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________________ जिन सूत्र भागः 2 तुम कभी चकित होओगे, तुम कोई एक शब्द ले लो, बिलकुल तुम्हारे भीतर कुछ भी ऐसा पड़ा है जो तुम बताने में डरते हो, तब निष्पक्ष शब्द: गाय, घोड़ा, हाथी या कार या कुत्ता; और शांत तक तुम बीमार रहोगे, तब तक कांटा छिदा रहेगा। तुम्हें नग्न बैठकर यह कोशिश करो कि अब कुत्ता शब्द के उठते ही तुम्हारे | होकर प्रगट हो जाना है। भीतर जो-जो शब्द उठते हैं उन्हें तुम लिखते जाओ। तुम चकित | कहते हैं महावीर, कम से कम अपने गुरु के पास तो इतना हो जाओगे। जिन शब्दों का कुत्ते से कोई संबंध नहीं है, जिन करो। शायद संसार में तो बहुत मुश्किल होगी। वहां इतने विचारों का कोई ज्ञात कारण नहीं मालूम होता कुत्ते से क्यों जुड़े समझदार व्यक्ति पाने कठिन होंगे, जो तुम्हारी भूलों को, चूकों होंगे, वे उठने शुरू हो जाते हैं। एक साधारण-सा शब्द कुत्ता को क्षमा कर सकें। वहां ऐसे व्यक्ति पाने कठिन होंगे, जो तुम्हें तुम्हारे भीतर लहर पैदा करता है और उस लहर में बंधे हुए | तुम्हारी बातों को सुनकर, तुम्हारे संबंध में कुछ निर्णय न बनाने अचेतन से न-मालूम कितने वर्षों के या जन्मों के भाव और लगें। तुम कहो कि मैंने चोरी की है, तो जो तुम्हें चोर न समझने विचार चले आते हैं, किसी तरह बंधे। लगें, ऐसे व्यक्ति पाने कठिन होंगे। तुम कहो कि मैंने पाप किया कुत्ता शब्द कहते ही शायद तुम्हें याद आ जाए अपना कोई है, तो तुम्हें पापी समझकर निंदित न मान लें। इसीलिए तो मित्र, जिसके पास कुत्ता था। मित्र की याद आते ही आ जाए आदमी डरा है। तुम किसी से कह नहीं सकते कि मैं झूठ बोला। उसका मकान। मकान की याद आते ही तुम चल पड़े। कुत्ते से लोग कहेंगे, झूठ बोले! तो तुम्हारा भरोसा टूट जाएगा। तुम्हें यात्रा शुरू हुई थी, तुम कहां पूरी करोगे, कहना कठिन है। जिंदगी में अड़चन होगी। तो झूठ को तुम छिपाते हो। पता भी इसको मनोवैज्ञानिक कहते हैं-'फ्री एसोसिएशन।' चल जाए, तो तुम सिद्ध करने की कोशिश करते हो कि नहीं, मैं स्वतंत्र-साहचर्य का नियम। तुम्हारे भीतर सभी चीजें गुंथी पड़ी सच ही बोला। अगर पकड़ भी जाओ, तो तुम कहते हो हैं। सभी तार उलझे हैं। एक तार खींचो, दूसरे तार खिंच आते भूल-चूक से हो गया होगा, मेरे बावजूद हो गया होगा, मैंने चाहा हैं। लेकिन यही गुत्थी तो मनुष्य का रोग है। यही तो उसका | न था। पहले तो तुम छूटने की कोशिश करते हो कि किसी को शल्य है। इस गुत्थी को सुलझाना है। कहीं से भी शुरू करो। पता न चल पाये। मनस्विद कहता है. तम बोले जाओ। चिकित्सक सनता रहता संसार में ऐसी आंखें खोजनी कठिन हैं, जो तमने क्या किया है। कुछ करता नहीं, कुछ बोलता नहीं, सिर्फ इतनी याद दिलाता क्या नहीं किया, क्या सोचा क्या नहीं सोचा, इसके बावजूद भी रहता है कि हां, मैं यहां हूं। मैं सुन रहा हूं, ध्यानपूर्वक सुन रहा | तुम्हारा मूल्य कम न करें। जो तुम्हारे अस्तित्व को बेशर्त स्वीकार | हूं। वह जितने ध्यानपूर्वक सुनता है, उतने ही तुम्हारे गहरे | करते हों। गुरु का यही अर्थ है, एक ऐसे आदमी को खोज लेना अचेतन से चीजों को निकलना आसान हो जाता है। इसीलिए तो जो उन रास्तों से गुजरा है, जिन पर तुम अभी हो। एक ऐसे हम किसी आदमी को खोजते हैं जो हमारी बात शांति से सुन ले। आदमी को खोज लेना जिसने भूलें की हैं, पाप कितना दूभर हो गया है ऐसे आदमी का पाना, जो हमारी बात हैं और उनके पार हो गया। एक ऐसे आदमी को खोज लेना जो शांति से, ध्यानपूर्वक सुन ले। जब भी तुम्हें कोई ऐसा आदमी | समझेगा तुम्हारी पीड़ा, क्योंकि इसी पीड़ा से वह भी गुजरा है। मिल जाता है जो घड़ीभर तुम्हारे दिल की बात सुन लेता है, तुम तो अगर तुम्हें कोई ऐसा गुरु मिल जाए जिसकी आंखों में हलके हो जाते हो। कहां से आता है हलकापन? कोई बात तुम्हारी निंदा न हो, तो ही गुरु मिला। जहां निंदा हो, वहां तो पत्थर की तरह छाती पर पड़ी थी, किसी ने बांट ली। कुछ किसी समझना कि संसार ही जारी है। ने बोझ तुम्हारा उतार लिया। किसी ने सहारा दे दिया, तुम्हारे सिर इसे खयाल में लेना। अगर तुम जाओ किसी मुनि, किसी पर जो पत्थर था उसे नीचे रख दिया। बात करके आदमी हलका साधु, किसी संन्यासी के पास और तुम कहो कि मैं बहुत बुरा हो जाता है। आदमी हूं, और मेरे मन में चोरी के भाव उठते हैं, और कभी ऐसे मनस्विद इस सदी में जाकर इस सूत्र को पकड़ पाये। महावीर सपने भी मैं देखता हूं कि पड़ोसी की पत्नी को ले भागा हूं, और ने आज से ढाई हजार साल पहले कहा है। कहा है कि जब तक | कभी किसी की हत्या कर देने की भी वासना जग उठती है, कभी 244 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340144
Book TitleJinsutra Lecture 44 Guru hai Man ka Meet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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