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________________ जिन सूत्र भाग : 2 और आस्पेंस्की ने जब ऐसी बहुमूल्य किताब लिखी थी, तो कहते हो, बड़े हो जाओ, तब तुम्हें दिखायी पड़ेगा। तुम्हें दिखायी स्वभावतः अकड़ थी। अकड़ तो उसकी किताब के पहले पन्ने से पड़ा बड़े होकर? क्यों झूठ बोल रहे हो! कम से कम ईश्वर के ही पता चलती है। पहले पन्ने पर ही वह लिखता है कि अरस्तू ने | संबंध में तो झूठ मत बोलो। क्या तुम बच्चे को दे रहे हो? तम पहला सिद्धांत लिखा, बेकन ने दूसरा लिखा, मैं तीसरा लिखता | सोचते हो, ईश्वर दे रहे हो। तुम एक बड़े से बड़ा झूठ दे रहे हो। हूं, लेकिन तीसरा पहले से भी पहले मौजूद था। यह मेरा तीसरा इसमें ईश्वर तो मिलेगा ही नहीं तुम भी खो जाओगे। सिद्धांत पहले से भी पहले है! और किताब तो मूल्यवान है, सभी बच्चे बड़े होकर अपने मां-बाप का तिरस्कार करने लगते इसमें कोई भी शक नहीं है। हैं। क्योंकि एक न एक दिन यह पता चल जाता है कि धोखा गुरजिएफ को कोई भी नहीं जानता था। गुरजिएफ को लोगों ने दिया गया। छोटे बच्चे तो बड़ी श्रद्धा से भरे होते हैं। तुम जो भी जाना आस्पेंस्की के कारण। क्योंकि आस्पेंस्की उसका शिष्य हो | कहते हो, मान लेते हैं। अश्रद्धा जानते ही नहीं अभी। लेकिन | गया। तो जरूर इस फकीर में कुछ होगा। और गुरजिएफ ने कब तक ऐसा रहेगा! जल्दी ही सोच-विचार उठेगा, संदेह कहा, तू लिख ले। क्योंकि मैंने तेरी किताब देखी है। तू बड़े जगेंगे, प्रश्न उठेगे और तब वे देखेंगे, कि तुम भी उसी नाव में खतरे में है। तुझे पता नहीं है और तुझे खयाल है कि तुझे पता है। सवार हो जिस पर वे सवार हैं। न तुम्हें परमात्मा का पता है, ने यह साफ हो जाए पहले ही दिन, फिर बात चल पड़ेगी। तुम्हें आत्मा का पता है, तुम बकवास कर रहे हो। जिस दिन यह आस्पेंस्की आदमी निश्चित ईमानदार रहा होगा। सब दांव पर दिखायी पड़ता है, उसी दिन श्रद्धा गिर जाती है। और जिस बच्चे लगा दिया उसने। घंटेभर वह बैठा रहा उस कमरे में। सर्द रात की श्रद्धा मां-बाप से गिर जाती हो, उसकी श्रद्धा स थी, पसीना-पसीना हो गया। हाथ में लिए कलम, कागज | जाती है। सामने रखे, चेष्टा करता है, लेकिन कुछ भी याद नहीं आता जो जो इतने करीब थे, जो इतने अपने थे, वे भी धोखा दे गये। वे जानता हो, जो वस्ततः जानता हो, जिसको स्वयं जाना हो। | भी झठ बोलते रहे। वे भी दावे करते रहे, जिनका उन्हें कछ भी जिसका साक्षात्कार हुआ हो। न ईश्वर को जानता है, न आत्मा पता न था! तो अब दूसरों का क्या भरोसा? अगर इस संसार में को जानता है। कुछ भी तो नहीं जानता। अभी ध्यान भी तो नहीं तुम्हें इतने अश्रद्धालु दिखायी पड़ते हैं, उसका बुनियादी कारण जाना। अभी प्रेम भी तो नहीं जाना। परमात्मा तो बहुत दूर है, | यही है, बच्चों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया गया है। उतना अभी प्रेम भी नहीं जाना। रोता है, पसीने से तरबतर है। ही कहना, जितना तुम जानते हो। कुछ हर्ज नहीं है कह देने में कि घंटेभर बाद वापिस आता है। गुरजिएफ के चरणों में गिर मुझे पता नहीं है, खोज रहा हूं, मिल जाएगा तो तुम्हें बता दूंगा। पड़ता है। खाली कागज हाथ में दे देता है। कहता है, मैं कछ भी अगर तम्हें मिल जाए, तो मझे खबर करना। मझे पता नहीं है। नहीं जानता। मैं शिष्य होने को तैयार हूं। और वह आखिरी क्षण यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूं। है, उसके बाद उसने कभी गुरजिएफ के सामने किसी भी बात को यह झूठी अकड़ कि मुझे पता है, सबसे महंगा सौदा है। इसके जानने का दावा नहीं किया। | कारण ही चरित्र का जन्म नहीं हो पाता। क्योंकि झूठ से तो चरित्र गुरजिएफ ने खूब भरा उसे। खूब उंडेला उसमें। इतना खाली का जन्म नहीं हो सकता। पात्र मिल जाए, तो गुरु भी नाच उठता है। और इतना खाली हूं, अब यह थोड़ा सोचना। ऐसा मानने को तैयार हो जाए; खाली तो सभी हैं। मानने में | इसे तुम धर्म की शिक्षा कहते हो। सारे धर्म यह चेष्टा करते अड़चन है। खाली हैं तो और ढक्कन को बंद किये बैठे हैं, कि हैं-ईसाई, हिंदू, जैन, मुसलमान-सब यह चेष्टा करते हैं कि कोई ढक्कन न खोल ले, कोई भीतर देख न ले! धर्म की शिक्षा रहे। क्या शिक्षा तुम दोगे? शिक्षक को पता है ? तुमने कभी विचार किया कि क्या तुम जानते हो? तुमने कभी शिक्षक को भी पता नहीं है। ऐसे तुम झूठ को पैर लगा रहे हो। ईमानदारी से उत्तर दिये? तुम्हारा छोटा बच्चा तुमसे पूछता है, ऐसे तुम झूठ को चलायमान कर रहे हो। सब धर्म शिक्षा ईश्वर है? तुम कहते हो हां है। वह कहता है, दिखाओ। तो तुम खतरनाक है। क्योंकि ज्ञान से भर देगी। और चरित्र से सदा के 88 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340136
Book TitleJinsutra Lecture 36 Jivan hi Hai Guru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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