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________________ जिन सूत्र भाग : 2 हैं, उन्हीं का नाम मनोवैज्ञानिक है। वे व्यावसायिक हैं, उनका | छोड़ दौड़ो सब साज-सिंगार, कोई और काम नहीं है। उनका काम यह है कि वे ध्यानपूर्वक रास की मुरली रही पुकार। तुम्हारी बात सुनते हैं। सुनते भी हैं या नहीं, यह भी कुछ पक्का गयी सहसा किस रस से भींग नहीं है, लेकिन ध्यानपूर्वक जतलाते हैं कि सुन रहे हैं। आदमी | वकुल वन में कोकिल की तान? घंटाभर अपनी बकवास उन्हें सुनाकर हलका अनुभव करता है। चांदनी में उमड़ी सब ओर और इसके लिए पैसे भी देता है। महंगा धंधा है। काफी पैसे देने कहां के मद की मधुर उफान? पड़ते हैं। लोग वर्षों तक मनोचिकित्सा में रहते हैं। एक गिरा चाहती भूमि पर इंदु चिकित्सक को छोड़ फिर दूसरे को पकड़ लेते हैं। क्योंकि एक शिथिलवसना रजनी के संग; बार वह जो राहत मिलती है किसी को, ध्यानपूर्वक कोई तुम्हारी | सिहरते पग सकता न संभाल सुन ले, तो बड़ा आनंद आता है। तुम हलके हो जाते हो। कुसुम-कलियों पर स्वयं अनंग! महावीर ने कहा, भाषा इस तरह अगर व्यस्तता का आधार बन ठगी-सी रूठी नयन के पास गयी हो तो रोग है। तो तुम चुप हो जाना। लिये अंजन उंगली सुकुमार, 'जो वचन-उच्चारण की क्रिया का परित्याग करके वीतराग अचानक लगे नाचने मर्म, भाव से आत्मा का ध्यान करता है, उसको परम समाधि या रास की मुरली उठी पुकार सामायिक होती है।' साज-शृंगार? यह बात खयाल में रखने-जैसी है। छोड़ दौड़ो सब साज-सिंगार, कम से कम दिन में दो-चार घंटे तो मौन में बिताओ। नियम ही रास की मुरली रही पुकार। बना लो कि चौबीस घंटे में कम से कम चार घंटे तुम अपने लिए | खोल बांहें आलिंगन हेतु दे दोगे। बाकी दे दो बीस घंटे संसार के लिए, चार घंटे अपने | खड़ा संगम पर प्राणाधार; लिए बचा लो। चलो चार घंटे बहुत लगें, घंटे से शुरू करो। तुम्हें कंकन-कुंकुम का मोह, लेकिन एक घंटा अपने लिए बचा लो। उस एक घंटे में फिर तुम और यह मुरली रही पुकार। बिलकुल चुप हो जाओ। पहले-पहले कठिन होगा। ओंठ बंद | सनातन महानंद में आज कर लेना तो आसान है, भीतर की तरंगें बंद करना मुश्किल बांसुरी-कंकन एकाकार। होगा। लेकिन साक्षीभाव से उन तरंगों को देखते रहो...देखते बहा जा रहा अचेतन विश्व, रहो...देखते रहो। धीरे-धीरे तुम पाओगे, गति विचारों की कम | रास की मुरली रही पुकार। हो गयी। धीरे-धीरे तुम पाओगे, कभी-कभी बीच-बीच में दो साज-शंगार? विचार के अंतराल आने लगा, खाली जगह आने लगी, उसी | छोड़ दौड़ो सब साज-सिंगार, खाली जगह में से रस बहेगा। उसी खाली जगह में से तुम्हें रास की मुरली रही पुकार। आत्मा की झलक पहली दफे मिलेगी। यह झलक ऐसे ही होगी। एक बार भी तुम्हें भीतर की किरणों का बोध हो जाए-सुन जैसे वर्षा में बादल घिरे हों और कभी-कभी सूरज की झलक पड़ी मुरली, रास का निमंत्रण मिल गया। उस परम प्यारे की सुध मिल जाए क्षणभर को, किरणों की छटा छा जाए, फिर सूरज ढक आ गयी। वह तुम्हारे भीतर ही बैठा है। वह तुम्हें सदा से ही जाए। लेकिन एक बार झलक आने लगे, एक दफे वहां भीतर पुकारता रहा है। लेकिन तुम इतने व्यस्त हो दूसरों के साथ भाषा की मुरली का स्वर तुम्हें सुनायी पड़ने लगे, तो जीवन में जो में, बोलने में, झगड़ने में, मित्रता-शत्रुता बनाने में; तुम इतने सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वह घट गया। व्यस्त हो बाहर कि तुम्हारे भीतर अंतर्तम से उठी मुरली की पुकार साज-शृंगार? तुम्हें सुनायी नहीं पड़ती। | Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340142
Book TitleJinsutra Lecture 42 Samta hi Samayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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