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________________ जिन सत्र भाग: 2 है, टी. बी. नहीं है। स्वास्थ्य की बस इतनी ही व्याख्या कर चित्त की दशा है। क्या छोड़ा यह मूल्यवान नहीं है, छोड़कर जो सकोगे? या कहोगे कि कुछ अपूर्व मुझे भरे है, कुछ लहरा रहा | मिलता है वही मूल्यवान है। जो मिलता है, उसे छोड़ने से नहीं है। कुछ मेरे रोएं-रोएं में कंप रहा है, जो सिरदर्द का अभाव ही | नापा जा सकता। नहीं है, जो किसी अनूठी ऊर्जा की मौजूदगी है। किसी परम या ऐसा समझो कि एक आदमी ने एक पैसा चुरा लिया और शक्ति का मेरे भीतर निवास है। | दूसरे आदमी ने करोड़ रुपये चुरा लिए। क्या करोड़ रुपये स्वास्थ्य विधायक है। इसलिए पूरब में जो स्वास्थ्य का विज्ञान | चुरानेवाला बड़ा चोर है? एक पैसा चुरानेवाला छोटा चोर है। है उसे हमने आयुर्वेद कहा है। पश्चिम का शब्द मेडिसिन, | तो फिर तुम समझे नहीं। मेडिकल साइंस बहुत दरिद्र है। मेडिसिन का मतलब होता है | चोरी तो बराबर है। एक पैसे की हो कि करोड़ रुपये की हो। सिर्फ औषधि। पश्चिम ने चुना मेडिकल साइंस-औषधि का चोरी में कोई मात्रा से फर्क नहीं पड़ता। एक आदमी ने एक पैसे विज्ञान: क्योंकि उनकी दष्टि में स्वास्थ्य का अर्थ है. बीमारी का | की चोरी छोड़ी। एक पैसा रास्ते पर पड़ा था, वह पड़ा रहा और न हो जाना। | निकल गया। और एक आदमी के रास्ते पर करोड़ रुपये पड़े थे, पूरब ने चुना आयुर्वेद : आयु का विज्ञान, जीवन का विज्ञान। | उसने करोड़ रुपये की चोरी छोड़ी। चोरी की संभावना थी, न सिर्फ औषधि नहीं है आयुर्वेद, औषधि से कुछ ज्यादा है। की। इन दोनों में कौन-सा बड़ा अचोर है? दोनों अचोर हैं। औषधि से तो इतना ही मालूम होता है, दर्द न रहा। लेकिन दर्द न अचौर्य चित्त की एक विधायक दशा है। रहने का अर्थ, आनंद हो गया? दर्द रहता तो आनंद में बाधा बारहवां गुणस्थान कहता है संसार नहीं हुआ, समाप्त हुआ। पड़ती जरूर, दर्द न रहा तो आनंद के लाने में सुविधा हो गई जैसे तुम किसी देश की सीमा पार करते हो, तो जो इस देश की जरूर; लेकिन दर्द का न होना ही आनंद की परिभाषा है? सीमा है, समाप्त होता है देश, वही दूसरे देश की शुरुआत है। बौद्ध बारहवें गुणस्थान को निर्वाण की परिभाषा मानते हैं, तो सीमा पर जो तख्ती लगी होती है, एक तरफ लिखा होता इसलिए वे आनंद की बात नहीं करते। वे कहते हैं, परम है-भारत समाप्त। दूसरी तरफ लिखा होगा है-चीन शुरू। अवस्था-दुख-निरोध। निर्वाण यानी दुख-निरोध; दुख न बारहवां गुणस्थान इस तरफ की खबर देता है-'संसार रहेगा। इससे आगे बात नहीं करते। उनसे पूछो, दुख न रहेगा समाप्त'; तेरहवां गुणस्थान उस तरफ की खबर देता यह भी कोई बात हुई ? रहेगा क्या फिर? होगा क्या फिर? है—'मोक्ष शुरू।' दोनों एक ही तख्ती पर होंगे। तख्ती की संसार न रहेगा, समझ में आ गया, लेकिन क्या मोक्ष की बस एक तरफ लिखा है-'संसार समाप्त'; दूसरी तरफ लिखा है इतनी ही परिभाषा है? फिर मोक्ष अपने आप में क्या है? अगर 'मोक्ष प्रारंभ।' दोनों में रत्तीमात्र फासला नहीं दिखाई पड़ता, पर संसार से ही परिभाषा हो सकती हो मोक्ष की, तो मोक्ष बड़ा लचर फासला बड़ा है। दोनों की सीमारेखा एक ही है। इसलिए जैन हुआ, बड़ा कमजोर हुआ, दीन हुआ, दरिद्र हुआ। जिसकी | शास्त्रों में भी खूब चिंतन चला है कि फर्क क्या है? परिभाषा भी संसार से ही करनी होती हो...। __ मेरे देखे बारहवां गुणस्थान इतना ही कहता है कि जो छोड़ने ऐसा समझो कि एक आदमी अमीर है, वह धन का त्याग कर योग्य था, छूट गया; जो मिटने योग्य था, मिट गया; जो व्यर्थ दे; और एक आदमी गरीब है, उसके पास बहुत कुछ नहीं है, था, असार था, उससे मुक्ति हुई। तेरहवां गुणस्थान कहता है: झोपड़ा है। वह अपने झोपड़े का त्याग कर दे। क्या तुम कहोगे वहीं रुकना नहीं हुआ, जो मिलने योग्य था, मिला; जो पाने कि अमीर का त्याग गरीब के त्याग से बड़ा है? योग्य था, बरसा। मेहमान घर आ गया। अगर त्याग धन का ही छोड़ना है तब तो निश्चित ही अमीर का | जैन सूत्रों में भी बात साफ है। बारहवें सूत्र की परिभाषा हैत्याग गरीब के त्याग से बड़ा है। क्योंकि गरीब ने झोपड़ा छोड़ा, णिस्सेसखीणमोहो, फलिहामलभायणदय-समचित्तो। अमीर ने महल छोड़ा। खीणकसाओ भण्णइ णिग्गंथो वीयराएहिं।। लेकिन त्याग धन का छोड़ना ही नहीं है। त्याग एक विधायक | 'संपूर्ण मोह पूरी तरह नष्ट हो जाने से जिनका चित्त 528 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340157
Book TitleJinsutra Lecture 57 Prem ki Koi Gunsthan Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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