________________ - जिन सत्र भाग: 2 है। इस उपाय को करते-करते ही एक दिन संकल्प टूटकर गिर नर्क बनाया किसलिए? न कोई पाप करता, न कोई आता। हमें जाता है। अहंकार को निखारना पड़ता है; पवित्र करना पड़ता नाहक अटका रखा है। बंद करो यह दुकान। हमें छुट्टी दो या है। एक ऐसी घड़ी आती है पवित्र होते-होते ही, जैसे कपूर उड़ आदमी भेजो। जाता है, ऐसा अहंकार उड़ जाता है। शुद्ध अहंकार कपूर की तो परमात्मा ने कहा, ठीक है घबड़ाओ मत। मैं जल्दी ही बुद्ध तरह उड़ जाता है। | के रूप में अवतार लूंगा और लोगों के मन भ्रष्ट करूंगा। फिर जैसे तुम रात दीया जलाते हो तो पहले दीये की ज्योति तेल को उन्होंने बुद्ध की तरह अवतार लिया, लोगों को भ्रष्ट किया। लोग जलाती है। फिर तेल चुक जाता है तो बाती को जलाती है। फिर नर्क जाने लगे। अब तो नर्क में ऐसी भीड़ है कि वहां जगह ही बाती भी चक जाती है, तो फिर ज्योति भी बझ जाती है। तो | नहीं बची। लोग क्यू लगाए खड़े हैं सदियों से। जगह नहीं मिल ज्योति ने पहले तेल को जलाया, फिर बाती को जलाया, फिर रही है अंदर जाने के लिए, इतना धक्कम-धुक्का है। जब सब जल गया तो खुद भी बच नहीं सकती। इतनी शुद्ध हो | यह सब बुद्ध की कृपा से हुआ! हिंदू यह भी नहीं कह सके कि गई कि खो जाती है। | बुद्ध भगवान नहीं हैं। यह तो बड़ा झूठ होता। इतने बड़े सत्य को महावीर के मार्ग पर अहंकार को शुद्ध करने की प्रक्रिया है। झुठलाना संभव न हुआ। तो मान लिया कि भगवान तो हैं, शरीर छूटेगा पहले, फिर मन छूटेगा। फिर एक दिन तुम पाओगे लेकिन आए हैं पाप करवाने, लोगों को भ्रष्ट करने। अचानक, तेल भी जल गया, बाती भी जल गई, फिर लपट जो तो तरकीब समझे? तरकीब यह हुई कि बुद्ध को स्वीकार कर रह गई थी, वह कोरे आकाश में खो गई। लिया कि हैं भगवान के रूप ही। दसवें अवतार हैं। और साथ में शद्ध हो-होकर अहंकार कपूर की भांति उड़ जाता है। बात भी बता दी कि कोई इनकी मानना मत, नहीं तो नर्क गोशालक के मार्ग पर शुद्ध करने का कोई सवाल ही नहीं है। जाओगे, बुद्ध-धर्म का अनुगमन मत करना। यह भगवान की शुद्ध करने की चेष्टा को गोशालक कहता है, व्यर्थ है। जो है ही | एक शरारत है। यह भगवान की एक चालबाजी है। यह नहीं, उसे शुद्ध क्या करना? इतना जान लेना काफी है कि नहीं | भगवान का एक षड्यंत्र है। हैं तो भगवत-रूप। है। अभी घट सकती है बात। जैनों ने भी कृष्ण को नर्क भेजा, सातवें नर्क में डाला। लेकिन तो जैनों को कठिनाई हुई। गोशालक ने बड़ा गहरा विवाद थोड़ी बेचैनी लगी होगी। क्योंकि इतना प्रतिभाशाली व्यक्ति, अनुयायियों के लिए खड़ा कर दिया होगा। इसलिए जैन बड़े इतना महिमावान, ऐसा तेजोद्दीप्त! इसको नर्क में डालने में हाथ नाराज हैं। और चूंकि गोशालक के कोई शास्त्र नहीं हैं, इसलिए कंपा होगा। शास्त्र लिखनेवाले को भी डर लगा होगा। उसको और सुविधा हो गई। | भी लगा होगा कि यह थोड़ी ज्यादती हुई जा रही है। तो तम ऐसा ही समझो कि अगर हिंदओं के सब शास्त्र खो जाएं शास्त्रकारों ने जैन शास्त्रों में लिखा है कि अगली सष्टि में जब और कृष्ण के संबंध में सिर्फ जैनों के शास्त्र बचें तो कृष्ण के यह प्रलय होकर सब समाप्त हो जाएगा, फिर से सृष्टि का संबंध में क्या स्थिति बनेगी? लोग क्या सोचेंगे? लोग सोचेंगे, निर्माण होगा, कृष्ण पहले जैन तीर्थंकर होंगे। इससे राहत हो आदमी महानारकीय रहा होगा, क्योंकि शास्त्र में लिखा है कि गई। इधर चांटा मारा, इधर पुचकार लिया। सातवें नर्क में गया। अगर विरोधी का ही शास्त्र बचे तो निर्णय करना मुश्किल है। अगर बुद्ध के संबंध में बौद्धों के शास्त्र खो जाएं, सिर्फ हिंदुओं यही असुविधा है गोशालक के लिए। खुद का कोई शास्त्र नहीं के शास्त्र बचें तो उन शास्त्रों से क्या पता चलेगा? हिंदू शास्त्र है। खुद कुछ लिखा नहीं है। करने को ही जो नहीं मानता था, कहते हैं कि परमात्मा ने नर्क बनाया। लेकिन सदियां बीत गईं, वह लिखे क्यों? कुछ बोलाचाला होगा। कुछ दिन तक लोगों कोई पाप करे ही नहीं। नर्क कोई जाए ही नहीं। तो नर्क में बैठे थे को याद रही होगी, फिर बिसर गई। जो पहरेदार, और व्यवस्थापक, और मैनेजर, वे थक गए। कोई शास्त्रों में जहां उल्लेख है—या तो बौद्ध शास्त्रों में उल्लेख आता ही नहीं! ऊब गए। उन्होंने परमात्मा से प्रार्थना की, यह है। लेकिन बौद्ध शास्त्रों में सम्मानपूर्वक उल्लेख है। उसका 3981 | JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org