त्री थी। नाम है मल्लीबाई। लेकिन जैनों ने मल्लीबाई को कहो तो लगता है निंदा हो गई। चूंकि पुरुष ने ही सारे मापदंड मल्लीबाई लिखना भी पसंद न किया। वे उसको मल्लीनाथ तय किए हैं। लिखते हैं। वह थी तो स्त्री, लेकिन बना दिया पुरुष। वे मानते | लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, यह बात गलत है। अगर मल्लीबाई नहीं कि मल्लीबाई स्त्री थी। वे कहते हैं, मल्लीनाथ। और मुझे मल्लीनाथ कही जा सकती है तो क्यों नहीं चैतन्य को चैतन्यबाई भी लगता है, वे ठीक कहते हैं। वह चाहे देखने में स्त्री रही हो, कहो? ज्यादा उचित होगा। ठीक-ठीक खबर मिलेगी। भीतर से पुरुष ही रही होगी। इसलिए नाम बदला तो ठीक ही | तो तुम ऊपर शरीर को आईने में देखकर तय मत कर लेना, किया। मल्लीबाई मल्लीनाथ ही रही होगी। हृदय तो नहीं रहा भीतर खोजबीन करना। अगर तुम हृदय की तरफ झुके हो तो तुम होगा। इसलिए बात तो ठीक ही लगती है। स्त्रैण हो। अगर तुम बुद्धि की तरफ झुके हो तो तुम पुरुष हो। जो पुरुष का चित्त तो तर्क की धार है, गणित का हिसाब है, विज्ञान मनोवैज्ञानिक मापदंड है वह हृदय और बुद्धि के बीच तय होगा। का फैलाव है। विश्लेषण उसका द्वार है। स्त्री का चित्त अलग हृदय का रास्ता सुगम है। और हृदय का रास्ता अत्यंत ढंग से धड़कता। हृदय, प्रेम, रस-'रसो वै सः'। स्त्री के उल्लासपूर्ण है। वहां कोई खंड, कोटियां, विभाजन नहीं हैं। लिए परमात्मा रस-रूप है, कृष्ण-रूप है। सत्य यानी प्रीतम। इसलिए महावीर तो कहते हैं, मेरी दृष्टि भेद-विज्ञान की है। सत्य यानी सिर्फ गणित का कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं। सत्य यानी और भक्त कहते हैं, हमारी दृष्टि अभेद-विज्ञान की है। हम एक जहां हृदय झुक जाए। को ही देखते हैं। अनेक में भी एक को ही देखते हैं। हमें एक ही किए दिल ने हरेक जगह तुझको सिजदे दिखाई पड़ता है। सभी रूप उसके मालूम होते हैं। सभी नाम जबीं ढूंढ़ती ही रही आस्ताना उसके मालूम होते हैं। रूप के कारण भक्त धोखे में नहीं पड़ता। हृदय झकता ही रहा। जहां गया वहीं अपने प्रीतम को खोज आकति के कारण धोखे में नहीं पड़ता। वह सभी आकतियों में लिया। और बुद्धि खोजती ही रही कि वह जगह कहां है, जहां मैं छिपे निराकार को देख लेता है। झुकू? बुद्धि खोज-खोजकर जगह नहीं पाती कि कहां झुकू और भक्ति को मैं कहता हूं, वह एक छलांग है। इसलिए और हृदय को बिना खोजे जगह मिल जाती है। हृदय की एक | भक्ति तो एक क्षण में भी घट सकती है। ज्ञान के लिए सदियां छलांग है। लग जाती हैं। तुम्हारी मर्जी! ज्ञान से भी लोग पहुंचते हैं। और जब मैं कह रहा हूं स्त्री-चित्त, तो तुम यह मत सोचना कि कुछ हैं, जो सीधी तरह से कान पकड़ना जानते ही नहीं। करोगे म तुम्हारे लिए नहीं। और तुम ऐसा भी मत भी क्या? वे चक्कर लगाकर, हाथ से सिर के पीछे से घूमकर सोचना कि तुम स्त्री हो तो जिन-सूत्र तुम्हारे लिए नहीं है। शरीर कान पकड़ते हैं। कुछ को अपने घर भी आना हो तो वे पहले से स्त्री और पुरुष होना एक बात है, चित्त से स्त्री और पुरुष होना सारी दुनिया का चक्कर लगाकर फिर घर आते हैं। अगर तुम बिलकुल दूसरी बात है। चलते ही रहो, चलते ही रहो तो जमीन गोल है, एक दिन अपने य? बद्धि खोज-खोजकर / हृदय की एक भाक्त साम र्जी। ज्ञान से भी लोग पहुचार 5331 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340157
Book TitleJinsutra Lecture 57 Prem ki Koi Gunsthan Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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