________________ ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत की शांति। लेकिन इसमें सार की बात समझ लेने जैसी है—मौत याद महावीर कहते हैं, मौत को मत भूलना। अनित्य का यही अर्थ दिलाती धर्म की। लेकिन मौत क्या इस तरह थोड़े ही है कि तुम है। अनित्य भावना का अर्थ हुआ, मृत्यु को स्मरण रखना। कहो दस साल बाद होने वाली है तो जब एक दिन बचे, नौ साल | प्रतिपल मृत्यु को स्मरण रखना। तीन सौ चौसठ दिन बीत जाएं, तब तुम आ जाना। मौत तो मनुष्य की महिमा यही है कि उसे मृत्यु का पता है। मृत्यु के किसी पल आ सकती है। मौत अभी आ सकती है। मौत कल | पता से ही धर्म का जन्म हुआ है। मृत्यु का जिसको जितना बोध आ सकती है। हम मौत से घिरे हैं। है, उसके जीवन में धर्म की उतनी प्रगाढ़ता हो जाएगी। अनित्य भावना का अर्थ है : मौत हमें घेरे हुए है। हम मौत के इसीलिए तो लोग बुढ़ापे में धार्मिक होने लगते हैं। मौत करीब हाथ में पड़े ही हैं। हम मौत के जाल में फंसे ही हैं। कब जाल आने लगती है। पगध्वनि ज्यादा साफ सुनाई पड़ती है। चीजें दूर सिकोड़ लिया जाएगा और कब हम हटा लिए जाएंगे, कुछ तय होने लगती हैं। 'यह भी बीत जाएगा', इसका स्मरण नहीं है। लेकिन इतना तय है कि यह होगा। ज्यादा-ज्यादा आने लगता है। अगर तुम थोड़े-से होशपूर्वक सोचो तो जैसे-जैसे मौत साफ इसीलिए तो आदमी दुख में परमात्मा को स्मरण करता है। होगी, वैसे-वैसे धर्म की तरफ तुम्हारी दिशा, अपने आप तुम्हारा क्योंकि दुख में पता चलता है, यहां पर कुछ भी नहीं है, खोजूं हृदय का कांटा धर्म की दिशा में मुड़ने लगेगा। परमात्मा को। सुख में फिर भूल जाता है। मौत करीब आती है | ___ 'अनित्य, अशरण'-अशरण महावीर का बुनियादी सूत्र तो याद आ जाता है। लेकिन कोई अगर तुम्हें चमत्कार से जवान | है। जैसे कृष्ण का सूत्र है शरणागति। इसलिए मैं कहता हूं, बड़ी बना दे...। | विपरीत भाषाएं हैं और फिर भी एक ही तरफ ले जाती हैं। मुल्ला नसरुद्दीन बीमार था, उसके डाक्टर ने कहा, बचना कृष्ण कहते हैं, परमात्मा की शरण गहो। मामेकं शरणं व्रज मुश्किल है। तो उसने अपनी पत्नी को कहा, अब डाक्टर को सर्वधर्मान् परित्यज्य। आ तू मेरी शरण। छोड़ सब धर्म। बुलाने की कोई जरूरत नहीं। नाहक फीस खराब करनी। अब महावीर कहते हैं, अशरण हो रहो। किसी की शरण भलकर तो पुरोहित को बुलाओ। अब तो मंत्र सुना दे कान में। पढ़ दे मत जाना। क्योंकि पर से मुक्त होना है। अकेले हो तुम। कोई कुरान। पुरोहित आने लगा। दूसरा सहारा नहीं है। सब सहारे धोखे हैं। सहारों के कारण ही संयोग की बात, मल्ला मरा नहीं। डाक्टर के डायग्नोसिस में, | अब तक तम भटके हो। अब सहारों का सहारा छोड़ो। अब तम निदान में कहीं भूल थी। महीनेभर जी गया तो उसने फिर डाक्टर बेसहारे हो, इस सत्य को समझो। अपने पैर पर खड़े हो जाओ। को बुलाया। अब वह स्वस्थ हो गया था, सब ठीक था। उसने कोई दूसरा तुम्हारा कल्याण न कर सकेगा। तुमने ही करना चाहा डाक्टर से कहा, डाक्टर ने जांच की और उसने कहा, चमत्कार तो ही कल्याण होनेवाला है। और दूसरे की शरण पर छोड़कर है। तुम बिलकुल ठीक हो गए हो। मैं तो सोचता था, तुम बचोगे कहीं तुम ऐसा मत करना कि यह सिर्फ धोखाधड़ी हो। ऐसा दूसरे नहीं तीन सप्ताह से ज्यादा। और अब तो ऐसा लगता है, तुम पर टालकर तुम बच रहे हो। कम से कम दस साल बचोगे। अक्सर शरणागति में जानेवाले लोग यही करते हैं। एक मित्र उसने अपनी पत्नी को कहा, अब पुरोहित को बुलाने की कोई मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, हम तो आपकी शरण आ गए। मैं जरूरत नहीं। और पुरोहित को जाकर कह दे कि अब दस साल उनको कहता हूं, कुछ ध्यान करो। वे कहते हैं, अब हमें क्या तो मौत का कोई कारण नहीं है। इसलिए दस साल इस तरफ करना? हम तो आपकी शरण आ गए। मैं उनसे पूछा कि जब कृपा मत करना। लेकिन नौ साल बाद, तीन सौ चौसठ दिन बीत | तुम दुकान करते हो, तब तुम मेरी शरण नहीं छोड़ते। तुम यह जाने के बाद अगर जीवित रहो तो आ जाना। एक दिन बचे, तब नहीं कहते, अब क्या दुकान करें! करो बंद दुकान। जब मेरी आ जाना। शरण आ गए, कर दो दुकान बंद। उन्होंने कहा, वह कैसे हो आदमी बिलकुल मरने के वक्त याद करता। धर्म को टालता।। सकता है! 381 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org