________________ TRESS जिन सूत्र भाग : 24 HIMIRMIRRAIMIMITRA है। लेकिन यही तुम अपने बेटे से कह रहे हो कि बड़े हो जाओगे गिरेंगे। ये कुत्तों में भगवान नहीं है? कुत्ते यानी कुलपति बंगलोर तब जानोगे। के! इनमें भगवान नहीं है ? क्या जान लिया बड़े होकर? कौन-सा सत्य, कौन-सी संपदा यह उत्तर न हुआ। कुलपति ज्यादा साधु-चरित्र मालूम होते हाथ लगी? लेकिन बाप का अहंकार कैसे मान ले कि बेटा भी हैं। सीधा-सा निवेदन किया है कि आप जो चमत्कार करते हैं, ये ठीक कह सकता है? पति का अहंकार कैसे मान ले कि पत्नी चमत्कार हैं या केवल मदारीगिरी है? इसे हम जानने के लिए ठीक कह सकती है? पत्नी का अहंकार कैसे मान ले कि पति आपके निकट आना चाहते हैं। और आपसे प्रार्थना करते हैं कि ठीक कह सकता है? | आप हमें सत्य को खोजने में सहयोगी बनें। अहंकारों का संघर्ष है। सत्यों का कोई संघर्ष नहीं है। तो | इसमें कोई कुत्ता भौंका नहीं किसी पर। सत्य के खोजी को दुनिया में जो इतना धर्मों का विवाद है, शास्त्रार्थ है, यह सब तत्क्षण स्वीकार करना चाहिए। अगर सत्य है अहंकारों का शास्त्रार्थ है, इससे धर्म का कोई लेना-देना नहीं। अगर कुलपति और उनके आठ-दस मित्र आकर सत्य साईंबाबा धर्म तो विनम्र आदमी की खोज है, जो कहता है मुझे पता नहीं। के चमत्कार देखने को उत्सुक हुए हैं, शुभ है। हर्ज कहां है? पता ही होता तो मैं खोजता क्या? खोजने को क्या था? मुझे लेकिन हर्ज मालूम होगा क्योंकि न्यस्त स्वार्थ है, वेस्टेड इंटरेस्ट पता नहीं। अज्ञानी हं। खोज पर निकला हं। टटोलता हूं। कोई है। वह चमत्कार इत्यादि कुछ भी नहीं है, मदारीगिरी है। और भी बता दे कि सत्य क्या है, तो सुनूंगा, समझूगा, सदभाव से मदारीगिरी भी अति साधारण कोटि की है। सड़क पर चलते ग्रहण करूंगा, जांचूंगा, परलूँगा। शायद हो, शायद न हो। मदारी जो करते हैं वैसी है। कोई भी मदारी कर सकता है, कोई अनुभव तय करेगा कि क्या है। भी व्यवसायी जादूगर कर सकता है: वैसी है। लेकिन उसी में सत्य का खोजी विवादी नहीं होता। सत्यार्थी संवादी होता है, / सारा लाभ है, उसी में सारी प्रतिष्ठा है। विवादी नहीं। अगर एक बार यह सिद्ध हो गया कि यह राख शून्य से नहीं महावीर कहते हैं, पहला गणस्थान: मिथ्यात्व। जैसा है उसे | उतरती। कहीं शरीर के किसी हिस्से में छिपी रहती है, वहां से वैसा न देखना। जैसा है वैसा दिखाई भी पड़े तो भी पर्दे डाल उतरती है। एक बार यह सिद्ध हो गया कि ये स्विस घड़ियां जो रखना। जैसा है वैसा अनुभव में भी आने लगे तो अनुभव को भी प्रगट होती हैं, स्विजरलैंड से नहीं आतीं, स्मगलरों से खरीदी झुठलाना। न्यस्त स्वार्थ हैं हमारे। तुम अगर न्यस्त स्वार्थों की जाती हैं। एक बार यह सिद्ध हो गया तो सत्य साईंबाबा की कोई ओट से ही देख रहे हो तो फिर बड़ी अड़चन है। | स्थिति नहीं रह जाती। उसी पर तो सारा बल है। तो नाराजगी सत्य साईंबाबा ने कल बंगलोर विश्वविद्यालय के कुलपति पैदा होती है। और उनकी कमेटी को जो उत्तर दिया, उसमें उन्होंने कहा, कि | अन्यथा निमंत्रण शुभ था। स्वीकार कर लेना था। धन्यवाद कुत्तों के भौंकने से चांद-तारे गिर नहीं जाते। अब थोड़ा सोचने | देना था कि उत्सुक हुए, चलो अच्छा है। विश्वविद्यालय भी धर्म जैसा जरूरी है कि कुत्तों के भौंकने से चांद-तारे आकर ऐसा में उत्सुक होते हैं तो बहुत अच्छा है। सुशिक्षित, सुसंस्कृत लोग कहते भी नहीं कि भौंकते रहो, हम गिरेंगे नहीं। इतना कह दिया | धर्म की तरफ खोज करने निकलते हैं, बहुत अच्छा है। आओ, तो चांद-तारे भौंक गए। इतना कह दिया तो चांद-तारे गिर गए। | समझो। खोजें। फिर तय कौन करे कि चांद-तारे कौन हैं और कत्ते कौन हैं? | सत्य का खोजी तो सहयोग देगा। लेकिन सत्य की यह खोज सत्य साईंबाबा का यह वक्तव्य थोथे अहंकार का वक्तव्य है। | नहीं है। सत्य साईंबाबा का वक्तव्य असत्य साईंबाबा का एक तरफ चिल्लाए चले जाते हैं कि सभी के भीतर ब्रह्म का वास वक्तव्य है। यह इसमें सत्यता बिलकुल नहीं है। और फिर इसमें है। एक तरफ कहे चले जाते हैं कि सभी के भीतर भगवत्ता छिपा क्रोध है, गाली-गलौज है। कुत्ते...! यह बात ही बेहूदी विराजमान है। और जहां चोट अहंकार पर पड़नी शुरू होती है हो गई। अपने वक्तव्य में उन्होंने इसी तरह की बातें कही हैं, जो वहां तत्क्षण कहने लगते हैं कि कुत्तों के भौंकने से चांद-तारे नहीं सब गाली-गलौज हैं-कि चींटी समुद्र की थाह लेने चली है। 5101 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org