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________________ जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है है। जहां से चाह आती है, वहीं जीवेषणा है। एक क्षण को तुमने रखना ही जीवेषणा है। तो मौत नहीं घटेगी, देर लग जाएगी। मेरी आंख में देखा, या मैंने तुम्हें देखा। एक धक्का लगा, एक मांगा, तो देर लग जाएगी। सुख की तरंग उठी, कुछ चुभा हृदय में। पीड़ा भी हुई, लेकिन छोड़ो परमात्मा पर, जो दे रहा है उसके लिए धन्यवाद दो। जो मीठी हुई। जो पीड़ा को देखेगा सिर्फ, वह भाग खड़ा होगा। जो नहीं दे रहा है, जानो कि अभी तैयारी न होगी। क्योंकि जब मिठाई को देखेगा सिर्फ, वह और की मांग करने लगेगा। लेकिन फसल के पकने का समय आ जाता है, फसल पकती ही है। दोनों डांवाडोल हो गये। सभी चीजें अपने समय पर पक जाती हैं। तुमने सुना, जीसस को जब सूली लगी तो उनके दोनों तरफ दो और हर बात की घड़ी, हर बात का बंधा हुआ क्रम है। छलांगें चोरों को भी सूली दी गयी। जीसस बीच में थे, सूली पर लटके, नहीं लगती। क्रमिक, धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता तैयारी दोनों तरफ दो चोरों को भी सूली दी गयी थी। जिनने ऐसा होती है। क्योंकि तुम अगर तैयार न हो और कुछ तुम्हें मिल आयोजन किया था, उनका तो केवल अर्थ इतना ही था कि वे जाए, तो तुम गंवा दोगे। तुम अगर तैयार न हुए और कुछ तुम्हारी जीसस को भी एक चोर-लफंगे से ज्यादा नहीं समझते। इसलिए अपात्रता में गिरा, तो नष्ट हो जाएगा। दो चोरों के साथ-साथ सूली दी थी। लेकिन, ईसाई संतों ने बड़ी | धीरे-धीरे, आहिस्ता-आहिस्ता चुभने दो इस छुरी को। इसकी अनूठी बात इस साधारण-सी घटना में खोज ली। यह पीड़ा को भी स्वीकार करो, इसके प्यार को भी स्वीकार करो। साधारण-सी घटना एक गहरा बोध-प्रसंग बन गयी। इसकी पीड़ा भी, इसकी मिठास भी। तुम चुनो मत। जितना हो जैकब बहुमे ने कहा है कि जीसस के दोनों तरफ दो चोर खड़े रहा है, उसके लिए धन्यवाद; जो नहीं हो रहा है, उसके लिए हैं, लटके हैं सूली पर, अगर तुम जरा बायें झुककर नमस्कार भरोसा कि होगा। ऐसी श्रद्धा से जो चलता है, वह एक दिन मिट किये तो चोर को नमस्कार हो गयी, दायें झुककर नमस्कार किये भी जाता है और मिटकर सर्वांग सुंदर भी हो जाता है। तो चोर को नमस्कार हो गयी। ठीक बीच में रहे तो ही तम्हारा नमस्कार जीसस को पहंचेगा। यह तो बड़ी मीठी बात कही बहमे दूसरा प्रश्न : जबसे आपके शिष्यों का, आपके साहित्य का ने। जरा इधर-उधर हुए कि चूके। सत्य मध्य में है। दोनों तरफ और अंततः आपका ही संपर्क उपलब्ध हुआ है, मेरे जीवन में चोर हैं। दोनों तरफ असत्य है। परमात्मा मध्य में है, दोनों तरफ प्रेम का प्रवाह आरंभ हो गया है। हर आदमी, हर चीज अच्छी शैतान है। लगने लगी है। परंतु कई बार जब मैं प्रेम से भरकर दूसरे के तो न तो भाग जाना घबड़ाकर, न बहुत वासना से भरकर मेरी गले मिलना चाहता हूं, तो वह दूसरा संकुचा जाता है और फिर तरफ भागने लगना। दोनों हालत में चूक हो जाएगी, क्योंकि मैं पीछे हट जाता हूं। कृपया बतायें कि ऐसे समय में मैं क्या दोनों अतियां हैं। तुम जहां हो वहीं शांति से, स्वीकार-भाव से | करूं? प्रतीक्षा करना। वहीं नत हो जाना, वहीं तुम्हारा सिर झुके। न तो तुम कहना कि मैं चाहता हूं ऐसा हो, न तुम कहना मैं चाहता हूं प्रेम नाजुक बात है। प्रेम को अगर ठीक से समझा, तो उसमें वैसा हो। तुम कहना, अब मैं कुछ चाहता ही नहीं। चाह को तुम यह बात समाहित है कि दूसरे का ध्यान रखना। प्रेम का अर्थ ही हटा लेना। क्योंकि चाह डांवाडोल कर देगी। चाह कंपित कर यह होता है कि दूसरे का ध्यान रखना। देगी। तुम बेचाह होकर, जो घटे उसके स्वीकार-भाव से भरना। तुम किसी के गले लगना चाहते हो, लेकिन दूसरा लगना इसे समझो। चाह में अस्वीकार है। बेचाह में स्वीकार है। चाहता है या नहीं? इतना काफी नहीं है कि तुम गले लगना जब तुम कहते हो, जो हो उसके लिए मैं राजी हूं, तो मृत्यु, चाहते हो। शुभ है कि तुम्हारे हृदय में गले लगने का भाव जगा। आत्यंतिक-मृत्यु भी जल्दी घटेगी। लेकिन तुमने कहा कि जल्दी धन्यभागी हो! आभारी बनो प्रभु के। लेकिन इतने से जरूरी नहीं घटे, तुम यह कह रहे हो कि मैं अपनी आकांक्षा जो घट रहा है है कि दूसरे को तुम्हारे कंधे लगना ही पड़ेगा। तब तो प्रेम न उसके ऊपर रखता हूं। यह अपनी आकांक्षा को घटने के ऊपर हुआ, तब तो बलात्कार हुआ। तब तो तुमने दूसरे के साथ 267 Jain Education International 2010 03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340145
Book TitleJinsutra Lecture 45 Jivan Taiyari Hai Mrutyu Pariksha Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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