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________________ जिन सूत्र भाग: 2 STERS __ 'सनकर ही कल्याण का-आत्महित का मार्ग जाना जा पीकर ही तुम समझ सकोगे कि सही है या गलत है। और तो सकता है।' सुनकर ही। 'सुनकर ही पाप का मार्ग भी जाना जा कोई उपाय नहीं। सकता है। अतः सुनकर ही हित और अहित दोनों का मार्ग | लेकिन अगर ठीक से सुना गया, तो सत्य की महिमा है कि जानकर जो श्रेयस हो उसका आचरण करे।' | ठीक से सुननेवाले को सत्य तत्क्षण हृदय में चोट करने लगता जाओ उनके पास, जो जाग गये हैं। बैठो उनके पास, जो जाग है। कहा गया अगर असत्य है, तो ठीक से सुनते समय ही साफ गये हैं। डूबो उनकी हवा में, जो जाग गये हैं। उनकी तरंगें तुम्हें हो जाता है कि असत्य है। तय नहीं करना पड़ता, विचार भी नहीं जगायें। सत्संग का इतना ही अर्थ है। सुनो उन्हें, जिन्होंने पाया | करना पड़ता। असत्य के कोई पैर ही नहीं हैं। पैर तो सत्य के हैं। है। उनके शब्दों में भी शून्य होगा। उनकी आवाज में भी मंत्र असत्य तो तुम्हारे हृदय तक जा ही नहीं सकता। असत्य तो होगा। उनके इशारे में भी तुम्हारे जीवन की नाव निर्मित हो | लंगड़ा है। असत्य तो बाहर ही गिर जाएगा। तुम अगर शांत बैठे जाएगी। सुनकर ही। और उपाय भी तो नहीं है। | सुनने को तैयार हो, तो घबड़ाओ मत कि कहीं ऐसा न हो कि गुरजिएफ कहता था-इस सदी का एक बहुत बड़ा असत्य भीतर प्रवेश कर जाए। असत्य तो तभी प्रवेश करता है तीर्थंकर-कहता था, हमारी हालत ऐसे है जैसे रेगिस्तान में, जब तुम शांत, मौन श्रवण नहीं करते। तुम्हारी नींद के द्वार से ही - जंगल में, निर्जन में कुछ यात्री रात पड़ाव डालें। खतरा है। असत्य प्रवेश करता है। तुम्हारी मूर्छा से ही प्रवेश करता है। बीहड़ है। जंगली पशु हमला कर सकते हैं। डाकू-लुटेरे छिपे अगर तुम सजग होकर सुनने बैठे हो, तो असत्य गिर जाएगा हो। अनजान जगह हैं। अपना कोई नहीं, पहचान नहीं। ऐसा ही बाहर। तुम्हारी आंख का सामना न कर सकेगा असत्य। वह तो संसार है। तो क्या करे यात्रीदल? एक को जागता हआ छोड़ शांत सननेवाले के प्राण पर्याप्त हैं असत्य को देता है कि कम से कम एक जागता रहे, बाकी सो जाएं। फिर सत्य है, वही चला आयेगा चुंबक की तरह खिंचता हुआ। जो पारी-पारी से और लोग जागते रहते हैं। जो जागा है, वह खुद के | सत्य है वही तुम्हारे प्राणों में तीर की तरह प्रवेश कर जाएगा। जो सोने के पहले किसी और को उठा देता है। कम से कम एक दीया असत्य है, बाहर रह जाएगा। तुम सत्य हो, तुम सत्य को ही तो जलता रहे अंधेरे में। कम से कम कोई एक तो जागकर देखता | खींच लोगे।। रहे। खतरा आये तो हमें सोया हुआ न पाये। लेकिन अगर तुमने ठीक से न सुना, अगर तुमने विचार किया, सदगुरु का इतना ही अर्थ है कि तुम जब सोये हो तब कोई तुमने सोचा, तुमने कहा यह ठीक है या नहीं, मेरी अतीत तुम्हारे पास में बैठा हुआ, जागा हुआ है। तुम तो सोये हो, तो मान्यताओं से मेल खाता, नहीं खाता, तो संभव है कि असत्य सपने में डूब जाओगे। तुम तो न-मालूम कितने वासनाओं, | तुम्हारे भीतर प्रवेश कर जाए। असत्य बहुत तार्किक है। जीवंत कल्पनाओं के लोक में भटक जाओगे। तुम तो न-मालूम कितने | तो जरा-भी नहीं, लेकिन बड़ा तर्कयुक्त है। मन के खेलों में डूब जाओगे। लेकिन जो जागा है, वह यथार्थ | सत्य के पास कोई तर्क नहीं, कोई प्रमाण नहीं। सत्य को देखता रहेगा। उसे सुनो। जब जागा हुआ कुछ कहे, तो अस्तित्ववान है, वही उसका प्रमाण है। इसलिए शास्त्र कहते हैं सुनो, समझो। सत्य स्वयं प्रमाण है। असत्य स्वयं अप्रमाण है। सुन लो ठीक जागे हुए के साथ तर्क का सवाल नहीं है, क्योंकि उसकी भाषा से। उस सुनने में ही चुनाव हो जाएगा। बड़ी और है। उससे तर्क करके तुम कुछ भी न पाओगे। उससे 'सोच्चा जाणइ कल्लाणं।' सुनकर ही कल्याण का पता चल तर्क करके केवल तुम बंद रह जाओगे। जागे के साथ तर्क नहीं जाता है कि क्या है कल्याण। ‘सोच्चा जाणइ पावगं।' सुनकर हो सकता। जागे के साथ तो केवल श्रवण हो सकता है। उससे ही पता चल जाता है कि पाप क्या है, गलत क्या है, अकल्याण विवाद नहीं हो सकता, केवल सुनना हो सकता है। वह जो कहे, | क्या है? और महावीर की बड़ी खूबी है; वे कहते हैं मेरे पास उसे पीओ। वह जो कहे, तुम्हारे सोचने का सवाल उतना नहीं है कोई आदेश नहीं है। मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम ऐसा करो। जितना पीने का सवाल है। क्योंकि वह जो कह रहा है, उसे | महावीर कहते हैं, तुम सिर्फ सुन लो। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340132
Book TitleJinsutra Lecture 32 Satya ke Dwar ki Kunji Samyak Shravan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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