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________________ जिन सूत्र भाग : 2 लेना-देना! या कोई संस्कृत का ज्ञाता है; उसे क्या लेना-देना डाक्टर को अपनी सीमा पता है। डाक्टर को पता है कि हम सब है? न! गोगिया पाशा, के. लाल इनको रखो। ये फौरन पकड़ | उपाय करें, फिर भी कभी आदमी मर जाता है। लेंगे। क्योंकि जो साईंबाबा कर रहे हैं, वह ये सब कर रहे हैं। जीवन के रहस्य डाक्टर के ज्ञान से ज्यादा बड़े हैं। और उनसे बहुत बेहतर कर रहे हैं। बिना इनको रखे वह कमेटी अधूरी कभी-कभी हम कोई भी उपाय न करें तो भी आदमी बच जाता है। और साईंबाबा प्रदर्शन करने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने जो है। जीवन और मृत्यु, हम जो जानते हैं उतने पर समाप्त नहीं हैं। वक्तव्य दिया उसमें यह कहा कि मैं तो यह सब चमत्कार तो डाक्टर तो झिझकता है। वह कहता है, हम कोशिश इसलिए कर रहा हूं कि लोगों में धर्म की श्रद्धा बढ़े। करेंगे। हम कुछ भी उठा न रखेंगे। लेकिन फिर भी बात तो तो मैं उनसे कहना चाहता हूं कि अगर धर्म की श्रद्धा बढ़ाने के परमात्मा के हाथ में है। हो गए ठीक तो ठीक। क्योंकि अंततः तो लिए ही कर रहे हो तो इससे अच्छा मौका क्या होगा? इस वही ठीक करेगा तो हो जाओगे। अगर बचने की जीवन-ऊर्जा कमेटी को निरीक्षण कर लेने दो। अगर इस कमेटी ने प्रमाण दे होगी भीतर, तो ठीक हो जाओगे। हम तो सहारे दे सकते हैं। दिया कि तम सही हो, तो बड़ी श्रद्धा बढ़ेगी। और अगर इस | शायद थोड़ा बहुत सहारा बन जाए। कमेटी ने सिद्ध कर दिया कि तुम गलत हो तो इस गलत के | इससे भरोसा नहीं आता। जो कैंसर से मर रहा है वह आधार पर सही श्रद्धा बढ़ कैसे सकती है? | प्रामाणिक रूप से सुनना चाहता है कि निश्चित तुम ठीक हो हर हालत में लाभ होगा। इससे बचो मत। इससे भागो मत। जाओगे। इस कहने से ठीक होगा या नहीं होगा, यह सवाल नहीं लेकिन वे घबड़ा रहे होंगे। घबड़ाहट स्वाभाविक है। साधारण है। यह सुनने से उसको राहत मिलती है, सांत्वना मिलती है। मदारी जो कर रहे हैं वही वे कर रहे हैं। लेकिन साधारण मदारी साईंबाबा के पास जाता है, वे कहते हैं बिलकुल ठीक हो ईमानदार है। वह कहता है, हाथ की तरकीब है। ये जो धार्मिक जाओगे। कोई घबड़ाने की जरूरत नहीं है। मदारी हैं, ये कहते हैं यह सिद्धि है। और फिर अगर साधारण डब्बे में से राख निकालकर दें तो सिद्धि वगैरह कुछ भी नहीं है। लेकिन आदमी इस जाल में ज्यादा परिणाम नहीं मालूम होता। हवा में हाथ घुमाकर राख पड़ता है। पड़ता इसलिए है कि आदमी बड़ा असहाय है। अब निकाल दी। इससे उस कैंसर से घबड़ाए हुआ आदमी को लगता किसी को कैंसर हो गया। अब वह घबड़ाया, कि मरे! अब है कि है तो आदमी चमत्कारी। हवा से राख निकाल देता है। बचने की कोई आशा न रही। अगर वह डाक्टर के पास जाता है | कहीं हवा से राख नहीं निकलती। सब राख छिपी हुई है, वहां तो डाक्टर भी कोई धोखेबाज तो नहीं है। वह महावीर की भाषा | से निकलती है। लेकिन उस आदमी को तो दिखाई पड़ता है कि बोलता है डाक्टर। वह कहता है, स्यात ठीक हो जाओ। कोई | हवा से निकाल दी। तो जो आदमी इतना चमत्कारी है उसके निर्णय तो नहीं है, गारंटी तो नहीं है कि हम तुम्हें ठीक कर देंगे। | वचन में भरोसा करने जैसा है। यह आदमी भरोसा कर लेता है। हम कोई....हमारे हाथ में कोई जीवन-मृत्यु तो नहीं है। डाक्टर | इसको सांत्वना मिल गई। कहता है, हम उपाय करेंगे। जो भी श्रेष्ठतम हो सकता है, हम | अब इसने अगर भरोसा कर लिया तो सांत्वना तो जरूर मिल करेंगे। कभी-कभी लोग बच भी जाते हैं, कभी-कभी लोग नहीं गई, लेकिन सांत्वना से थोड़े ही कैंसर ठीक होता है। यह भी बचते। मरेगा। हालांकि सुखपूर्वक मरेगा। तीन महीने परेशान नही तो डाक्टर तो महावीर की भाषा बोल रहा है। वह कहता है, होगा, लेकिन मरेगा। साईंबाबा के कारण इसका मरना निश्चित शायद ठीक हो जाओ। हम कोई उपाय न छोड़ेंगे। लेकिन मरीज हो गया। डाक्टर के साथ संभावना थी, बच भी जाता। न भी घबडाता है कि स्यात...? जब डाक्टर कह रहा है स्यात. तब बचता, लेकिन बचने की भी पचास प्रतिशत संभावना थी। तो बड़ी मुश्किल हो गई। डाक्टर से तो निश्चय सुनने आए थे सत्य साईंबाबा के साथ सौ प्रतिशत बचने की आशा और सौ कि निश्चित ठीक हो जाओगे। कोई डाक्टर ऐसा नहीं कह प्रतिशत न बचने की स्थिति है। अगर बच गया तो तभी बच सकता, क्योंकि कोई डाक्टर इतना बेईमान नहीं हो सकता। सकता है, जब कैंसर झूठा रहा हो। अगर झूठा कैंसर था तो 1496 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340155
Book TitleJinsutra Lecture 55 Aaj Laharo me Nimantran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size52 MB
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