________________ मोक्ष का द्वार : सम्यक दृष्टि घृणा का, प्रशंसा का, सफलता-विफलता का, भोग और त्याग का कोई उद्वेग न उठे, तो तुम निर्वाण के करीब आने लगे। _ 'अनुद्वेगः श्रीयोमूलं!' हिंदू शास्त्र कहते हैं, अनुद्वेग ही श्रेय का मूल है, निःश्रेयस का मूल है। यह अनुद्वेग दशा ही तुम्हें जल में कमलवत बना देगी। और धन्यभागी हैं वे जो सबके बीच रहकर और सबसे अछूते रह जाते हैं! आज इतना ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg