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________________ गुरु है मन का मीत चोट मारता है। कांटा चभता तो जरा-सी जगह में है, लेकिन सिकुड़ जाता है। पेट ठंडा हो जात पीड़ा विस्तीर्ण हो जाती है। छोटा-सा पाप, सारे शरीर को घाव गरमी खोपड़ी में आ गयी, पेट से खो गयी। गरमी ऊपर चढ़ बना देता है। छोटी-सी भूल, छोटा-सा झूठ, सारे शरीर पर गयी, पेट में न रही। अब भोजन तो पड़ता है पेट में, लेकिन फैल जाता है, तन-प्राण पर फैल जाता है। तो किसी भूल को पाचक-रस उससे मिलते नहीं। भोजन भारी हो जाता है। यह छोटी मत समझना। कांटे को छोटा समझकर तुम छोड़ तो नहीं पचेगा नहीं। या तो कब्जियत बनेगी, या डायरिया बनेगा, देते। तुम यह तो नहीं कहते है ही क्या, जरा-सा कांटा है। लेकिन इससे मांस-मज्जा निर्मित न होगी। अब यह ठंडा पेट छह फीट के शरीर में एक आधा इंच का कांटा लगा है, क्या | इस भोजन को पचाने में बड़ी देर लगायेगा, बड़ी मुश्किल से परवाह! लेकिन आंधा इंच का कांटा छह फीट के शरीर को | पचायेगा। एक रोग की गांठ पैदा होगी। विक्षुब्ध कर देता है। तुम भोजन कर रहे हो, तुम झूठ बोल दिये भोजन करते वक्त, महावीर ने शब्द चुना है, शल्य। वह कहते हैं, साधारण तत्क्षण पेट सिकुड़ जाता है। क्योंकि एक विरोधाभास पैदा हो आदमी बड़े शल्यों से बिंधा है। और निशल्य होना है। एक भी गया। तुम जब झठ बोलो तब खयाल करना, तम्हारे शरीर के शल्य न रह जाए। भीतर तत्क्षण रूपांतरण हो जाता है। कलियां बंद हो जाती हैं। इसे हम समझें। तुम सुरक्षा करने को तत्पर हो जाते हो। तुम लड़ने-झगड़ने को एक झूठ तुम बोले। शल्य चुभा। कांटा बिंधा। जैसे ही तुम राजी हो जाते हो। हजार तर्क तुम्हारे मन में घूमने लगते हैं, कैसे झूठ बोलते हो, तुम एक विरोधाभास में पड़े, एक कंट्राडिक्शन झूठ को सच सिद्ध करें। सिद्ध तो झूठ को ही करना पड़ता है, पैदा हुआ। और जहां ऊर्जा में विरोधाभास पैदा होता है; वहीं सत्य तो स्वयंसिद्ध है। इसलिए जो सत्य बोलता है, उसके भीतर अड़चन, पीड़ा, मवाद पड़ती है। वहीं घाव, फोड़ा पैदा होता है। विचार कम हो जाते हैं। कोई जरूरत नहीं रह जाती। सत्य को तुमने एक झूठ बोला, झूठ बोलने का अर्थ ही यह है कि तुम | विचार की जरूरत नहीं, जैसा था वैसा कह दिया। झूठ के लिए जानते हो कि सच क्या है, उसके विपरीत बोला। जो तुम हृदय हजार विचार करने पड़ते हैं; सेतु बनाने पड़ते हैं, व्यूह रचना से जानते हो, उसके विपरीत कहा। जो तुम्हारा हृदय कह रहा है, पड़ता है, क्योंकि अब झूठ बोल दिये हैं इसे सत्य सिद्ध करना उससे विपरीत तुम्हारी वाणी ने कहा। तुम्हारे भीतर एक विरोध है। सबसे कठिन काम है जगत में जो नहीं है, उसको 'है' पैदा हुआ। जानते थे कुछ, कहा कुछ। थे कुछ, बताया कुछ। | जैसा सिद्ध करना। अब इस सिद्ध करने में तुम्हें बड़ी अड़चन एक उलझन पैदा हुई, एक गांठ पड़ी। यह गांठ गड़ेगी। यह गांठ होगी। कांटा चुभ गया। तुम्हें सतायेगी, यह तुम्हें ठीक से सोने न देगी। यह तुम्हें ठीक से ऐसे कांटे चुभते जाते हैं, जिंदगी की यात्रा पर जैसे-जैसे हम भोजन न करने देगी। आगे बढ़ते हैं, कांटे ही कांटे चुभते जाते हैं! एक घड़ी ऐसी आती मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि भोजन करने के पहले कम से कम है, सारे तन-प्राण में शल्य ही शल्य हो जाते हैं, कांटे ही कांटे हो आधा घंटा न तो झूठ बोलना, न क्रोध करना, न कोई वैमनस्य, | जाते हैं। कितना झूठ बोले? कितनी विकृतियों को न कोई द्वेष, न कोई ईर्ष्या, तो ही भोजन ठीक से पचेगा। तुम | पाला-पोसा? कितने जहर पीये? कितने अपने हाथ से क्रोध कोशिश करके देखो। भोजन कर रहे हो, उसी वक्त झूठ | की अग्नियां जलायीं? कितना अपने हाथ से द्वेष और ईर्ष्या को बोलकर देखो। उसी वक्त क्रोध की बात करके देखो। अब तो पाला और सींचा? गलत को ही सींचते रहे। अगर आत्मा खो इस पर प्रयोग किये गये हैं, यंत्र लगाकर जांच की गयी है कि जाती है, तो आश्चर्य क्या! अगर आत्मा दब जाती है इन सभी आदमी भोजन कर रहा है, यंत्र के पर्दे पर उसके पेट की परी कांटों के भीतर. तो आश्चर्य क्या। आ तस्वीर दिखायी पड़ रही है, पाचक-रस छूट रहे हैं और तभी कैसे, तुम तो कांटों को संभाल रहे हो। जिन्हें निकालना था, उन्हें पत्नी ने कुछ बात कह दी और वह आदमी क्रोधित हो गया। जैसे तुमने मित्र समझा है। जिन्हें हटाना था, जिन्हें झाड़ देना था, ही क्रोधित हुआ, पाचक-रस बंद हो जाते हैं। शरीर भीतर झटकार देना था, उन्हें तुम छाती से लगाकर बैठे हो। तुमने उन्हें 2490 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340144
Book TitleJinsutra Lecture 44 Guru hai Man ka Meet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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