________________ जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है है। एक नये जीवन का आरोपण, उस नये जीवन का भीतर की तरफ! पहले जमीन पर ही आंखें भी गड़ी थीं। एक तालमेल बढ़ना। फिर वह उसी बच्चे के लिए जीती है। नौ महीने तक था। दुकान पर थे तो दुकान पर थे। अब पैर दुकान पर होंगे, उसी के लिए सांस लेती है, उसी के लिए भोजन करती है, उसी आंखें मंदिर में। अब करते होओगे भोजन, स्मरण आत्मा का। के लिए उठती-बैठती है। स्वभावतः एक गहन सृजन की प्रक्रिया | अब गिनते होओगे रुपये और भीतर याद परमात्मा की। अब होती है, लेकिन पीड़ा! फिर बच्चे का पैदा होना और बड़ी अड़चन हुई। अब एक द्वंद्व शुरू हुआ। एक महाद्वंद्व, एक प्रसव-पीड़ा है। संघर्ष, जिसको गीता कहती है-कुरुक्षेत्र। अब एक धर्मक्षेत्र, तो जैसे-जैसे तुम मेरे जाल में फंसोगे, वैसे-वैसे पीड़ा बढ़ेगी। कुरुक्षेत्र, उपद्रव शुरू हुआ! अब एक बड़ा संघर्ष है। तुम गर्भित हुए। सत्य ने तुम्हारे भीतर जगह बनायी। अब तुम्हें आज भी है 'मज़ाज़' खाकनशीं बहुत-सी पीड़ाएं होंगी जो तुम्हें कभी भी न हुई थीं। वह सत्य को | और नजर अर्श पर है क्या कहिये जन्म देने की पीड़ाएं हैं। और वे बढ़ती जाएंगी क्रमशः, जैसे-जैसे। फिर वही रहगुजर है क्या कहिये नौ महीने का समय करीब आयेगा वे बढ़ती जाएंगी। और जिंदगी राह पर है क्या कहिये आखिरी क्षण में तो महापीड़ा होगी। लेकिन उस पीड़ा से गुजरे आह तो बेअसर थी बरसों से बिना कोई सत्य को जन्म नहीं दे पाता। नग्मा भी बेअसर है क्या कहिये सत्य को जन्म देना हो, तो गर्भ धारण करना ही होगा। जिसको हुस्न है अब न हुस्न के जलवे तुम अभी कांटा कह रहे हो, वह तुम्हारे भीतर पड़ गया गर्भ का | अब नज़र ही नज़र है क्या कहिये बीज है। चुभता है, इसलिए कांटा कहते हो, ठीक। गड़ता है, धीरे-धीरे, सौंदर्य तो सब खो जाएगा, दिखायी पड़नेवाली इसलिए कांटा कहते हो, ठीक। लेकिन उसी कांटे में तुम्हारा चीजें तो सब खो जाएंगी, रूप तो सब खो जाएगा, आकार तो सारा भविष्य, तुम्हारी सारी नियति निर्भर है। अगर सत्य तुमसे सब खो जाएगा, आंख ही बचेगी। शुद्ध। जन्म ले ले, तो वही तुम्हारा जन्म होगा। और निश्चित ही यह | अब नजर ही नजर है क्या कहिये / पीड़ा साधारण प्रसव की पीड़ा से बहुत ज्यादा है। क्योंकि उसी को तो हमने दर्शन कहा है, द्रष्टा की स्थिति कहा है, धारण प्रसव की पीड़ा में तो तुम दूसरे को जन्म देते हो, नौ साक्षीभाव कहा है। सब खो जाएगा। सब दृश्य खो जाएंगे। महीने में झंझट खतम हो जाती है। यहां तो तुम्हें अपने को जन्म | सिर्फ आंख। पहले तो बड़ा सूनापन, बड़ा सन्नाटा लगेगा। देना है। समय का कुछ पक्का नहीं कितना लगेगा। नौ महीने भी तो पूछा है, अकेले-अकेले तड़फ रहे हैं, इसका जिम्मेवार लग सकते हैं, नौ वर्ष भी लग सकते हैं, नौ जन्म भी लग सकते कौन? मुझे पता है, जब व्यक्ति परमात्मा की तरफ चलता है, हैं। तुम पर निर्भर है। कितनी त्वरा, कितनी प्यास, और झेलने तो पहले तो संसार छूटने लगता है हाथों से, भीड़ विदा होने की कितनी क्षमता! अहोभाव से झेलने की क्षमता, आनंदभाव लगती है, अकेला रह जाता है। परमात्मा मिले, इसके पहले से झेलने की क्षमता, नाचते हुए झेलने की क्षमता, इस पर निर्भर बिलकुल अकेला हो जाता है। जब बिलकुल अकेला हो जात करता है; उतना ही समय कम होता जाएगा। | है, तभी तो परमात्मा के योग्य बनता है। महावीर ने उस पीड़ा स्वाभाविक है। लेकिन उस पीड़ा को सौभाग्य बनाने की | अकेलेपन को कैवल्य कहा है। जब बिलकुल केवल तुम ही रह चिंता करो। गये, तुम्हारा होना ही रह गया। आज भी है 'मज़ाज़' खाकनशीं हुस्न है अब न हुस्न के जलवे, और नजर अर्श पर है क्या कहिये अब नज़र ही नज़र है क्या कहिये! जैसे ही तुम मेरे करीब आये, एकदम से तुम आसमान पर तो न पीड़ा होगी। बड़ी गहन रात्रि मालूम होगी। पर सूरज के ऊगने पहुंच जाओगे। रहोगे तो तुम जमीन पर, सिर्फ नजर आकाश की के पहले रात तो गहन अंधेरी हो ही जाती है। तरफ उठेगी। अड़चन शुरू हुई। पैर जमीन पर, आंख आकाश | इस एकांत को अकेलापन मत समझो। इस एकांत को उसे ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org