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________________ ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत आदमी कुछ भी इकट्ठा कर रहा है। यह बाहर ही नहीं हो रहा, धर्म का अर्थ है : जो होना तुम्हारा स्वभाव है। उस स्वभाव से यह भीतर भी हो रहा है। भीतर भी तुम व्यर्थ हो गई चीजों को विपरीत मत होना। उस स्वभाव से विपरीत को पकड़ना मत। पकड़े चले जाते हो। उस स्वभाव से विपरीत को आने मत देना। उस स्वभाव के तो पराने पत्ते वक्ष से छुट ही नहीं पाते। नए पत्तों को आने की अनुकूल को सम्हालना और उस स्वभाव को सदा स्मरण रखना | जगह नहीं, अवकाश नहीं। तुम नए नहीं हो पाते, क्योंकि तुम | कि मैं कौन हूं। भला आज साफ-साफ न भी हो सके कि मैं पराने को जकड़े रहते हो। अतीत को पकड़े रहते हो। परमात्मा हूं, लेकिन याद मत बिसारना, भूलना मत। याद बनाए किसी ने बीस साल पहले गाली दी थी, अब उसे किसलिए ही रखना। आज नहीं उघड़ेगा, कल उघड़ेगा। कल नहीं परसों पकड़े हो? मगर नहीं, उसे तुम पकड़े बैठे हो। शायद वह उघड़ेगा। लेकिन जिसे याद है, वही उघाड़ पाएगा। और जिसे आदमी भी मर चुका। शायद वह आदमी हजार दफे क्षमा भी याद ही नहीं, वह क्या खाक उघाड़ेगा! तुम्हें भला भूल ही गया मांग चुका, लेकिन फिर भी वह गाली पकड़ी है। वह वहां बैठी हो कि धन कहां गड़ा है, लेकिन इतनी याद भी हो कि गड़ा है तो है। उसे तुम किसलिए पकड़े हो? उसे जाने दो। तुम खोजते रहोगे। इस कोने में खोदोगे, उस कोने में खोदोगे, निर्जरा का अर्थ है: जो व्यर्थ हो जाए और छटने लगे और इस कमरे में, उस कमरे में, आंगन में, आंगन के बाहर-खोदते व्यर्थ होकर चीजें अपने आप छूटती हैं। स्वभावतः गिरती हैं। रहोगे। तुम्हें याद हो कि धन गड़ा है। तुम उनको पकड़ मत लेना, रोक मत लेना। सूखे पत्तों को गिर | मैंने सुना है, एक बाप मरा। उसके पांच बेटे थे। पांचों काहिल जाने देना, उड़ जाने देना। | और सुस्त थे। सिर्फ धन में उनकी लोलुपता थी, क्योंकि गुलछर्रे तो तुम ऐसे प्रतिपल नए होते रहोगे। करें। मरते बाप से कहा कि देखो, धन तो मैं बहुत छोड़े जा रहा फिर 'धर्म'-धर्म का अर्थ है स्वभाव। महावीर का धर्म का हूं। वह मैंने सब खेत में गड़ा दिया है। बाप तो मर गया। वे अर्थ रिलीजन या मजहब नहीं है, महावीर का अर्थ है : स्वभाव। पांचों बेटे बाप को मरघट पर किसी तरह जल्दी-जल्दी समाप्त जैसे अग्नि का धर्म है जलाना: जैसे पानी का धर्म है नीचे बहना; करके भागे खेत। खोद डाला पूरा खेत। वहां कुछ गड़ा न था। नीचे की तरफ, गड्ढे की तरफ बहना। जैसे अग्नि का धर्म है ऊपर | लेकिन जब पूरा खेत खुद गया तो उन्होंने कहा, अब बीज भी लपट की तरह उठना, आकाश की तरफ दौड़ना; ऐसे मनुष्य का फेंक ही दो। फसल आयी। खूब फसल आयी। धर्म है परमात्मा होना। उसका स्वभाव है। ऐसा नहीं कि मनुष्य तब उन्हें समझ आयी कि धन वहां सोने-चांदी की तरह नहीं को परमात्मा होना है, मनुष्य परमात्मा है; उघाड़ना है। गड़ा था। उस खोदने में ही धन पैदा हुआ। उस खोदने में ही खेत तो महावीर कहते हैं, धर्म को मत भूलना। | उर्वर हो गया। बीज फेंक दिए। ऐसे वे खेती करनेवाले न थे। लेकिन जैनियों से पूछो, जैन पंडितों से, जैन मुनियों से पूछो; | अलाल थे, काहिल थे। बाप कहता कि खेती करना, जमीन को वे धर्म का अर्थ करेंगे, जैन धर्म। वे कहते हैं, जैन धर्म को याद खोदना, बखर लगाना, वह उनसे होनेवाला नहीं था। वे बाप के रखना। यह बात गलत हो गई। महावीर जैन धर्म की कोई बात मरते ही चादर तानकर सो गए होते। लेकिन धन गड़ा था, इस नहीं कह रहे हैं। यह मजहब की बात ही नहीं है। महावीर जैसे आशा में खोदने चले गए। व्यक्ति मजहब की बातें करते ही नहीं। मजहब जैसे रोग और तुम्हारे भीतर तुम्हें याद बनी रहे कि परमात्मा छिपा है कहीं, तो महावीर जैसे चिकित्सक उनकी बात करें! असंभव। | खोज जारी रहेगी। अगर तुमने यह बात ही विस्मृत कर दी तो महावीर कहते हैं, धर्म याद रखना-सिर्फ धर्म। बुद्ध और खोदोगे क्या? खोजोगे क्या? महावीर दोनों ने धर्म शब्द का बड़ा अदभुत प्रयोग किया है। वह इसलिए महावीर कहते हैं, धर्म को याद रखना। प्रयोग है: सीधा-सरल स्वभाव। जो लाओत्सु की भाषा में | और 'बोधि'-बोधि है अंतिम नियति, कैवल्य, समाधि। ताओ का अर्थ है और जो वेद की भाषा में ऋत का अर्थ है, वही तुम्हारा परमात्मा हो जाना। तुम हो सकते हो, इसे मत भूलना। महावीर और बुद्ध की भाषा में धर्म का अर्थ है। तो दो बातें: धर्म–कि तुम हो। लेकिन उसमें एक खतरा है। 385 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340150
Book TitleJinsutra Lecture 50 Dhyanagni se Karm Bhasmibhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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