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________________ जिन सूत्र भाग: 2 M ANNAINAAMIRPERSONNELHARI HTRA जाल हैं। सांत्वना नहीं देता। वाइजे-सादालोह से कह दो, छोड़ उकबा की बातें __ तुम पूछो आत्मा अमर है? वह कहेगा, जब तक मरे नहीं, इस दुनिया में क्या रक्खा है, उस दुनिया में क्या होगा? पता कैसे चले? जब मैं मर जाऊं तब पछना। अभी तो मैं जिंदा वह भोले-भाले धर्मगुरु से कह दो कि छोड़ परलोक की बातें। हूं। या तुम मरोगे तब जान लेना। अभी पहले से जानकर भी इस दुनिया ही में कछ नहीं रक्खा है तो उस दुनिया में क्या क्या होगा? और पहले जानने का उपाय भी कहां है? जानने के होनेवाला है? पहले जानने का उपाय कहां है? अभी तो जी लो, फिर मौत भी वाइजे-सादालोह से कह दो, छोड़ उकबा की बातें | आएगी, देख लेना। होगी अमरता तो मिल जाएगी, न होगी तो इस दुनिया में क्या रक्खा है, उस दुनिया में क्या होगा? नहीं मिलेगी। इसकी चिंता भी क्या करना? अक्सर जो तुम्हें बताते हैं, उस दुनिया में बहुत कुछ रक्खा है, गोशालक ने खूब झकझोर दिया होगा भारत को। इसीलिए प्रभावित करते हैं क्योंकि तुम्हारे लोभ को जगाते हैं। वे जैन शास्त्र बड़े परेशान रहे हैं। उसने सारे सिद्धांतों की बुनियाद कहते हैं, यहां तो कुछ नहीं है लेकिन वहां है। क्या बाहर भटक उखाड़ दी होगी। उसने आदमी को रहे हो? क्या कंकड़-पत्थर इकट्टे कर रहे हो? क्या ठीकरे जोड़ संदेश दिया कि सिद्धांत, धर्म और शास्त्र और परंपरा का कोई रहे हो? कामिनी-कांचन में कुछ भी नहीं; लेकिन वहां है स्वर्ग उपाय नहीं रह गया। में। वे तम्हारे लोभ को जगाते हैं, तुम्हारे भय को जगाते हैं। वे कल मैं एक गीत पढ़ता था: तुम्हारी बीमारियों को उकसाते हैं। हवा हूं हवा मैं वासंती हवा हूं भय को उकसाते हैं। वे तुम्हें केवल तुम हो जाओ स्वयं, सहज, गिरी धम्म से फिर चढ़ी आम ऊपर प्रकृति के साथ चलने लगो, निसर्ग तुम्हारी व्यवस्था हो जाए, उसे भी झकोरा किया कान में कू इतनी बात कहते हैं। इसलिए बहत संप्रदाय बन नहीं सकते। उतरकर भगी मैं हरे खेत पहंची तकदीर कुछ ही, काविसे-तदबीर भी तो है वहां गेहुंओं में लहर खूब मारी तखरीब के लिबास में तामीर भी तो है पहर दोपहर क्या अनेकों पहर तक जुलमात के हिजाब में तनवीर भी तो है ऐसे व्यक्ति-गोशालक जैसे व्यक्ति तेज आंधी की तरह आ मुंतजिर-ए-इस्रते-फर्दे इधर भी आ आते हैं। तकदीर कुछ ही, काविसे-तदबीर भी तो है हवा हूं हवा मैं वासंती हवा हूं किस्मत तो थोड़ी है; ज्यादा तो पुरुषार्थ है। चढ़ी पेड़ महुआ थपाथप मचाया तखरीब के लिबास में तामीर भी तो है वे आदमी की चेतना को खूब थपथपाते हैं, झकझोर देते हैं। और विनाश तो है, लेकिन उसमें छिपा निर्माण भी तो है। गिरी धम्म से फिर चढ़ी आम ऊपर जुलमात के हिजाब में तनवीर भी तो है उसे भी झकोरा किया कान में कू अंधेरा है माना. लेकिन बडा प्रकाश है। सबह जल्दी करीब आ उतरकर भगी मैं हरे खेत पहुंची रही है। जगत में दुख है माना, लेकिन स्वर्ग में बड़ा सुख भी है। वहां गेहुओं में लहर खूब मारी आ मुंतजिर-ए-इस्रते-फर्दे इधर भी आ पहर दोपहर क्या अनेकों पहर तक ओ आगामी कल के सुख! मेरी तरफ भी दृष्टि दे। ऐसे व्यक्ति धूल-धवांस झाड़ जाते हैं चेतना की। ऐसे व्यक्ति आदमी ऐसे जीता है-लोलुपता में, भरोसे में, आशा में। संप्रदाय निर्मित नहीं करते। ऐसे व्यक्तियों का धर्म बड़ा शुद्ध है। गोशालक जैसे तीर्थंकरों के पास आशा का कोई उपाय नहीं। ऐसे व्यक्ति ऐसे हैं, जैसे शुद्ध सोना। आभूषण बनाने हों तो कुछ 404 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340151
Book TitleJinsutra Lecture 51 Goshalak Ek Aswikrut Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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