________________ किनारा भीतर है हैं-क्षण-दो क्षण—फिर जल्दी ही चक हो जाती है। बोलते से ही गंदा हो जाता है। शब्द उसे कुरूप कर देते हैं। उसे मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मुल्ला की बड़ी प्रशंसा | मौन में ही संवादित किया जा सकता है। उसे चुप रहकर ही कहा कर रही है। ऐसे दिन सौभाग्य के कम ही आते हैं कि पत्नी और जा सकता है। लेकिन चुप्पी मुखर है। मौन भाषा है। पति की प्रशंसा करे! लेकिन मुल्ला बहुत डरा हुआ था, क्योंकि शब्द तो शोर है तमाशा है ऐसे सौभाग्य का मतलब होता है, कुछ न कुछ उपद्रव! कुछ भाव के सिंध बताशा है खर्चा करवा दे! या जरूर कुछ मतलब होगा पीछे। आखिर मर्म की बात ओंठ से न कहो मतलब साफ हो गया। पत्नी ने कहा, अब बहुत हो गया, अब | मौन ही भावना की भाषा है। तुम खोजो, लड़की के लिए लड़का खोजना ही पड़ेगा। अब इस लेकिन भाषा ही है मौन भी। मौन भी बोलता है। बड़ी साल खाली नहीं जाना चाहिए। मुल्ला ने कहा कि क्या करूं, | प्रगाढ़ता से बोलता है। तुमने अगर कभी मौन को सुना नहीं, तो खोजता हूं, लेकिन गधों के अतिरिक्त कोई मिलता ही नहीं! तो तुमने कुछ भी नहीं सुना। तुम जीवन के संगीत से अपरिचित ही पत्नी के मुंह से सच्ची बात निकल गयी। उसने कहा, अगर ऐसे रह गये। तुमने रात के सन्नाटे को सुना है? कैसा बोलता हुआ ही मेरे पिता भी सोचते रहते तो मैं अनब्याही ही रह जाती! होता है! वृक्षों में हवा भी नहीं होती, हवा के झोंके भी नहीं होते, ज्यादा देर नहीं चला सकते। जल्दी ही असलियत बाहर आ एक पत्ता भी नहीं हिलता...अभी इस क्षण कोई हवा का झोंका जाती है। पूछना तो चाहते ही थे। बुद्धिमानी थोड़ी देर सम्हाली। नहीं है, पत्ता भी नहीं हिल रहा है, लेकिन वृक्ष मौन हैं, चुप हैं? दो लाइन चली। तीसरी लाइन में लंगड़ा गयी। पूछ ही बैठे। फूल खिले हैं, बोल रहे हैं। शब्द नहीं हैं, शोर नहीं है, इसे थोड़ा समझना। मन की इस बात को समझना। कैसा अभिव्यक्ति तो है ही। लंगड़ाता हुआ मन है! अगर सच में ही पूछने को न था तो यह चीन में कहावत है कि जब संगीतज्ञ संपूर्ण रूप से कुशल हो प्रश्न लिखने की कोई जरूरत ही न थी। और अगर पूछने को जाता है, तो वीणा तोड़ देता है। क्योंकि फिर वीणा के कारण कुछ था, तो यह बुद्धिमानी दिखाने की कोई जरूरत नहीं। ऐसा संगीत में बाधा पड़ने लगती है। फिर तो वीणा के स्वर भी द्वंद्व क्यों पालते हो? ऐसे दोहरे क्यों होते हो? ऐसे दोहरे में शोरगुल मालूम होने लगते हैं। कहावत है कि जब तीरंदाज खतरा है। ऐसे में तुम टूट-टूट जाओगे, खंड-खंड हो जाओगे। अपनी तीरंदाजी में संपूर्ण कुशल हो जाता है, तो धनुषबाण तोड़ रहोगे कुछ, दिखाओगे कुछ। बोलोगे कुछ, भीतर होगा कुछ। देता है। क्योंकि फिर उससे निशाना नहीं लगता, निशाने में बाधा यही तो मनुष्य का बड़े से बड़ा विषाद है। पूछना हो तो पूछो। न पड़ने लगती है। पूछना हो तो मत पूछो। यह बीच में दोनों के डांवाडोल होना जीवन के चरम शिखर विरोधाभास के शिखर हैं। खतरनाक है। शब्द तो शोर है, तमाशा है लेकिन, जब पूछा है, प्रेम में प्रश्न हो, उत्तर हो या चुप्पी? प्रेम भाव के सिंधु में बताशा है में न तो प्रश्न है, न उत्तर है, न चुप्पी है। प्रेम चुप भी नहीं है और मर्म की बात ओंठ से न कहो बोलता भी नहीं। प्रेम बड़ा विरोधाभास है। प्रेम बोलता भी नहीं, मौन ही भावना की भाषा है क्योंकि जो बोलना है वह बोलने में आता नहीं। और प्रेम चुप भी | रोओ, आंसू कह देंगे। नाचो, भावभंगिमा कह देगी। नहीं है, क्योंकि बोलने को बहुत कुछ है, जो बोलने में आता | गुनगुनाओ...कल सांझ ऐसा हुआ। वाणी, एक संन्यासिनी, नहीं। तो प्रेम लबालब भरा है। बह जाना चाहता है। जर्मनी से आयी है। उससे मैंने पूछा, कुछ कहने को है? और कूल-किनारे तोड़ देना चाहता है। मुझे लगा बहुत कुछ कहने को है उसके पास, हृदय भरा है। दो प्रेमियों को पास-पास बैठे देखा? नहीं बोलते, इसलिए उतने दूर से आयी है। दो-चार दिन के लिए ही आ पायी है। नहीं कि बोलने को कुछ नहीं है। नहीं बोलते इसलिए कि बोलने ज्यादा देर रुक भी न सकेगी। दो-चार महीने में भागी चली 3 को इतना कुछ है, कैसे बोलें? और बोलने को कुछ ऐसा है कि है। दो-चार दिन के लिए समय मिलता, कभी एक दिन के लिए | 173 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org