________________ comments जिन सूत्र भागः है। साधना, सुविधा में विरोध दिखायी पड़ता है। लेकिन उन्हीं सदा स्थिर रहे, यह वासना ही क्यों करते हो? कल की बात ही को, जिन्होंने जीवन के गणित को समझा नहीं। क्यों उठाते हो? आज काफी है। अभी, यही क्षण काफी है। दिनभर तुम श्रम करते हो, रात सो जाते हो, विरोध का खयाल | एक क्षण से ज्यादा तो एक बार तुम्हें मिलता नहीं। एक-साथ दो नहीं किया? तुम यह नहीं कहते कि कल भी मुझे काम करना है, क्षण तो कभी मिलते नहीं। रात सो जाऊंगा, शिथिलता आ जाएगी। जागा रहूं रातभर। एक क्षण भी अगर समता का दीया ठहरा रहता है, फिकिर क्योंकि कल भी तो जागना है। तो जागने का अभ्यास जारी छोड़ो। इसी क्षण को जी लो पूरा, भरपूर। निचोड़ लो पूरा सार, रखू। अगर तुम रातभर जागे, तो कल सोओगे फिर। जाग न रस। यह जो क्षण का अंगूर है, बना लो इसकी सुरा। यही क्षण सकोगे। जीवन का गणित यही है कि विपरीत से मिलकर बना है काफी है। जैसे ही तुमने सोचा, यह जो आनंद अभी मिल रहा है, जीवन। दिनभर जागे हो, रातभर सो जाओ। रातभर ठीक से सदा रहेगा? तुम्ही ने हवा के कंप पैदा कर दिये। दीया नहीं कंप सोये, तो सुबह कल फिर ठीक से जाग सकोगे। अगर श्रम रहा है; तुम्हारे मन ने ही दीये को कंपा दिया। आनंद नहीं कंप किया है, तो विश्राम कर लो। श्रम ही श्रम करते रहे, तो भी रहा है, तुम भविष्य को बीच में ले आये। तुमने कल की चिंता पागल हो जाओगे। विश्राम ही विश्राम करते रहे, तो जीवन की बीच में डाल दी। कल है कहां? और कल जब आयेगा तब सारी संपदा खो जाएगी। श्रम और विश्राम का संतुलन है आज की तरह आयेगा। तुम आज को सम्हाल लो। जीवन। दोनों को एक-साथ साधना है। जिसने आज को सम्हालना जान लिया, उसने शाश्वत को कुछ लोग सुविधा को साधते हैं, इनको ही हम सांसारिक कहते सम्हाल लिया। लेकिन हमारी अड़चन क्या है? जो हमारे हैं। कुछ लोग साधना को साधते हैं, इन्हीं को हम संन्यासी कहते सामने होता है, अगर कभी आनंद आता है, तो हम घबड़ाते हैं रहे हैं। कि छुट तो न जाएगा? अभी आया है इसे भोगते नहीं, चिंता मेरे संन्यासी को मेरा आदेश बड़ा भिन्न है। मैं कहता हूं, करते हैं कि कहीं छूट तो नहीं जाएगा? तो आनंद छूट ही गया। सुविधा में साधना को साधना। साधना और सुविधा को तोड़ना यह मौका चूक ही गया। तुमने सोचा कि छूट तो नहीं जाएगा, मत, जोड़ना। जब साधना से थक जाओ, सुविधा में डूब जाना। कि गया। छूट ही गया। तुम टूट गये, अभी। दीया कंप गया। जब सुविधा से थक जाओ, तैयार हो जाओ, विश्राम पा लो, फिर आनंद आये, तो भोगो। कल को क्यों उठाते हो? कल से साधना में लग जाना। लेना-देना क्या है? जहां से आज आया है, वहीं से कल भी जीवन विपरीत को विपरीत की तरह नहीं देखता। वहां विपरीत आता रहेगा। फिर कल जब आयेगा, तब देख लेंगे। अभी तो परिपूरक है। यह अवसर मिला है, इसे भोग लें। अभी तो यह क्षण मिला है, इसे नाच लें। अभी तो यह गीत की कड़ी उतरी है, गुनगुना लें। दसरा प्रश्नः भीतर समता का, आनंद का दीया अधिक अभी तो पैर थिरकें, मदंग बजे। इस क्षण तो जो मिला है, इसमें समय स्थिर रहने पर भी कभी टिमटिमाने लगता है। क्या यह / से रत्तीभर भी न चूके, इसकी चिंता लो। क्योंकि क्षण भागा जा मेरे निर्माण की भूमिका है, अथवा मेरी किसी शिथिलता का रहा है। हाथ से फिसलता जाता है। निकलता जाता है। तुमने परिणाम? यह ठीकपन या सम्यकत्व का आनंद सदा अकंपित अगर जरा-ही इधर-उधर देखा कि चूके। दायें-बायें देखा कि रहे, इसके लिए अपने अनुभव से मेरा मार्ग प्रकाशित करने की गये! इतनी देर कहां है? तुमने पूछा कि यह क्षण चला तो नहीं कृपा करें। जाएगा-यह जा चुका! यह गया! तुम्हारे हाथ में नहीं है अब। | इतना भी अवकाश कहां है कि तुम सोचो? एक क्षण से ज्यादा का विचार ही मत करो। उसी के कारण __ भोगो! सोचने से काम न चलेगा। और जैसे ही तुम इस क्षण दीया टिमटिमाने लगता है। एक क्षण से ज्यादा तुम्हारे हाथ में को भोग लोगे, इस क्षण ने बुनियाद रखी आनेवाले क्षण की। नहीं है। सदा अकंपित रहे, यह आकांक्षा ही क्यों करते हो? इस क्षण को तुमने भोगा, रस की धार बही, तुम और रस की धार 11861 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org