________________ गोशालक: एक अस्वीकृत तीर्थकर हो गया। नहीं होता। तो मुझे तो गोशालक उतना ही बहुमूल्य है, जितने महावीर। उस दिन तुम्हारे ऊपर सदज्ञान उतरा। उस दिन तुम्हारी समाधि गोशालक एक तीर्थंकर है। सहज-समाधि उसका योग है। पकी। उस दिन फसल काटने के दिन आए। जिस दिन तुमको सहज-स्वीकार जीवन का उसकी साधना है। नकार नहीं, | लगा, मेरे किए भी नहीं होता, उस दिन समर्पण हुआ। अभी तो अस्वीकार नहीं, विरोध नहीं, दमन नहीं। जैसा जीवन आ जाए, तुम समर्पण भी करते हो, तो कहते हो कि मैंने समर्पण किया। उसे वैसा ही आलिंगन कर लेना स्वागत से। यही उसकी अब समर्पण भी कोई कर सकता है? अगर तुमने किया, तो जीवन-दृष्टि है। | समपेण हुआ ही नहीं। तुम्हारी किए समर्पण होगा? तो यह अगर तुम गोशालक का विधायक रूप समझो तो कृष्णमूर्ति से तुम्हारा कृत्य रहा। तुम्हारा कृत्य तो तुम किसी भी दिन वापस ले बहुत मिलेगा, मेल खाएगा। लेकिन जैन तो उस विधायक रूप | सकते हो। एक दिन तुमने कहा, समर्पण किया, दूसरे दिन तुमने को नहीं समझ सकते थे। कहा, अच्छा वापस लेते हैं। नहीं करते। तो कोई क्या करेगा? विरोधी का हम विधायक रूप देखते ही नहीं। विरोधी में तो मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, हम आप पर समर्पण करते हम बुरा-बुरा देखते हैं। अपने में भला-भला देखते हैं, विरोधी हैं। मैंने कहा, जब तक करते हो, तब तक तुम अपने पास ही में बुरा-बुरा देखते हैं। जब तक हमारे मन में यह भाव है कि रखो। क्योंकि यह की हुई चीज झंझट है हमारी अपनी कोई दर्शन-परंपरा है, शास्त्र है, सिद्धांत है, तब किसी भी दिन तुम आ गए कि लाओ, वापस दो। तक हम सम्यक रूप से देख ही नहीं सकते। जो किया गया है, वह लौटाना पड़ सकता है। लेकिन जो हुआ एक जैन मित्र राजस्थान से आए। तो मुझसे कहने लगे, एक है, उसे तुम लौटा नहीं सकते। जैन मुनि ने कहा, कहां जा रहे हो? वह आदमी तो गोशालक प्रेम होता है। तुम कहते हो, किसी से प्रेम हो गया। तुम्हारे है। मैंने कहा, बात तो उन्होंने ठीक कही। मुझमें कोई खोजना करने जैसा कुछ भी नहीं है। इसलिए जीसस ठीक कहते हैं कि चाहे तो गोशालक को बिलकुल खोज ले सकता है। मैंने उनसे परमात्मा प्रेम जैसा है; होता है, किया नहीं जाता। कहा, बात तो उन्होंने ठीक कही। ध्यान प्रेम जैसा है; होता है, किया नहीं जाता। लेकिन वे बेचारे बड़े परेशान थे। क्योंकि वे भी जैन हैं। और उनको कर-करके जब तक थकोगे न, जब तक तुम ठीक से दौड़ाए न लगा, यह तो बड़ी गाली हो गई। गोशालक कह दिया। मुझसे जाओगे, तब तक तुम विश्राम कर ही नहीं सकते। तुम जब थक कहने लगे, आप कुछ कहेंगे नहीं? इसमें आप कोई वक्तव्य दें जाओगे दौड़-दौड़कर, तुम्हारे पैर जब जवाब दे देंगे, तुम्हारा कि उन्होंने आपको गोशालक कहा। अहंकार जब खुद ही गिर जाएगा, थककर गिर जाएगा कि अब मैंने कहा, गलत तो कहा नहीं। ठीक ही कहते हैं। मुझमें कुछ कुछ नहीं होता; तुम बैठ जाओगे, उसी घड़ी कुछ होगा। लक का हिस्सा है। मैं भी मानता हं, आदमी के किए कछ ऐसा ही बद्ध को हआ। शायद बौद्ध शास्त्रों में गोशालक का होता नहीं। अगर तुमसे करने को भी कहता हूं तो सिर्फ इसलिए जो सम्मान से उल्लेख है, इसका एक कारण बुद्ध की समाधि भी कि कर-करके ही तुम जानोगे कि करने से कुछ नहीं होता। बिना रही होगी। क्योंकि बुद्ध ने छह साल तक ऐसा ही किया, जैसा किए शायद मन में कोई भाव रह जाए कि कर लेते तो शायद हो महावीर ने बारह साल तक किया। सब तरह से चेष्टा की। फिर जाता। तो मैं कहता हूं, कर लो। करके देख लो। चलो, यह थक गए। कुछ पाया नहीं। तो छह साल के बाद ऊबकर, खुजलाहट है, यह भी कर लो। परेशान होकर छोड़ दिया। और जिस रात छोड़ा, उसी रात तो तमसे कहता हं, ध्यान करो. प्रार्थना करो, पजा करो। बाकी समाधि घटी। उसी रात बद्धत्व उपलब्ध हआ। करने से कभी कुछ हुआ नहीं। कर-करके ही एक दिन तुम्हें तो शायद गोशालक की बात बुद्ध को समझ में आती रही अचानक बुद्धि आएगी-अगर बुद्धि है तो जरूर एक दिन होगी, कि कहता तो यह आदमी ठीक है। हालांकि बड़ी आएगी कि अरे! यह मैं क्या कर रहा हूँ? मेरे किए तो कुछ भी खतरनाक बात है। अगर नकरात्मक रूप से लें तो बड़ी ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg