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________________ SAR HINTERE जिन स्त्र भाग 1 PARA E I दो। हां, बीच-बीच में छाया पड़ती है क्रोध की, ध्यान मत देना। मैंने कहा, मैंने कुछ बिगाड़ा नहीं है, कोई दुश्मनी नहीं की है। क्योंकि जिसको तुम ध्यान दोगे वह बढ़ेगा। प्रेम को ही ध्यान एक तथ्य का तुम्हारे सामने उदघाटन हुआ। यह परमात्मा जो देना! ध्यान देते-देते तुम पाओगे, क्रोध कम होने लगा। एक | तुम सोच रहे हो कि तुम्हें दिखायी पड़ता है, अभी दिखायी नहीं दिन ऐसी घड़ी आयेगी कि क्रोध की सारी ऊर्जा ध्यान में पड़ा है। तुमने सिर्फ अपनी आंख में धुंध खड़ी कर ली है। तीस निमज्जित होकर प्रेम बन जायेगी। तब क्रोध की छाया भी न साल की मेहनत अगर तीन दिन में खो जाये, तो बचाने योग्य ही बनेगी। तब प्रेम शुद्ध होगा। और जहां प्रेम शुद्ध है वहीं प्रार्थना न थी। तीस साल में अगर वह घड़ी न आयी कि तुम्हारे बिना का जन्म हो जाता है। याद किए परमात्मा याद रहे तो कब आयेगी? तो कहीं कछ भल 'आपके प्रति इतना प्रेम रहते हुए भी, आपको सुनते वक्त हो रही है। तुम्हारी याददाश्त में कहीं कोई भूल-चूक है। तुम्हारी कभी-कभी अकुलाहट और क्रोध क्यों उठने लगता है?' प्रक्रिया भ्रांत है। और भी कारण हैं। मैं जो कह रहा हूं, वह सभी से तुम्हें | तो स्वाभाविक है कि वह मुझ पर नाराज हुआ। वह नाराज ना मिले, ऐसा जरूरी नहीं है। उसमें बहत है जिससे तम्हें होकर चला गया। फिर कोई पंद्रह दिन बाद वापस लौटा। उसने सांत्वना न मिलेगी। उसमें बहुत है जिससे तुम्हारी धारणाएं कहा, क्षमा करना। शायद आप जो कहते हैं, ठीक है; यद्यपि मैं टूटेंगी। उसमें बहुत है जिनके कारण तुम्हारे बंधे हुए विचार नाराज हुआ, क्योंकि मेरी सांत्वना छीन ली, मेरी सुरक्षा छीन उखड़ेंगे। उसमें बहुत है जिनसे तुम्हारी अब तक की की गयी ली। मैं सोचता था, एक सत्य मिल गया है और वह सत्य छीन व्यवस्था में विघ्न-बाधा पड़ेगी। तो अकुलाहट भी होगी। लिया! यद्यपि अब मैं समझता हूं कि आपने छीना कुछ भी नहीं। अगर तुम एक रास्ते पर चल रहे थे और सोच रहे थे कि सब मेरी मुट्ठी खाली थी। मैंने खोलकर न देखी थी। मैंने मान रखा ठीक है और मुझसे मिलना हो गया, और मैंने कहा कि कुछ भी था। अब मैं पूछने आया हूं कि क्या करूं। ठीक नहीं है इसमें—तो अकुलाहट स्वाभाविक है। तो ऐसा बहुत बार होगा कि सुनते-सुनते तुम्हें अकुलाहट एक सूफी मेरे पास लाया गया। तीस साल से निरंतर होगी। क्योंकि तुम अपनी सारी मान्यताओं को घर नहीं छोड़कर स्मरण-स्मरण परमात्मा का कर रहा है, जिक्र कर रहा है। और आ गये हो। तुम उन्हें साथ ले आये हो। जब मैं कुछ बोल रहा हूं ऐसी घड़ी आ गयी थी कि उसे अब सब जगह परमात्मा दिखायी तो तुम्हारी मान्यताओं से सतत संघर्ष चल रहा है। एक शब्द पड़ता है-वृक्षों में, पहाड़ों में, पत्थरों में। तो मैंने उससे कहा तुम्हारे भीतर जाता है तो तुम्हारे हजार शब्दों की भीड़ उसे भीतर कि तीन दिन मेरे पास रहो और तीन दिन के लिए यह स्मरण बंद | घुसने नहीं देती। बेचैनी खड़ी होगी, अकुलाहट खड़ी होगी और कर दो। उसने कहा, क्यों? मैंने कहा, तीस साल हो गए, अब क्रोध भी उठेगा। लेकिन इसे समझने की कोशिश करना। , इसका भी तो पता लगाना जरूरी है कि यह कहीं स्मरण ही तो अकुलाहट तभी खड़ी होती है जब मेरे शब्द तुम्हें कुछ दृष्टि देते नहीं है! यह कहीं आत्म-सम्मोहन तो नहीं है। क्योंकि बार-बार हैं और वह दृष्टि तुम्हारी धारणाओं के विपरीत पड़ती है। तो दोहरा-दोहरा-दोहराकर कहीं ऐसा तो नहीं तुमने खयाल पैदा कर जल्दी मत करना। सुनना, समझना। वह अकुलाहट तुम्हारे मन लिया है! तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता, सिर्फ भ्रांति हो रही है। की तरकीब है धुआं खड़ा करने की, ताकि तुम समझ ही न उसने कहा, यह बात तो ठीक है। वह थोड़ा डरा भी। लेकिन | पाओ। उस अकुलाहट में तुम चूक जाओगे। उस वक्त शांत फिर भी उसने कहा, मैं कोशिश करूंगा। तीन दिन वह मेरे पास रहकर सुन लेना। मन से कहना, घबड़ा मत, घर चलकर विचार था। उसने परमात्मा का स्मरण छोड़ दिया, नमाज न पढ़ी। | कर लेंगे; पहले समझ लेने दे। तुझे तो हम समझते हैं, वर्षों तेरे तीसरे दिन सुबह वह मुझ पर बहुत नाराज हो गया। उसने कहा, साथ रहे हैं; इस बात को भी समझ लेने दे। फिर दोनों पर यह तो सब खराब कर दिया। तीस साल की मेरी साधना पर ठीक-ठीक तौलकर विचार कर लेंगे, तराजू में रख लेंगे, पानी फेर दिया। यह तुमने कैसी दुश्मनी की? मैंने तुम्हारा क्या हिसाब-किताब लगा लेंगे। फिर जो ठीक होगा उसे मान लेंगे। बिगाड़ा था? अगर तुमने ठीक से सुना तो फिर कोई अड़चन नहीं है। सत्य alo Blucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340130
Book TitleJinsutra Lecture 30 Prem hai Atyantik Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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