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________________ छह पथिक और छह लेश्याएं ५पहुआ। जाता है, वह ठीक वहीं पहुंच गया, जो महावीर की परिभाषा में | हो रहा है मेहरबां मुझ पर वह रश्के-सदबहार शुक्ल लेश्या में पहुंचता है। तृतीय नेत्र खुल गया। पूर्णिमा हुई। खिल रही है फिर मेरे दिल की कली कल रात से पूरा चांद निकला। उनका जलवा ख्वाब में पुर-कैफ मझको कर गया और जिसको पतंजलि सहस्रार कहता है-सहस्रदल कमल, आंख में आई हुई है नींद-सी कल रात से सातवां चक्र, वही महावीर के लिए वीतराग स्थिति है। रंग-राग किस कदर है उनसे मिलने की खुशी कल रात से सब गया। सब लेश्याएं गईं। कृष्ण लेश्या तो गई ही, श्वेत जिंदगी में आ गई है ताजगी कल रात से लेश्या भी गई। काले पर्दे तो उठ ही गए, सफेद पर्दे भी उठ गए। आलमे-वहशत था तारी हर तरफ कल रात तक पर्दे ही न रहे। हर दरो-दीवार में है दिलकशी कल रात से परमात्मा बेपर्दा हुआ, नग्न हुआ, दिगंबर हुआ। आकाश के | बन गया है दिल का हर अरमान एक बज्मे-निशात अतिरिक्त और कोई ओढ़नी न रही, ऐसा निर्दोष हुआ। नगमाजन है अर्स साजे-जिंदगी कल रात से तो जो छह चक्र हैं पतंजलि के, वे ही छह लेश्याएं हैं महावीर साधारण प्रेम में जो कल तक मौत थी, वह आज जिंदगी की। पहले तीन चक्र सांसारिक हैं। अधिकतर लोग पहले तीन मालूम पड़ने लगती है। कल तक जहां साज टूटा पड़ा था, आज चक्रों में ही जीते और मर जाते हैं। चौथा, पांचवां और छठवां झनझना उठता है। चक्र धर्म में प्रवेश है। चौथा चक्र है हृदय, पांचवां कंठ, छठवां जैसे ही हृदय पर चोट लगती है, वैसे ही तम्हारे जीवन में दीप्ति आज्ञा। हृदय से धर्म की शुरुआत होती है। हृदय यानी प्रेम। का जन्म होता है। सांसारिक प्रेम में तो यह चोट ऐसी है कि जैसे हृदय यानी करुणा। हृदय यानी दया। हृदय के अंकुरण के साथ एक बड़े विराट हृदय में जरा-सा एक कोना रोशन हुआ हो। जब ही धर्म की शुरुआत होती है। जिसको हृदय चक्र कहा है यह कोना कोना नहीं रह जाता, और तुम्हारा पूरा हृदय रोशन पतंजलि के शास्त्र में, वही तेजो लेश्या है। हृदयवान व्यक्ति के होता है तो उसी को महावीर अहिंसा कहते हैं। उसी को बुद्ध जीवन में एक तेज प्रगट होता है। | करुणा कहते हैं। उसको जीसस ने प्रेम कहा है। या भक्तों ने, तुमने प्रेमी का चेहरा दमकता देखा होगा। जब तुम कभी किसी नारद ने प्रार्थना कहा है। के प्रेम में होते हो तो तुम्हारे चेहरे पर एक नई ही आभा प्रगट हो जब तुम्हारा पूरा हृदय आंदोलित हो उठता है प्रेम से तो तुम्हारे जाती है। चेहरा तुम्हारा, कल भी तुम्हारा था, आज तुम्हारा जीवन में तेजो लेश्या का जन्म हुआ। लेकिन महावीर उसको भी किसी से प्रेम हआ तत्क्षण तुम्हारे चेहरे पर एक रौनक आ जाती लेश्या ही कहते हैं, यह खयाल रखना। महावीर कहते हैं, वह है, जो कभी न थी—एक दीप्ति। तुम ज्यादा जीवंत हो उठते हो। भी बंधन ही है—धर्म का सही, सुंदर है सही, शुभ है सही, जैसे किसी ने तुम्हारी बुझते-बुझते दीये की ज्योति को उकसा लेकिन भूल मत जाना कि बंधन है। फिर उसके बाद पद्म लेश्या दिया। राख जम गई थी, किसी ने झाड़ दी और तुम्हारा अंगारा और शुक्ल लेश्या। क्रमशः और सुंदरतर होता जाता जीवन। फिर दमक उठा। शुक्ल लेश्या-योग की तृतीय आंख, या तंत्र का शिवनेत्र, साधारण प्रेम में ऐसा हो जाता है तो जिस प्रेम की महावीर और महावीर की शुक्ल लेश्या है। जैसे तुम्हारे भीतर इन छह के बीच पतंजलि बात करते हैं, उसकी तो बात ही क्या कहनी! अमावस और पूर्णिमा का अंतर है। जब तुम्हारे जीवन की ऊर्जा एक स्त्री के प्रेम में तुम पड़ जाओ, एक मित्र के प्रेम में पड़ | आज्ञाचक्र पर आकर ठहरती है तो तुम्हारा सारा अंतर्लोक एक जाओ, एक रौनक आ जाती है। तेजो लेश्या! एक स्वर्णिम प्रभा से मंडित हो जाता है। एक प्रकाश फैल जाता है। तुम दमक आ जाती है। पहली दफा जागरूक होते हो। तुम पहली दफा ध्यान को कल एक कविता पढ़ रहा था। प्रेम की कविता है। उपलब्ध होते हो। इस तगैयुर के लिए उनको दुआ देता हूं मैं इसलिए पतंजलि ने उसे आज्ञाचक्र कहा। आज्ञाचक्र का अर्थ मौत थी कल रात तक, जिंदगी कल रात से है कि इस घड़ी में तुम जो कहोगे, कहते ही हो जाएगा। तुम्हारी 421/ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340152
Book TitleJinsutra Lecture 52 Chah Pathik aur Chah Leshyaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size46 MB
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