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________________ जिन सूत्र भाग: 2 महावीर कहते हैं, 'मंदता, बुद्धिहीनता, अज्ञान।' एक दौड़ हुई जिसमें पहले नंबर पर मैं रहा, दूसरे नंबर पर एक कोई अज्ञानी होने को पैदा नहीं हुआ है, लेकिन अधिकतर लोग सिपाही और तीसरे नंबर पर वह, जिसका यह कटोरा है। अज्ञानी जीते हैं, अज्ञानी मरते हैं। उसका कारण है कि कोई यह छीना-झपटी है। वस्तुओं के जगत में तो बड़ी छीना-झपटी स्वीकार ही नहीं करता कि मैं अज्ञानी हूं। लोग तो मानकर चलते है। तुम अपने कटोरे पर गौर करना, वह बहुत हाथों में रह चुका हैं कि वे ज्ञानी हैं। जब तुम पहले से मान ही लिए कि तुम ज्ञानी है। तुम्हारा कटोरा तुम्हारा नहीं है। तुम नहीं थे, तब भी था। तुम हो तो तुमने अज्ञानी होने की कसम खा ली। अब तुम कभी ज्ञानी नहीं रहोगे, तब भी होगा। तुम्हारा कटोरा बड़ा झूठा है। न न हो सकोगे। सीलबंद! अब तुम अज्ञानी ही रहोगे। तमने प्रण | मालम कितने लोगों के हाथों में रह चका है। छीना-झपटी चल कर लिया कि हमको अज्ञानी ही रहना है। रही है। कटोरा हाथ बदलता रहता है। एक हाथ से दूसरे हाथ, ज्ञान की तरफ जिसे जाना है, उसे स्वीकार करना पड़ेगा कि दूसरे से तीसरे हाथ; हाथवाले आते हैं, चले जाते हैं, कटोरा अभी मैं अज्ञानी हूं और इस अज्ञान को आत्यंतिक मानने का कोई चलता रहता है। यह कटोरे की यात्रा है। कारण नहीं है; इसमें निखार हो सकते हैं। जैसे बीमार आदमी एक तुम्हारे भीतर की चेतना है, जो कुंआरी है, जूठी नहीं। उसे इलाज करता है तो स्वस्थ हो जाता है। दुर्बल आदमी व्यायाम | जगाओ। उससे ही तृप्ति मिलेगी। ये कटोरों को जितनी देर तुम करता है तो शक्तिशाली हो जाता है। ऐसे ही अज्ञान किसी की | सम्हाले रहोगे...और जैसा तुमने दूसरों से छीन लिया है, कोई न स्थिति नहीं है। तुमने अभ्यास नहीं किया, तुमने श्रम नहीं किया | कोई तुमसे छीन ले जाएगा। यह ज्यादा देर तुम्हारे हाथ में भी ज्ञान के लिए। तुम क्षुद्र बातों की छीना-झपटी में लगे रहे और रहनेवाला नहीं है। यह कटोरे की आदत नहीं है। यह संभव भी विराट से चूकते रहे। नहीं है, क्योंकि यहां इतने लोग छीनने के लिए उत्सुक हैं। यहां और मजा यह है कि विराट के लिए कोई छीना-झपटी नहीं | तो सिर्फ एक चीज तुम्हारे हाथ में रह जाती है, वह तुम्हारे चैतन्य करनी थी। कोई प्रतियोगिता ही नहीं है वहां। तम अकेले हो। की बात है। उसे कोई नहीं छीनता। उसे कोई छीनना भी चाहे तो तुम्हें अगर अपनी बुद्धि पर निखार लाने हैं, अगर तुम्हें अपनी छीन नहीं सकता। उसे मौत भी नहीं छीन सकती। बुद्धि में हीरे जड़ने हैं तो कोई झगड़ा नहीं है, कोई से झगड़ा नहीं महावीर जब कहते हैं अज्ञान, तो उनका अर्थ है, जो व्यक्ति है। क्योंकि यहां किसी को मतलब ही नहीं है बुद्धि से। तुम्हें ऐसी चीजों को जुटाने में लगा है जिन्हें मौत छीन लेगी, वह अगर प्रतिभा को जगाना है तो कोई से तुम्हारा कोई झगड़ा नहीं, अज्ञानी है। जो व्यक्ति ऐसी चीज की खोज में लगा है, जिसे कोई स्पर्धा नहीं है, किसी को लेना-देना नहीं है। लेकिन अगर | मृत्यु भी न छीनेगी, वही ज्ञानी है, वही बुद्धिमान है। जो सार को तुम्हें तिजोड़ी बड़ी करनी है तो करोड़ों लोग स्पर्धी हैं। खोज रहा, वही बुद्धिमान है। जो स्वयं को खोज रहा, वही मैंने सुना, मुल्ला नसरुद्दीन एक रात गए अपने घर लौटा। | बुद्धिमान है। और आते ही उसने अपनी पत्नी के हाथों में सोने का एक कटोरा 'जल्दी जो रुष्ट हो जाता है, दूसरों की निंदा करता है, दोष रख दिया। पत्नी उसकी यह भेंट देखकर प्रसन्न भी हुई और लगाता है, अति शोकाकुल होता है, अत्यंत भयभीत होता है, ये आश्चर्यचकित भी। क्योंकि मुल्ला कुछ काम तो करता नहीं। कापोत लेश्या के लक्षण हैं।' सोने का कटोरा ले कहां से आया है? थोड़ी डरी भी। कटोरा तीसरा H जल्दी रुष्ट हो जाना, दूसरों की निंदा करना, दोष लाने के विषय में जब पत्नी ने उससे प्रश्न किया जो वह बोला, | लगाना, अति शोकाकुल होना, अत्यंत भयभीत होना। इसे मैंने एक दौड़ में जीता है। दौड़ में? पत्नी को और भी | भयभीत हम सभी हैं—अकारण। क्योंकि जो होना है, होगा। आश्चर्य हुआ क्योंकि मुल्ला और दौड़े! बैठ जाए तो उठता | उससे भय का कोई अर्थ नहीं। जैसे मौत होनी है, होगी। उससे मश्किल से है, उठ जाए तो चलता मश्किल से है...दौड़े। लेट भय क्या? निश्चित है। होगी ही। भयभीत होओ या न होओ, जाए तो बैठता मुश्किल से, दौड़े! दौड़ में? पत्नी को और भी होगी ही। देह जराजीर्ण होनी है, होगी। बुढ़ापा आना है, आएगा आश्चर्य हुआ। कैसी दौड़? मुल्ला ने कहा, अजी, अभी-अभी ही। उससे भयभीत क्या होना है, जो होना ही है? लेकिन हम Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340154
Book TitleJinsutra Lecture 54 Shat Pardo ki Oat me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size43 MB
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