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________________ - जिन सूत्र भाग : 2 SHE हंसी उसकी सुनाई पड़ती है। तीस साल में लाखों-अरबों बच्चे को गतिमान करना है। बहुत दफा नाराज भी होना है, बहुत अनुभव हुए हैं। लेकिन वह अंगारा अब भी कहीं घाव की तरह दफे डांटना-डपटना भी है। वे घाव भीतर रह जाते हैं। बैठा है। अभी भी हरा है। अभी भी पीड़ा होती है। अभी भी तुम अक्सर ऐसा होता है कि जब बेटे जवान हो जाते हैं, उस आदमी से बदला लेना चाहोगे। छोटी-छोटी बातें याद रह शक्तिशाली हो जाते हैं और मां और बाप बूढ़े होने लगते हैं, तब जाती हैं। क्षुद्र बातें याद रह जाती हैं। जीवन के अनंत उपकार बदला शुरू होता है। तब पहिया पूरा घूम गया। पहले बच्चे थे भूल जाते हैं। तुम, कमजोर थे, तुम कुछ कर न सके, सहा; फिर मां-बाप गरजिएफ कहता था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता बच्चे हो जाते हैं, बूढ़े हो जाते हैं, कमजोर हो जाते हैं। तुम से किसी न किसी दिन समझौता करना होता है। और जो व्यक्ति शक्तिशाली हो जाते हो। फिर तुम सताना शुरू कर देते हो। अपने माता-पिता को क्षमा न कर सके वह कभी ध्यान में प्रविष्ट मां-बाप के पास भी हमारा क्रोध, हमारा वैर-भाव गांठ की नहीं हो सकता। तरह बना रहता है तो औरों की तो बात ही क्या! और महावीर तुम तो कहोगे, माता-पिता को क्षमा ? लेकिन गुरजिएफ बड़ी | कहते हैं कि यह वैर की गांठ जितनी गहरी होगी, उतना ही तुम्हारा गहरी बात कह रहा है। कृष्ण लेश्या का पर्दा सघन होगा। स्वाभाविक है कि जिन माता-पिता ने तुम्हें बड़ा किया, कई | मुल्ला नसरुद्दीन एक बस में यात्रा कर रहा था। बस के अंदर दफा तुम पर नाराज हुए होंगे। तुम्हारे हित में हुए होंगे। कई बार एक कतार में खुद बैठा, दूसरी तरफ उसकी पत्नी बैठी थी। और मारा, डांटा-डपटा होगा, अगर वह चुभन अभी शेष रह गई है | दूसरी कतार में एक अपरिचित महिला यात्री। हवा के झोंके से और अगर तुम अपने मां-बाप से भी रसपूर्ण रिश्ता नहीं बना पाए उस युवती का आंचल लहरा-लहराकर मुल्ला के पैर को हो, तो और किससे बना पाओगे? झाड़ता-पोंछता। जब बस के मुड़ने पर उस महिला का हाथ गरजिएफ कहता है, मां-बाप का आदर जिसके मन में आ मुल्ला के पैर पर पड़ गया तो उसने अपनी पत्नी के कान में कहा, गया वह साधु होने लगा। मुझे गौतम बुद्ध समझ रही है। थोड़ी देर बाद जब बस के झटके पूरब की सारी संस्कृति कहती है मां और पिता के आदर के से चप्पल सहित उसका पैर मुल्ला के पैर में लगा तो पत्नी ने लिए। क्यों? तुम शायद इस तरह कभी सोचे नहीं, लेकिन मुल्ला के कान में कहा, सावधान! अब आपकी असलियत मनोविज्ञान इसी तरह सोचता है। जब संस्कृति इतना जोर देती है पहचान गई है। | कि माता-पिता का आदर करो, तो इसका अर्थ ही यह है कि आदमी वैर की गांठ बांधता है संसार से, उसका आधारभूत अगर जोर न दिया जाए तो तुम अनादर करोगे। जोर केवल खबर कारण क्या है? आधारभूत कारण है कि आदमी अपने को तो दे रहा है कि अगर तुम्हें छोड़ दिया जाए तुम पर, तो तुम अनादर गौतम बुद्ध समझता है, इसलिए अपेक्षा करता है। बड़ी अपेक्षा करोगे। पश्चिम में मनोविश्लेषण ने बड़ी खोजें की हैं। उनमें करता है कि सारा संसार उसके चरणों में झके। और जब लोग सबसे बड़ी खोज यह है कि जितने भी लोग मानसिक रूप से उसके चरणों में झुकना तो दूर रहा, उसका अपमान करते हैं; बीमार होते हैं वे किसी न किसी तरह अपनी मां से नाराज हैं। चरणों में झुकना तो दूर रहा, अपेक्षा पूरी करना तो दूर रहा, अगर सारे मनोविश्लेषण को एक शब्द में दोहराना हो और उसकी उपेक्षा करते हैं; चरणों में झुकना तो दूर रहा, ऐसी सारी मानसिक बीमारियों को एक शब्द में लाना हो तो वह-मां स्थितियां पैदा करते हैं कि उसे उनके चरणों में झुकना पड़े तो घाव से नाराजगी। खड़े होते हैं, वैर की गांठ बंधती है। हर आदमी छोटा था, बच्चा था, कमजोर था। उस कमजोरी अहंकार के कारण वैर की गांठ बंधती है। और अहंकार कृष्ण के क्षण में असहाय था, किसी पर निर्भर था। मां और पिता पर लेश्या का आधार है। जितना अहंकार होगा, उतनी वैर की गांठ | निर्भर था। और मां और बाप को बच्चे को बड़ा करना है, कई होगी। तुमने अगर अपने को बहुत कुछ समझा तो वैर की गांठे बातें गलत हैं, जिनसे रोकना है। कई बातें सही हैं, जिनकी तरफ | बहुत हो जाएंगी। क्योंकि कोई तुम्हारी अपेक्षा पूरी करने को नहीं खम 462 - JanEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org SAR
SR No.340154
Book TitleJinsutra Lecture 54 Shat Pardo ki Oat me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size43 MB
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