________________ HINRNAP O ORIENong त्वरा से जीना ध्यान है तो उस जीवन का कोई अर्थ न होगा। क्योंकि सारा अर्थ और जन्म से तो सभी शूद्र होते हैं, फिर कभी कोई, एकाध कोई अभिप्राय तो मनुष्य की प्रतिभा में है, प्रज्ञा में है। उसके बोध में विरला, कोई जाग्रत, जागा हुआ ब्राह्मण हो पाता है। ब्राह्मण है। गहन मस्तिष्क के अंतस्तलों में छिपा है जीवन का अर्थ। तभी होता है, जब उसे अपनी जड़ों की स्मृति आती है। ब्राह्मण तो महावीर कहते हैं-'सीसं जहा सरीरस्स'-जैसा सिर है तभी होता है, जब अपनी सिर से फैली जड़ों को वह आकाश में शरीर में अत्यंत मुख्य, मालिक, राजा, सिंहासन पर बैठा। खोज लेता है। जो सहस्रार तक पहुंचा है, वही ब्राह्मण है। 'जहा मलम दुमस्स या' और जैसे जड़ें हैं वृक्ष की। वक्ष को अन्यथा कुछ और होगा। काट दो, नया अंकुर आ जाएगा—जड़ें भर बचा लो। जड़ें काट महावीर कहते हैं, 'जैसे सिर है मनुष्य के शरीर में और जैसे दो, बड़े से बड़ा वृक्ष समाप्त हो जाएगा। इसीलिए तो उपनिषद जड़ें हैं वृक्षों में।' कहते हैं कि आदमी उलटा वृक्ष है। उसकी जड़ें ऊपर की तरफ, जड़ों को काट दो, कितना ही बलशाली वृक्ष मर जाएगा। या सिर में हैं। उलटा लटका वृक्ष है मनुष्य। | जड़ों को काटते रहो, तो वृक्ष दीन-हीन हो जाएगा। बड़ा महत्वपूर्ण प्रतीक है उपनिषदों में। और सब वृक्ष की जड़ें। जापान में टोकियो के बड़े बगीचे में चार सौ साल पुराना एक जमीन में हैं, आदमी के सिर की जड़ें आकाश में। पैर आदमी की पौधा है। वह अगर वृक्ष होता, तो एकड़ों जमीन घेरता। लेकिन शाखाएं-प्रशाखाएं हैं। जड़ें उसके सिर में हैं। सूक्ष्म जड़ें हैं। वह एक छोटी-सी बसी में चाय पीने की बसी में आरोपित ऐसा कहें कि मनुष्य की जड़ें आकाश में, अनंत आकाश में। या है। चार सौ साल पहले जिस आदमी ने उसे आरोपित किया परमात्मा में, अगर धार्मिक शब्द प्रिय हो। लेकिन एक बात | था-जरा-सी इंचभर पतली पट्टी है मिट्टी की, चाय पीने की सुनिश्चित है कि किसी गहरे अर्थ में आदमी सिर से जुड़ा है जगत बसी में, उसमें लगाया हुआ है। और बसी के नीचे छेद है, उन से। पैर से नहीं जुड़ा है। | छेदों से वह जड़ें काटता रहा है। तो पौधा चार सौ साल पुराना है, इसीलिए तो ब्राह्मणों ने कहना चाहा कि हम सिर हैं और शूद्र लेकिन केवल कुछ इंच बड़ा है। जराजीर्ण हो गया है। बड़ा वृद्ध पैर हैं। ऐसे यह बात दंभ की है लेकिन बात तो ठीक ही है। है। चार सौ साल लंबी यात्रा है। लेकिन ऐसा है जैसे अभी चार अगर ब्राह्मण ब्राह्मण हो, तो सिर है। क्योंकि ब्राह्मण का अर्थ दिन का पौधा हो। जड़ें नीचे कटती गयीं, रोज-रोज जड़ों को होता है, जिसने ब्रह्म को जान लिया। वह जानने की घटना तो | माली छांटता रहा। फिर उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम करती सहस्रार में घटती है, सिर में घटती है। जिसने ब्रह्म को जान रही। वह पौधा अनूठा है। जड़ों को बढ़ने न दिया, नीचे जड़ें न लिया, वही ब्राह्मण है। तो ठीक है कि ब्राह्मण सिर है। और यह बढ़ी, ऊपर वृक्ष न बढ़ा। वृक्ष को काटो, फिर नया हो जाएगा कहना भद्दा है और आज के लोकतांत्रिक युग में तो बहुत भद्दा है जड़ को काट दो, बस वृक्ष समाप्त हुआ। उसके प्राण जड़ में हैं। कि शूद्र पैर है, लेकिन बात सही है। इसे हम उलटाकर कहें तो आदमी की जड़ें कहां हैं। होनी तो चाहिए ही, क्योंकि आदमी बात ठीक हो जाती है। जो अभी पैर ही हैं, वे शूद्र हैं। शूद्र पैर हैं, बिना जड़ों के जी नहीं सकता—कोई नहीं जी सकता। हम यह कहना तो अभद्र है, लेकिन जो अभी भी पैर हैं और जिनका अस्तित्व में किसी न किसी भांति अपनी जड़ों को फैला रहे होंगे। सहस्रार नहीं खुला, जिनके मस्तिष्क में छिपे कमल अभी बंद हमें पता हो, न पता हो— वृक्षों को भी कहां पता है कि उनकी पड़े हैं, वे शूद्र हैं। प्राचीन दृष्टि ऐसी थी कि पैदा तो सभी शूद्र जड़े हैं। वक्षों को भी कहां बोध है कि गहरे अतल अंधेरे में फैली होते हैं—सभी--ब्राह्मण भी, पैदाइश से तो सभी शूद्र होते हैं, | उनकी जड़ें हैं। आदमी की भी जड़ें हैं—गहरे अतल प्रकाश में फिर कभी कोई साधना से ब्राह्मण होता है। फैली, आकाश में फैली। ठीक कहते हैं उपनिषद, आदमी उलटा महावीर की क्रांति का यह अनिवार्य हिस्सा था। महावीर और | वटवृक्ष है। जड़ें ऊपर हैं, शाखाएं नीचे की तरफ फैली हैं। बुद्ध दोनों की अथक चेष्टा थी कि ब्राह्मण का संबंध जन्म से छूट | तुमने सुना होगा, बेबीलोन में दुनिया के सात चमत्कारों में एक जाए। कोई व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण नहीं होता। हो नहीं सकता। चमत्कार था, और वह था एक उलटा बगीचा। वृक्ष इस तरह क्योंकि ब्राह्मणत्व अर्जित करना होता है। मुफ्त नहीं मिलता। लगाये गये थे कि नीचे लटक रहे थे। एक बड़ा सेतु बनाया गया 285 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org