________________ - सम्यक दशेन के आठ अंग जैसा पुल उसने सपने में देखा था वैसा ही पुल राजधानी का है। खजाना था! तब तो उत्साह बढ़ा। तेजी से चलने लगा। दूसरी तरफ पहुंचा। हसीद फकीर इस कहानी में बड़ा रस लेते हैं। क्योंकि यह ठीक बिजली का खंभा वहीं है जहां सपने में देखा था। ठीक वैसा कहानी जीवन की कहानी है। तुम सोच रहे हो, कहीं और ही बिजली का बल्ब लगा है—तब तो भरोसा और बढ़ा। | खजाना गड़ा है, किसी राजधानी में, किसी पुल के पास। वहां लेकिन एक मुसीबत थी। सपने में उसने यह न देखा था कि एक जो खड़ा है वह सोच रहा है कि तुम्हारे घर खजाना गड़ा है। पुलिसवाला वहां पहरा देता है। तो वह राह देखने लगा कि तुमने कभी देखा! कभी-कभी राह से चलते भिखमंगे को पुलिसवाला जाये तो मैं खोदकर देखें। लेकिन पुलिसवाला तभी देखकर भी धनपति के मन में भी ईर्ष्या आ जाती है। कभी-कभी जाता जब दूसरा आ जाता, ड्यूटी बदलती। वह दो-तीन दिन सम्राटों के मन में ईर्ष्या आ जाती है। क्योंकि जिस मस्ती से ऐसे चक्कर मारता रहा। पुलिसवाले ने भी बार-बार इस आदमी भिखारी चल सकते हैं उस मस्ती से सम्राट तो नहीं चल सकते। को वहां चक्कर मारते देखा। उसे बुलाया पास और कहा कि बोझ भारी है, चिंता बहुत है। रात सो भी नहीं सकते। कौन सुनो, क्या मामला है? आत्महत्या करनी है पुल से कूदकर? | सम्राट सो सकता है भिखारी की तरह! राह के किनारे की तो बात क्योंकि इसीलिये वहां वह खड़ा रहता था कि कोई आत्महत्या न दूर; सुंदरतम, सुविधा से सुविधापूर्ण कक्षों में भी, आरामदायक कर ले। मामला क्या है? | बिस्तरों पर भी नींद नहीं आती। चिंताएं इतनी हैं, मन ऊहापोह में उस यहूदी धर्मगुरु ने कहा, अब आपसे छिपाना क्या है; एक लगा रहता है। और भिखारी राह के किनारे, अखबार को सपने के चक्कर में पड़ गया हूं। वह पुलिसवाला हंसा और बिछाकर ही सो जाता है और घुर्राटे लेने लगता है। कभी-कभी उसने कहा, ठहरो! इसके पहले कि तुम अपना सपना कहो, मैं सम्राटों के मन में भी ईर्ष्या उठती है कि ऐसा स्वास्थ्य, ऐसी भी तुम्हें कह दूं। तीन दिन से मैं भी एक सपना देख रहा हूं। मैं निश्चितता, ऐसी शांति, ऐसे विश्राम की दशा काश, हमारी भी एक सपना देख रहा हूं कि फला-फलां गांव में...। जो उसने होती! भिखमंगा भी रोज महल के पास से निकलता है, सोचता नाम लिया तो वह धर्मगुरु बड़ा हैरान हुआ, वह तो उसी के गांव है, काश, हमारे पास ऐसा महल होता! का नाम है। फला-फलां गांव में फला-फलां नाम का एक आकांक्षा का अर्थ है : तुम जहां हो वहां राजी नहीं। जो जहां है धर्मगुरु है। वहां राजी नहीं। कहीं और दिखाई पड़ता है जीवन का स्वप्न पूरा उसने कहा, अरे ठहरो! यह मेरा नाम है और मेरे गांव का तुम होता। वहां जो है, उसका भी जीवन का स्वप्न पूरा नहीं हो रहा पता ले रहे हो! मैं ही हूं वह धर्मगुरु। है। यहां भिखमंगे तो पराजित हैं ही, यहां सिकंदर भी पराजित वह पुलिसवाला बहुत हंसा। उसने कहा कि मैं तीन दिन से हैं। यहां भिखमंगे तो खाली हाथ हैं ही, यहां सिकंदर भी खाली एक सपना देखता हूं कि जहां धर्मगुरु सोता है उसके बिस्तर के | हाथ हैं। जिस दिन तुम्हें आकांक्षा की यह व्यर्थता दिखाई पड़ नीचे एक खजाना गड़ा है। मैं तो एक दिन तो सोचा सपना है, जाती है, उसी दिन निष्कांक्षा पैदा होती है, निष्काम-भाव पैदा दूसरे दिन कैसे सोचूं कि सपना है! हीरे-जवाहरात सब साफ होता है। दिखाई पड़ते हैं। और आज तीसरी रात फिर सपना देखा है। सत्य के जगत में तुम आकांक्षा से नहीं जा सकोगे। क्योंकि और तुमसे इसलिए कह रहा हूं कि तुम्हारा चेहरा उस सपने में सभी आकांक्षा संसार में लौटा लाती है। तो महावीर कहते हैं, मुझे दिखाई पड़ता है। यह माजरा क्या है? तुम तीन दिन से यहां अगर तुम स्वर्ग की आकांक्षा से सत्य की खोज करो, चूक चक्कर भी लगा रहे हो। | जाओगे। क्योंकि स्वर्ग की खोज फिर संसार की ही खोज है। उस धर्मगुरु ने कहा कि अब कुछ माजरा नहीं है। मैं कुछ और | परिमार्जित, सुधरे हुए संस्कार-संसार का ही संस्करण है वह। ही सपना देखा हूं। लेकिन अब मैं कुछ कहूंगा नहीं, अब मैं यहीं जो सुख नहीं मिल पाये हैं, उनका ही बढ़ा-चढ़ा रूप है, जाता हूं गांव अपने वापस। | फैला विस्तार है। जो शराब यहां नहीं पी. वहां बहिश्त में उसके वह भागा आया। उसने अपनी खाट के नीचे खोदा, पाया, | झरने बहाये हैं-वह तुम्हारी ही कल्पना है। जो स्त्रियां यहां 663 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org