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________________ प्रेम का आखिरी विस्तार : अहिंसा तुम्हारी यह अहिंसा है कि तुम उसके इस कर्मफल के भोगने में होगा, तो दौड़ तो पड़ेंगे। कोई राह के किनारे प्यासा मरता होगा, बाधा न दो। क्योंकि बाधा डालने से अड़चन होगी उसे। तुम तो दो बूंट पानी तो पिला सकेंगे। चुपचाप अपने रास्ते पर चलो। यह मैं इसलिए उदाहरण ले रहा हूं कि तुम्हें खयाल आ सके कि यह अहिंसा तो प्रेम के बिलकुल विपरीत हो गयी। और तर्क कितनी खतरनाक बात है। तर्क बिलकुल साफ-साफ भी तर्कयुक्त मालूम पड़ती है। तर्क खोज लिया। तर्क यह खोज | दिखायी पड़ता हो, तो भी खतरनाक हो सकता है। दमी अगर मर रहा है प्यासा, तो किसी पाप के अहिंसा तर्क नहीं है। अहिंसा गणित नहीं है। अहिंसा शद्ध कारण मर रहा है। उसको उसका कर्मफल भोग लेने दो। तुम प्रेम का भाव है। अहिंसा का अर्थ है, सारे जगत में परमात्मा है; बाधा मत दो। इस सारे जगत में मेरा ही स्वभाव व्याप्त है; मैं ही हूं दूसरा भी; कोई आदमी कुएं में गिर गया है, तो तुम उसे निकालो मत। दूसरा भी मेरे जैसा है; जो मैं अपने लिए ठीक समझता हूं, वही क्योंकि वह गिरा है अपने कर्मों के कारण। फिर कुएं में गिरे मैं दूसरे के लिए ठीक समझू। अगर मैं प्यासा मर रहा हूं, तो मैं आदमी को तुम निकाल लो और कल वह जाकर किसी की हत्या चाहूंगा कि कोई पानी पिला दे; यही मैं दूसरे के लिए ठीक कर दे, तो फिर तुम पर भी हत्या का भाग लगेगा। न तुम समझू। अगर मैं कुएं में गिर गया हूं और चिल्ला रहा हूं और निकालते, न वह हत्या कर सकता। न रहता बांस, न बजती चाहता हूं कि कोई मुझे निकाल ले, कोई हाथ बढ़े, कोई हिम्मत बांसुरी। अब बांसुरी बजी, तो बांस में तुम्हारा हाथ है। तुमने करे, तो जो मैं अपने लिए चाहता हूं, वही मैं दूसरे के लिए भी निकाला इस आदमी को, यह गया और कल इसने जाकर हत्या चाहूं। अगर मेरे पैर में कांटा गड़ा है, तो जो मैं चाहता हूं कोई कर दी किसी की, तो इस कल होनेवाली हत्या में तुमने सहभागी, खींच ले, वही मैं दूसरे के लिए भी करूं। साझेदारी की। अनजाने सही, जानकर नहीं, सोचकर नहीं, जीसस का प्रसिद्ध वचन है, जो तुम अपने लिए चाहते हो, लेकिन परिणाम तो बुरा हुआ! इसलिए तुम परिणाम से बाहर वही दूसरे के लिए चाहो! जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वही रहने के लिए चुपचाप अपनी राह पर, अलग-थलग। यह तो दूसरे के लिए मत चाहो। प्रेम से ठीक विपरीत बात हो गयी। | तेरापंथियों से तो जीसस कहीं ज्यादा महावीर के करीब हैं। प्रेम तो कहेगा कि ठीक है, अगर कल यह आदमी हत्या ऊपरी आवरण एक बात है, भीतरी आत्मा बड़ी और! और करेगा, तो भी मैं इसे बचाता हूं; अगर इसके बचाने के कारण व्यक्ति अगर सृजनात्मक हो जाए, तो व्यक्ति ही तो ईंट है समाज नर्क भी जाऊंगा, तो भी बचाता हूं। प्रेम तो कहेगा, मैं भोग लूंगा की। व्यक्ति अगर बदले, तो समूह बदलता है। चूंकि व्यक्ति नर्क, लेकिन यह जो सामने मर रहा है आदमी, इसको तो हिंसा से भरा है, इसलिए समूह युद्धों से भरा है।। बचाऊंगा। प्रेम सोचता थोड़े ही है। मनुष्य-जाति का पूरा इतिहास युद्धों का इतिहास है। लोग प्रेम सजनात्मक है। जहां भी देखता है विध्वंस हो रहा है, लड़ते ही रहे। लोगों ने लड़ने में इतनी शक्ति व्यय की है कि हम रोकता है। जहां भी देखता है कोई चीज मर रही, वहां | कल्पना भी नहीं कर सकते। अगर इतनी शक्ति सृजनात्मक हुई सहज-भाव से, बिना किसी चिंतना के, हिसाब-किताब के, होती, तो मनुष्य अब कहां होता! शायद स्वर्ग कहीं और होने की गणित के, सहज-भाव से दौड़ा चला जाता है। अब किसी के जरूरत न थी, हमने उसे यहां बना लिया होता। हम कभी के घर में आग लग गयी है और बच्चा भीतर छूट गया है, तेरापंथी स्वर्ग में पहुंच गये होते। मनुष्य-जाति की करीब-करीब नब्बे सोचेगा-अपने कर्मों का फल भोग रहा है। ऐसे अहिंसकों से प्रतिशत शक्ति युद्ध में व्यय हुई है। अभी भी वही हालत है। तो दुनिया खाली रहे, तो अच्छा! ऐसी अहिंसा से तो वे हिंसक अभी भी रक्षा-विभाग, सभी राष्ट्रों का, देश की सारी संपत्ति पी बेहतर हैं, जो रात खाना खा लेते हों, मांसाहार कर लेते हों, पानी जाता है। सत्तर प्रतिशत, पचहत्तर प्रतिशत, अस्सी प्रतिशत तक बिना छना पी लेते हों, कम से कम घर में आग लगेगी, किसी को युद्ध के मैदान की तैयारी में लग जाता है। बचाने की जरूरत होगी, तो दौड़ तो पड़ेंगे। कोई नदी में डूबता राजनेता कहे चले जाते हैं शांति की बात, उड़ाते हैं शांति के Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340140
Book TitleJinsutra Lecture 40 Prem ki Aakhiri Vistar Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size38 MB
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