________________ too सात - ज्ञान ही क्रांति सी 2030hindi वही सही। लेकिन अगर तुममें हिम्मत है और मेरे साथ आ मैं महावीर को ठीक कहता हूं तो मैं जैनों को ठीक नहीं कह रहा सकते हो, तो आश्वासन है-आनंद भी मिल सकता है। हूं, ध्यान रखना। अगर जैन ठीक हैं, तो महावीर गलत हैं। अहोभाव भी हो सकता है। तम धन्यभागी हो सकते हो। लेकिन अगर महावीर सही हैं, तो जैन गलत हैं। महावीर और जैनों का निर्णय तो करना पड़े, कीमत तो चुकानी पड़े। यह निर्णय करना क्या लेना-देना ! इन्हीं दुष्टों के कारण तो सब खराब हुआ। इन्हीं ही कीमत चुकानी है। नहीं तो सभी कोई आनंद को उपलब्ध हो | ने तो डुबाया। ये खुद तो डूबे, महावीर को भी ले डूबे। महावीर जाएं। जो निर्णय करते हैं, वही हो पाते हैं। इनसे मुक्त होते, तो...तो ज्यादा साफ होता आकाश। इन्हीं की 'जिन-सूत्र पर प्रवचन अच्छा लगता है। पर भोग में भी रस | बदलियां तो घिर गयीं, उनका सूरज ढक गया। बहुत है।' जिन-सूत्र पर प्रवचन क्यों अच्छा लगता है? इन्हीं के कारण तो महावीर को समझना मुश्किल हो गया है। जिन-सत्र से क्या लेना-देना। जिन-सत्र हिंदओं के कारण कृष्ण को समझना मुश्किल। ईसाइयों के के कारण? तो प्रवचन से क्या लेना! जिन-सूत्र के कारण कारण जीसस को समझना मुश्किल। मुसलमानों के कारण अच्छा लगता है, तो उसका अर्थ हुआ कि तुम्हारे अहंकार को मुहम्मद की फजीहत! क्योंकि जिसने मुसलमान को देखा, तृप्ति मिलती है कि अहो, धन्यभाग, जैन-कुल में पैदा हुआ! | अनजाने जो मुसलमान कर रहा है उसका दोषारोपण मुहम्मद पर ऐसी मूढ़ता सभी को सिखायी गयी है। हिंदू-कुल में पैदा हुए, | भी चला जाता है। जाएगा ही। जिसने जैन को गौर से देखा, वह धन्यभाग! भारत-भूमि में पैदा हुए, धन्यभाग! जैसे और सब महावीर के चरणों में सिर नहीं झुका सकता। क्योंकि अगर यह अभागे हैं दुनिया में। जैनों को तो सिखाया जाता है बचपन से कि महावीर का परिणाम है, तो महावीर में कुछ दोष रहा ही होगा। तुम जैन-कुल में पैदा हुए, धन्यभागी हो। एक तो मनुष्य होना लेकिन खयाल रखना, अनुयायी अकसर गुरु से उलटे होते दुर्लभ, फिर जैन होना! बिलकुल दुर्लभ! हैं। शायद जीवित गुरु के पास जो अनुयायी इकट्ठे होते हैं, वे तो जिन-सूत्र पर प्रवचन अच्छा लगता है उसका कुल कारण | गुरु की थोड़ी-बहुत मानते-थोड़ी बहुत कहता हूं, पूरी मान इतना ही है कि तुम्हारे अहंकार को तृप्ति मिलती है, जब मैं कहता | लेते तो न-मालूम कितने महावीर एक-साथ पैदा हो हूं महावीर ठीक, तुम्हें लगता है-बिलकुल ठीक; तो हम भी जाते-थोड़ी-बहुत मान लेते हैं; पर थोड़ी-बहुत सही, उतनी | ठीक, तो मैं भी ठीक! जब मैं कहता हूं गीता ठीक, कृष्ण ठीक, थोड़ी भी उनको बचा लेती है। फिर उनके बच्चे पैदा होते हैं, फिर हिंद अकड जाता है, कहता है-बिलकल ठीक। नहीं कि उसे उनके बच्चे पैदा होते हैं, महावीर दर पड़ते जाते हैं। फिर महावीर मैं समझ में आ रहा हूं, कि कृष्ण समझ में आ रहे हैं, कि गीता एक पिटी हुई लकीर रह जाते हैं। समझ में आ रही है, उसे सिर्फ अहंकार में खुजलाहट आ रही है, जिसे तुमने नहीं चुना है, वह कभी भी तुम्हारे लिए जीवंत धर्म खुरदुरी आ रही है। फुरफुरी आ रही है। वह इसका अहंकार | नहीं हो सकता। जो तुमने मां-बाप से ले लिया है, परंपरा से ले मजा ले रहा है, वह कह रहा है-बिलकुल ठीक। फूल के लिया है, संस्कार से ले लिया है, वह मुर्दा लकीर है। उसमें कोई कुप्पा हो जाता है। प्राण नहीं। इसीलिए रस आ रहा होगा। यह रस नहीं है। बड़ा रुग्ण रस तुम थोड़ा सोचो, तुम मेरे पास आये हो, तो तुम्हारे जीवन में है। यह स्वस्थ नहीं है, यह बीमार है। यदि तुम मुझे सुनते हो, तो एक उल्लास होगा। तुमने मुझे चुना है, खोजा है, तुम मर्जी से जो मैं कह रहा हूं उसकी फिकिर करो। तुम खूटियों की फिकिर आये हो अपनी, कोई तुम्हें लाया नहीं-वस्तुतः रोकनेवाले बहुत कर रहे हो। मैं क्या खंटी पर टांग रहा हूं, उसकी फिकिर करो।। हैं, लानेवाला तुम्हें यहां कौन है! हजार मिले होंगे रास्ते में गठलियां गिन रहे हो. आम चसो। मगर मन बडा पागल है। जिन्होंने कहा होगा-अरे, कहां जाते हो, रुको। फिर भी तम अगर महावीर की मैंने प्रशंसा कर दी, जैन अकड़कर चलने उनको पार करके आये हो। बहुत चलते हैं, थोड़े से पहुंच पाते लगता है। तो वह कहता है कि फिर ठीक; तो हम जो मानते थे, हैं। बीच में अनेक लोग हैं रोकनेवाले, जो उन्हें रोक लेते हैं। तो बिलकुल ठीक। तुम्हारी मान्यता को ठीक नहीं कह रहा हूं। जब तुम्हारे आने में तुम्हारा बल है, तुम्हारा संकल्प है। लेकिन तुम्हारे | 231 Jain Education International 2010 03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org