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________________ मोक्ष का द्वार : सम्यक दृष्टि अपने में पूरा हो जाना। यह तो पर-निर्भर हुआ। थी। उन्होंने पूरे कलकत्ते को मात कर दिया था। चौबीस घंटे वे महावीर कहते हैं, धिक्कार है परवशता पर! यह तो परवशता मकान के ही खयाल से भरे रहते थे...तो जब भी मैं उनके घर ही हुई। यह तो...दर्पण के बिना कोई उपाय न चलेगा। यह जाता तो मकान, मकान...यह दिखाते, वह दिखाते! नया तो...अगर मुझे संत होना है तो लोगों के बीच होना चाहिए। स्विमिंग पूल बना डाला। क्या-क्या उन्होंने कर डाला है, वह और मजे की बात है, जरा खयाल करना! अगर तुम्हें बड़ा संत दिखाते। एक बार जब मैं गया तो उन्होंने मकान की कोई बात न होना हो तो लोगों को असंत होना चाहिए, तभी तुम बड़े संत हो की। और मैं तो पहले से ही तैयार होकर आया था कि वह मकान सकोगे। अगर सभी लोग संत हों, तुम्हारा संतत्व खो जायेगा। की बात सुननी पड़ेगी। वे कुछ बोले ही नहीं मकान पर और कुछ थोड़ी देर सोचो, कोई ऐसी दुनिया हो जहां सभी राम जैसे बड़े उदास दिखे, उत्साह भी कुछ ढीला मालूम पड़ा, कुछ सुस्त मर्यादा पुरुषोत्तम हों, तो दशरथ के बेटे राम को कौन पूछेगा? से मालूम पड़े। सांझ होते-होते मैंने पूछा, 'मामला क्या है? यह तो पूछ इसलिए चलती है कि ये मर्यादा पुरुषोत्तम अकेले हैं। मकान का क्या हुआ?' उन्होंने कहा, 'वह बात ही मत तो इनकी मर्यादा तुम्हारी अमर्यादा पर निर्भर है। साधु का साधु उठाओ!' मैंने कहा, 'कुछ तो बात होगी। तुम उदास भी हो। होना तुम्हारे असाधु होने पर निर्भर है। | वह सदा की प्रफुल्लता, मकान की चर्चा, कुछ नया किया, कुछ अगर बहुत गहरे में देखो तो साधु मिट जायेगा, जिस दिन नया बनाया-वह सब हुआ क्या?' वे मुझे हाथ पकड़कर जगत साधु हो जायेगा। तो साधु का निहित स्वार्थ यही है कि बाहर लाए पड़ोस में, कहा कि वह देखो! एक आदमी ने उनसे जगत साधु न हो जाये, जगत असाधु रहे। बड़ा मकान बना लिया! वे बोले, जब तक इसको मात न कर दूं, नेता तभी तक नेता है जब तक और लोगों को नेता होने का तब तक अब क्या बात करना! मन बड़ा दुखी रहने लगा। अभी खयाल पैदा नहीं हुआ है। जब तक अनुयायी अनुयायी होने को सुविधा भी नहीं है कि इतना ऊंचा उठा लूं। मात हो गया हूं! राजी है, तब तक नेता, नेता है। जिस दिन अनुयायियों ने भी मैंने कहा कि तुम्हारा मकान वैसा का वैसा है। इस पर किसी ने घोषणा कर दी कि हम भी नेता हो गए, उस दिन नेता खो छुआ भी नहीं है। कुछ घटा नहीं, कुछ बिगड़ा नहीं; सब सुंदर जायेगा। अमीर तभी तक अमीर है, जब तक गरीब है। और है। लेकिन पास के आकाश में एक नया मकान खड़ा हो गया! तुम्हारे पास बड़ा महल तभी तक हो सकता है जब तक और किसी ने तुम्हारी लकीर के पास बड़ी लकीर खींच दी–तुम्हारी लोगों के पास छोटे झोपड़े हैं। तो जैसे बड़ा महलवाला आदमी लकीर को छुआ भी नहीं है, तुम अचानक छोटे हो गये! नचाहेगा कि सभी के पास बड़े महल हो जायें...। | तो मैंने उनसे कहा, अब तुम यह तो सोचो, तो यह मजा तुम जो यह तो साफ समझ में आता है, अर्थशास्त्र का सीधा नियम है, अपने मकान में ले रहे थे, अपने मकान का मजा न था; वह जो कि अमीर का मजा उसकी अमीरी में तभी तक है जब तक और झोपड़े पास में थे, उनका मजा था। तो तुम्हारी अमीरी किसी के लोग गरीब हैं। तुम्हारे पास एक शानदार कार है, तो उसका मजा गरीब होने में निर्भर है। तभी तक है जब तक दूसरे लोगों पर, राह चलते लोगों पर और वही बात तुम्हारे साधु के संबंध में भी सच है। अगर बरसात में तुम कीचड़ उछालते हुए कार से निकल जाते हो। दुनिया से असाधु खो जाये तो तुम्हारा साधु...फिर कौन उसे अगर सभी के पास वैसी गाड़ियां हैं, बात खतम हो गयी। मंदिरों में विराजमान करेगा? कौन उसके सामने पूजा के थाल तुम्हारा सारा मजा इस कार में चला जायेगा। इस कार का मजा सजायेगा? कौन अर्चना के दीप उतारेगा? वह खो जायेगा। कार में न था; दूसरों के पास कार नहीं है, उसमें था। जीवन का | इसलिए साधु कहता तो यही है तुमसे कि सब साधु बनो; लेकिन जाल बड़ा जटिल है। उसकी अंतर्तम की प्रार्थना यही होती है कि हे प्रभु, इन सबको मेरे एक मित्र हैं कलकत्ते में। मैं उनके घर में कभी-कभी रुकता साधु मत बना देना! उसकी हालत, जिसको मनोवैज्ञानिक कहते था। वे बिलकुल पागल थे अपने मकान के लिए। उन्होंने हैं 'पेराडाक्सिकल इंटेशन', विरोधाभासी आकांक्षा की है। शानदार मकान बनाया था। कलकत्ते में उसकी कोई तुलना न जैसे चिकित्सक के पास तुम जाते हो...तुमने कभी खयाल Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.340129
Book TitleJinsutra Lecture 29 Moksh ka Dwar Samyak Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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