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________________ मुक्ति द्वंद्वातीत है पास आए हो, वह तुम्हारी चिंता ही न करे। उसके लिए तो | जाते, उनकी स्मृतियां हैं। यह चित्रकार ने बाहर से देखकर आत्यंतिक बात ही महत्वपूर्ण है। वह तो तुम्हारे भीतर मोक्ष को बनाया है। जीसस से तो पूछो! जीसस सूली ढो रहे हैं? नहीं, लाना चाहता है। | जीसस तो अपने सिंहासन की तैयारी कर रहे हैं। यह सूली तो और स्वभावतः तुम कैसे मोक्ष की कामना कर सकते हो? | सिंहासन की सीढ़ी बनेगी। संसार को ही तुमने जाना है। वहां भी सफलता नहीं जानी। इस तरफ सूली है, उस तरफ सिंहासन है। दृश्य में सूली है, किसने जानी! सिकंदर भी असफल होता है। संसार में अदृश्य में सिंहासन है। रूप में सूली है, अरूप में सिंहासन है। असफलता ही हाथ लगती है। | आकार में सूली है, आकार की सूली है, निराकार में सिंहासन है, तो तुम वही सफलता पाने के लिए आ गए हो अगर, तो केवल | निराकार का सिंहासन है। असदगुरु से ही तुम्हारा मेल हो पाएगा, जहां गंडा-ताबीज | तो जिन्होंने जीसस को केवल सूली ढोते देखा वे जीसस को मिलता हो, मदारीगिरी से भभूत बांटी जाती हो, जहां तुम्हें इस देख ही नहीं पाए। जिस दिन तुम्हें जीसस की सूली में सिंहासन बात का भरोसा मिलता हो कि ठीक, यहां कुछ चमत्कार हो | दिखाई पड़ जाए उस दिन तुम अर्थ समझोगे। उस दिन तुम्हें सकता है; जहां तुम्हारा मरता-बुझता अहंकार प्रज्वलित हो उठे; | पहली दफा सूली सूली न लगेगी। सूली परम कृतज्ञता का कारण जहां थोड़ा कोई तुम्हारी बुझती ज्योति को उकसा दे। बन जाएगी। मगर वह ज्योति संसार की है। वही तो नर्क की ज्योति है। वही , गुरु के चरणों में धन्यवाद सदा के लिए रहता है क्योंकि यही है, तो अंधकार है। उसी ने तो तुम्हें पीड़ा दी है, सताया है। उसी से जिसने मिटने का बोध दिया। न मिटते, न हो सकते। यही है, बिंधे तो तुम पड़े हो। वही तो तुम्हारी छाती में लगा विषाक्त तीर | जिसने मिटाया। मिटाया तो बनने की शुरुआत हुई। झाड़ी धूल, है। सदगुरु उसे खींचेगा। उसके खींचने में ही तुम मरोगे। | तो दर्पण निखरा। सदगुरु तो मृत्यु है तुम्हारी; जैसे तुम हो। यद्यपि उसी मृत्यु के लेकिन तुम जिसे जिंदगी कहते हो, गुरु उसे जिंदगी नहीं बाद तुम्हें पहली दफा उसका दर्शन होता है, जो वस्तुतः तुम हो। कहता। और तुम जिसे मृत्यु कहते हो, गुरु उसे मृत्यु नहीं धोखा मरता है, सत्य तो कभी मरता नहीं। असत्य मरता है, कहता। अलग भाषाएं हैं, अलग आयाम हैं। दो लोक बड़े सत्य की तो कोई मृत्यु नहीं। भिन्न-भिन्न हैं। गुरु कुछ और भाषा बोलता है। वह तुम्हारे लिए आग में हम सोने को डाल देते हैं, कूड़ा-कर्कट जल जाता है, | अटपटी है। सोना कुंदन होकर बाहर आ जाता है। मध्ययुग में भारत में उस भाषा का नाम ही अलग हो गुरु तो आग है, अग्नि है। और इसीलिए गुरु ब्रह्म है। क्योंकि | गया—सधुक्कड़ी; उलट बांसुरी। साधुओं की भाषा। उल्टी वहीं से तुम मिटते हो। और जहां तुमने मिटना सीख लिया, वहीं भाषा। जहां मृत्यु जीवन का पर्याय है। और जहां सूली सिंहासन तुमने ब्रह्म होना सीख लिया। का पर्याय है। तुम्हारे भाषाकोश में कुछ और लिखा है। गुरु के गुरु सूली है। लेकिन उसी सूली पर लटककर तुम्हें पहली दफा पास आकर तुम्हें नई भाषा सीखनी होगी। कष्टपूर्ण है। क्योंकि पता चलता है कि जो सूली पर मर गया वह मैं नहीं था। इधर तुमने अपनी भाषा को खूब कंठस्थ कर लिया है। वह तुम्हारे सूली लगी, उधर सिंहासन मिला। इस तरफ सूली है, उस तरफ रोएं-रोएं में समा गई है। सिंहासन है। तुम्हें सूली भर दिखाई पड़ती है। तुम जब मुझे सुनते हो, तब तुम मुझे थोड़े ही सुनते हो। तुम तुमने जीसस के चित्र देखे होंगे; सूली को अपने कंधे पर ढोते तत्क्षण उसका भाषांतर करते हो। तुम उसका अनुवाद करते हो। हए, गोलगोथा की पहाड़ी पर वे जा रहे हैं। सली ठोंक दी गई। इधर मैं कछ कहता है, तम तत्क्षण अपनी भाषा में उसका जमीन में, उन्हें सूली पर लटका दिया गया है। लेकिन ये अधूरे अनुवाद कर लेते हो, भाषांतर कर लेते हो। जब तुम यह | चित्र हैं। ये चित्र जीसस की नजर से नहीं बनाए गए। ये जिन छोड़ोगे, तभी तुम मेरे पास आओगे। तुम्हारी भाषा मेरे और लोगों ने देखा होगा गोलगोथा की सड़क पर जीसस को सूली ले तुम्हारे बीच बाधा है। 13511 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340149
Book TitleJinsutra Lecture 49 Mukti Dwandwatit Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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