SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदह गुणस्थान है, कचरा मात्र। उसमें कुछ भी और नहीं है लेकिन तुम्हारी ऊर्जा गहरी लगाता है। ऐसे ही जल के ऊपर सतह पर नहीं तैरता तो व्यय होती ही है। रहता, डुबकी मारता है। गहरे में जाता है। सारी ऊर्जा एक ही मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी अपनी ऊर्जा का पंद्रह | दांव पर लगाता है। प्रतिशत से ज्यादा उपयोग ही नहीं कर पाता। पचासी प्रतिशत ऐसा ही ध्यानी भी–महावीर, या बुद्ध, या कृष्ण, या पतंजलि ऐसे ही खो जाती है। जिनके जीवन में तुम्हें कुछ घटनाएं घटती गहरी डूब लेते हैं तो हीरे-मोती बीन लाते हैं। हमारे पास भी दिखाई पड़ती हैं, कोई आइंस्टीन, कोई फ्रायड, जो जीवन में बड़े उतनी ही ऊर्जा है। ऊर्जा की मात्रा में जरा भी फर्क नहीं। जितनी सत्यों की खोज कर लाते हैं—चाहे विज्ञान के, चाहे मन के, महावीर को मिली उतनी तुम्हें मिली है। प्रकृति सबको बराबर चाहे धर्म के; उनमें और तुममें फर्क क्या है? ऊर्जा सबको देती है, मगर सभी बराबर उपयोग नहीं करते। मतौल में मिली है, लेकिन तम ऊर्जा को ऐसे जीसस एक कहानी कहते थे। एक बाप के तीन बेटे थे। तीनों ही बहाते रहते हो। योग्य थे, बुद्धिशाली थे। और बाप तय न कर पाता था कि एक वैज्ञानिक अपनी ऊर्जा को संयमित कर लेता है। वह | किसको अपना उत्तराधिकारी बना जाए। बड़ा धन था, बड़ी सोचता तो अपनी ही विज्ञान की बात सोचता है। सपना भी जमीन थी, बड़ा वैभव था। बाप चिंतित था. किसको चने। देखता है तो अपने ही विज्ञान का सपना देखता है। फिर उसने एक उपाय खोजा। उसने एक बोरे भर फूलों के मैडम क्यूरी को नोबेल प्राइज मिली सपने के कारण। जो हल किया सूत्र, वह उसने सपने में किया। जाग्रत रूप से तो वह तीन / हूं। जो बीज मैं तुम्हें दे जा रहा हूं, सम्हालकर रखना। इन पर साल से हल कर रही थी, वह हल नहीं होता था। लेकिन बहुत कुछ निर्भर है। तुम्हारा भविष्य इन्हीं पर निर्भर है। इन्हीं के सोते-जागते एक ही उधेड़-बुन थी। बस जगत में एक ही काम माध्यम से मैं अपने उत्तराधिकारी को चुनगा। इसलिए किसी था : उस सत्र को हल करना। गणित का कोई सवाल था, जो | भूल-चूक में मत रहना। मैं लौटकर आऊंगा तो बीज वापस अटका रहा था तीन साल से। जिस रात हल हुआ, उस रात वह चाहिए। बाप चला गया। सोयी, सोचते-सोचते-सोचते-सोचते उसी प्रश्न के मनन में, पहले बेटे ने सोचा कि बड़ी झंझट है। बीज घर में रखें, चूहे मंथन में डूबी सो गई। लगता है सपने में हल हआ। नींद में खा जाएं, सड़ जाएं, बच्चे इधर-उधर फेंक दें। तो बेहतर यह है मालूम होता है, उठी। उत्तर उसे मिल गया तो जाकर वह टेबल कि बाजार में बेच देना चाहिए। पैसे पास में रख लेंगे पर लिख भी आयी। वापस सो गई आकर। सम्हालकर। जब बाप आएगा, फिर बीज खरीद लेंगे, दे देंगे। सुबह जब आंख खुली तो उसे याद भी न रहा। सपना याद न सीधी गणित की बात थी। रहा, उठना याद न रहा, लेकिन जब वह अपने टेबल पर गई तो दूसरे बेटे ने सोचा कि बाप ने कहा है बीज वापस लौटाना, तो चकित हुई। उत्तर लिखा था। हस्ताक्षर भी उसी के थे। कमरे में वह यही बीज चाहता होगा। कहीं बाजार में बेचें, दूसरे बीज फिर कोई दूसरा था भी नहीं। और दूसरा कोई होता भी तो भी हल नहीं | बाद में खरीदें और बाप कहे, ये तो वे बीज नहीं हैं। तो हम कर सकता था। मैडम क्यूरी नहीं कर पा रही थी तीन साल से। मुश्किल में पड़ जाएंगे। तो उसने तिजोड़ी में बंद करके ताला बंद तब उसे धीरे-धीरे याद आयी कि रात सपना...| सपने के फिर कर दिया। चाबी सम्हालकर रख ली कि जो दिए हैं, वही लौटा ब्यौरे का पता चला, फिर उसे स्मरण आया कि सपने में ही उसने देंगे। झंझट में पड़ना क्यों? देखा कि वह उठी भी थी। समझा था कि सपने का ही अंग है। तीसरे बेटे ने सोचा कि बीज बाजार में बेच दें तो वही बीज तो उठना भी। और टेबल पर लिखना भी सपने जैसा मालूम हुआ | होंगे नहीं, जो पिता दे गए। धोखा होगा। तिजोड़ी में बंद था। तब सारी बात साफ हो गई। | करना? पिता पता नहीं कब आएं-छह महीने, सालभर, दो वैज्ञानिक अपनी सारी ऊर्जा को एक ही दिशा में लगा देता है। साल। तिजोड़ी में बीज अगर सड़ गए तो राख रह जाएगी। तो तभी तो प्रकृति के गहन सत्यों को खोज के लाता है। डुबकी उसने सोचा बेहतर है, इन्हें बो दो। उसने बीज बो दिए। 515 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.340156
Book TitleJinsutra Lecture 56 Chaudah Gunsthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy