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________________ जिन सूत्र भागः जिनके लिए सत्ता में आने की आकांक्षा थी। क्या हुआ? गरीबों पहले तो ये कभी दिखाई नहीं पड़े थे। अपनी-अपनी बाइबिल के हित के लिए गरीबों को मारा! लिए बैठे हैं, बड़े भावमुग्ध। मगर यह भावमुग्धता, यह हाथ में तुमने कभी खयाल किया? अपने भीतर भी निरीक्षण किया? | बाइबिल, सब झूठी है। प्रयोजन कुछ और है। तुम अपने बच्चे को कहते हो, चुप हो जाओ। वह चुप नहीं | तुम मंदिर जाओ तो खयाल रखना, किसलिए गए। तुम कभी होता, तुम उसको डांटते-डपटते हो, मारते हो। और तुम कहते दया भी करो तो खयाल रखना कि किसलिए की। अपने भीतर | यही हो कि तेरे हित के लिए मार रहे हैं। तुझे शिष्टाचार सिखा खोज जारी रखना। रास्ते पर भिखमंगा हाथ फैलाकर खड़ा हो रहे हैं। लेकिन तुमने भीतर गौर किया? वस्तुतः तुम शिष्टाचार | जाता है, तुम दो पैसे डाल देते हो। दया से डाले, जरूरी नहीं है। सिखाना चाहते हो या तुम्हारी आज्ञा नहीं मानी गई इसलिए तुम | शायद इसलिए डाले हों कि और लोग देख रहे थे। दो पैसा नाराज हो? डालकर दानी बनने जैसी सस्ती बात और क्या हो सकती है? आदमी अच्छी बातों की आड़ में अपनी बरी बातों को छिपाता शायद कहीं भिखारी फजीहत खड़ी न कर दे, ज्यादा शोरगुल न है। अच्छे लिबास में, साधु-संतों के लिबास में भी गुंडे निकलते मचा दे। कहीं लोगों को यह पता न चल जाए कि तुम दो पैसे भी हैं। साधु लिबास में भी डाकू निकलते हैं। और यह सबने किया न दे सके। हद्द कंजूस हो! तो दे दिए। या छुटकारा पाने के लिए है। थोड़ी साफ आंख हो तो तुम देख लोगे, कि कारण कुछ और दे दिए, कि झंझट मिटे। अपने भीतर देखना। तुम्हारी दया के | | था, वजह कुछ और थी, बहाना तुमने कुछ और खोजा। बहाना भीतर भी जरूरी नहीं कि दया हो। तुम्हारी प्रार्थना के भीतर भी कुछ अच्छा खोजा, जिसकी आड़ में बुराई चल सके। जरूरी नहीं कि प्रार्थना हो। और जो भीतर नहीं है उसके बाहर 'धर्म और दया से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नहीं होने से कुछ अर्थ नहीं है। मानना, ये कृष्ण लेश्या के लक्षण हैं।' इसलिए महावीर कहते हैं, 'धर्म और दया से शून्यता।' तुम अपनी दया में भी विचार करना और अपने धर्म में भी दिखावा हो सकता है लेकिन भीतर सब सूनापन होगा। विचार करना। तुम मंदिर भी जा सकते हो। जाने का कारण __ 'दुष्टता, समझाने से भी नहीं मानना...।' मंदिर जाना बिलकुल न हो, कुछ और हो सकता है। तुमने कई दफे खयाल किया? किसी से तुम विवाद में पड़ ऐसा हुआ, लंदन के एक चर्च में इंग्लैंड की रानी आने को थी। जाते हो, तुम्हें दिखाई भी पड़ने लगता है कि दूसरा ठीक है, फिर तो सैकड़ों फोन आए पादरी के पास। सुबह से ही फोनों का | भी अहंकार मानने नहीं देता। और तुम चीखते-चिल्लाते हो कि आना शुरू हो गया कि हमने सुना है रानी आ रही है। कब | अंधेरे के बाहर कैसे आएं ? और तुम रोते-गिड़गिड़ाते हो कि हे पहुंचेगी? हम भी आना चाहते हैं। जो कभी चर्च न आए प्रभु! अंधेरे से प्रकाश की तरफ ले चल। असत से सत की तरफ थे...। उस पादरी को बड़ी हंसी आयी। उसने फोन पर सभी को ले चल। मृत्यु से अमृत की तरफ ले चल। लेकिन तुम इसके एक बात कही कि रानी आएगी कि नहीं पक्का नहीं। क्या लिए रास्ता तो बनाते नहीं। कितनी बार नहीं विवाद में केवल भरोसा! राजा-रानियों का क्या भरोसा। लेकिन अगर तुम आना | अहंकार ही कारण होता है। अन्यथा तम्हें दिखाई पड़ना शुरू हो चाहते हो तो स्वागत है। एक बात पक्की है, परमात्मा रहेगा। | जाता है दूसरा ठीक है, मान लो। लेकिन कैसे मान लो? रानी आए या न आए। पर लोगों ने कहा, ठीक है, परमात्मा तो पराजय स्वीकार नहीं होती। ठीक है, मगर रानी अगर आ रही हो तो ठीक-ठीक कह दें, तो | जब दो व्यक्ति लड़ते हैं, विवाद करते हैं तो जरूरी नहीं है कि हम आ जाएं। कब आ रही है? यह सत्य के लिए विवाद हो रहा हो। यह विवाद होता है मेरे रानी आयी तो चर्च भरा था; खचाखच भरा था। बाहर तक सत्य के लिए। और जहां मेरा महत्वपूर्ण है, वहां सत्य तो होता भीड़ थी। रानी ने पादरी को कहा कि तुम्हारे चर्च में काफी भीड़ ही नहीं। हम कहते हैं, मैं कैसे गलत हो सकता हूं? इसको हम है। लोग बड़े धार्मिक मालूम होते हैं इस हिस्से के। उस पादरी ने तरकीब से, पीछे के दरवाजे से सिद्ध करना चाहते हैं कि जो भी कहा, पहली दफा यह मुझको भी दिखाई पड़ रही है भीड़। इसके| हम कहते हैं वह ठीक है। 466 Jal Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340154
Book TitleJinsutra Lecture 54 Shat Pardo ki Oat me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size43 MB
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