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________________ करना है संसार, होना है धर्म MARATHI खीली पर टांग देंगे। वह भी नहीं मिलेगी तो दरवाजे के कोने पर जितना घर दुखी था, उससे ज्यादा दुखी घर में पहुंच जाओगे। टांग देंगे। उससे भी ज्यादा विषाद में उतर जाओगे। क्योंकि यह अनुभव कोट तुम्हारा है, तुम मुझ पर टांग रहे हो। अगर कोट मेरा हो, तुम्हें और भी दुखी करेगा। तो निश्चित तुम जब घर जाओगे तो कोट यहीं रह जाएगा। नहीं, वैसा देखना ही गलत है। जो घटता है, तुम्हारे भीतर आंसुओं के संबंध में ही नहीं, जीवन के समस्त अनुभवों के घटता है। निमित्त बाहर हो सकते हैं। जो घटता है, तुममें घटता संबंध में यह याद रखना कि जो घटता है, तुम्हारे अंतर्तम में है। तुम उसके मालिक हो। इसलिए तुम अगर ले जाना चाहो, घटता है। बाहर हो सकता है निमित्त मिल गया हो। जब तुम्हें तो दुनिया में कोई रोकनेवाला नहीं। हां, लेकिन डर भी मेरी तारों में सौंदर्य दिखायी पड़ता है, तब भी सौंदर्य तुम्हारे भीतर ही समझ में आता है। डर भी तुम्हारे भीतर है। तुम जानते हो कि घर घटता है। तारे तो केवल निमित्त हैं। उन्हीं तारों के नीचे दूसरे भी इस सरलता से तुम रो न सकोगे। तो जा रहे हैं अंधे, जिनको कुछ भी नहीं दिखायी पड़ता। तुम | एक मित्र ने कहा, यहां तो हम नाचते हैं, बड़ा आनंद आ रहा अगर उन्हें दिखाओ भी, तो वे तुम्हारी तरफ चकित होकर देखेंगे है, घर कैसे नाचेंगे? कौन रोकता है? थोड़ी प्रतिष्ठा दांव पर कि हो क्या गया है तुम्हें ! तारे हैं, इतना आश्चर्य में होने की क्या लगानी होगी, और तो कुछ दांव पर नहीं लगाना है। कौन रोकता बात है! है? कौन किसको रोक सकता है? हां, लेकिन घर नाचोगे, तो एक मंदिर की घंटियां बज रही थीं। एक संगीतज्ञ बैठा था पत्नी समझेगी कि दिमाग खराब हुआ। बच्चे भी छिप-छिपकर मंदिर के बाहर, एक वृक्ष के तले। घंटियों का मधुर कलरव उसे देखेंगे कि पिताजी को क्या हो गया। पास-पड़ोस के लोग भी आंदोलित करने लगा। उसने अपने पास बैठे मित्र से कहा, पूछने लगेंगे कि कुछ गड़बड़ हो गयी। प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी। सुनते हो, कैसा अपूर्व कलरव है। उस आदमी ने कहा, इस अब तुम्हारे ऊपर है, प्रतिष्ठा चुन लेना, या नाच चुन लेना। मंदिर के पुजारी के घंटनाद के कारण कुछ भी तो सुनायी नहीं अगर प्रतिष्ठा में ज्यादा रस होगा, प्रतिष्ठा चुन लोगे, नाच में पड़ता! ये घंटियां इतने जोर से बज रही हैं कि तुम क्या कह रहे | ज्यादा रस होगा, नाच चुन लोगे। हो, यह भी सुनायी नहीं पड़ता। जरा घंटियां बंद हो जाने दो, इस जगत में हर चीज कीमत पर मिलती है। जहां तुम्हें लगता फिर कहना। है कि कीमत नहीं चुका रहे, वहां भी कीमत चुकानी पड़ती है। वह संगीतज्ञ कह रहा है, सुनते हो घंटियों का कलरव नाद! जेब से न भी देनी पड़ती हो, चाहे ऊपर से दिखायी भी न पड़ती ऐसे अपूर्व स्वर, ऐसे पवित्र स्वर सुने हैं कभी! शायद संगीतज्ञ हो, लेकिन हर जगह कीमत चुकानी पड़ती है। अगर नाच बहुत धीरे-धीरे फुसफुसाया होगा कि कहीं घंटियों के नाद में कोई चाहिए, तो प्रतिष्ठा छोड़नी पड़ती है। अगर प्रतिष्ठा चाहिए, तो व्याघात न पड़ जाए। लेकिन मित्र कह रहा है कि जरा घंटियों की | नाच छोड़ना पड़ता है। बकवास बंद हो जाने दो, फिर कहना। मुझे कुछ सुनायी नहीं अगर तुम चाहते हो कि आंसू तुम्हारे जीवन में बहते ही रहें पड़ता। ये घंटियां कुछ सुनने दें तब न! झरने की तरह, और आंसुओं का अर्ध्य परमात्मा के चरणों पर मेरे पास तुम हो। तो मैं सिर्फ निमित्त हूं। मेरे निमित्त तुम्हारे चढ़ता ही रहे; अगर तुम चाहते हो आंसू ही तुम्हारे फूल होंगे प्रभु भीतर का दृश्य तुम्हें दिख जाए, बस काम हो गया। जो दिखे उसे के चरणों में, तो फिर तुम्हें कोई न रोक सकेगा। लेकिन दांव पर अपने भीतर ही जानना। तो तुम घर ले जा सकोगे। अगर तुमने लगाना होगा। मीरा ने कहा है, 'लोक-लाज खोयी।' नाची समझा मेरे कारण दिखा है, तो तुम मुझसे बंध जाओगे। फिर तुम होगी, तो लोक-लाज तो खोयी होगी! अब तो मीरा बड़ी घर न ले जा सकोगे। फिर घर तो तुम बहुत उदास जाओगे। और | प्रतिष्ठित है। अब तो मीरा का भजन गाओ, तो कोई लोक-लाज घर तो तुम वंचित अनुभव करोगे कि वे आंसू अब नहीं बहते, जो | न खोनी पड़ेगी। मीरा ने खोयी थी। अब तो मीरा का भजन भी हलका कर जाते थे। वह रहस्य अब नहीं उठता भीतर। वैसा प्रतिष्ठित हो गया। कभी तुम्हारे आंसू भी प्रतिष्ठित हो जाएंगे। संगीत अब नहीं छूता। तो तुम तो घर जाकर, आने के पहले लेकिन अभी, अभी तो प्रतिष्ठा खोनी पड़ेगी। 107 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340137
Book TitleJinsutra Lecture 37 Karna hai Sansar Hone Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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