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________________ मोक्ष का द्वार : सम्यक दृष्टि सम्मत्तस्य य लंभो, तेलोक्कस्स य हवेज्ज जो लंभो। अपना शरीर खो जाये तो दूसरों के शरीर दिखायी नहीं पड़ते। सम्मदंसणलंभो, वरं खु तेलोक्कलंभादो।। उसे अभी तो खयाल में नहीं आया था कि अपना शरीर खो मत चुनना तीन लोक की संपदा को, लोभ को, लाभ को! | गया। क्योंकि यह शरीर खो भी जाता है तो सूक्ष्म शरीर तो खोता दृष्टि मिलती हो तो सब उसके लिए गंवा देने जैसा है। सब नहीं; वह बिलकुल इस जैसा ही है-इससे ज्यादा सुंदर, इससे गंवाकर दृष्टि मिलती हो तो बचा लेना। और सब बचाकर दृष्टि ज्यादा कमनीय, इससे ज्यादा सूक्ष्म पर ठीक इसकी प्रतिलिपि! खोती हो तो यह महंगा सौदा मत कर लेना। अंधे, आंखहीन तो सचाई तो यह होगी कि यह शरीर उसकी प्रतिलिपि है। तो उसे सिर्फ भटकते हैं; पहुंचते नहीं। फिर गरीब हों कि अमीर, सफल अभी यह तो पता ही न चला था कि मेरा शरीर खो गया; लेकिन हों कि असफल, सुखी हों कि दुखी, कुछ अंतर नहीं पड़ता; मौत जब उसने लंदन में जाकर देखा; तो सारे घर खाली पड़े हैं। सबको मटियामेट कर देती है, और सब को मिला जाती है। मकानों से रोशनी निकल रही है, खिड़कियों से रोशनी निकल पथ मिलकर सभी एक होंगे रही है, लेकिन घर सन्नाटा है, कहीं कोई नहीं। वह थेम्स नदी के तम घिरे यम के नगर में। पुल पर खड़ी हो गयी जाकर। उसे भरोसा ही न हुआ कि जहां वह जो अंधा आदमी है, वह कुछ भी करे, मौत सबको एक ही हजारों लोग निकलते रहते हैं, वहां कोई भी नहीं निकल रहा है। जगह पहुंचा देगी। हजारों लोग अब भी निकल रहे हैं। लेकिन देह अपनी खो गयी पथ मिलकर सभी एक होंगे तो दूसरी देह से संबंध नहीं जुड़ता। लेकिन तभी अचानक उसे तम घिरे यम के नगर में। दिखायी पड़ा, उसका पति भी पुल से निकल रहा है। जब पति सिर्फ दृष्टिवाला बच जाता है। मौत सिर्फ अंधों को पकड़ निकला तो उसे दिखायी पड़ा। क्योंकि पति से एक लगाव था, पाती है। जिसके पास दृष्टि है, उसे मौत नहीं देख पाती। और एक घनीभूत वासना थी, प्रेम था। उस प्रेम के कारण एक सूत्र जिनके पास दृष्टि नहीं है, उन्हें सिर्फ मौत ही दिखायी पड़ती है | जुड़ा था। उस प्रेम के कारण वह पति के शरीर से ही नहीं जुड़ी और मौत को वे दिखायी पड़ते हैं। हमारी दृष्टि पर सब निर्भर थी, पति के सूक्ष्म शरीर से भी थोड़े संबंध हुए थे। उस सूक्ष्म करता है। शरीर से संबंध के कारण उसे पति थोड़ा-सा दिखायी पड़ा, पहले तुमने कभी इस पर खयाल किया, विचार किया, ध्यान किया धुंधला-धुंधला, फिर रेखा उभरी, फिर साफ हुआ। लेकिन जब कि बहुत-बहुत अर्थों में बहुत-सी चीजें अदृश्य होती हैं? जैसे | उसे पति दिखायी पड़ा तो चकित हुई कि जैसे ही उसे पति समझो, एक चींटी यहां से गुजर रही हो, बहुत-सी चींटियां गुजर दिखायी पड़ा, और लोग भी दिखायी पड़ने लगे। क्योंकि जब रही होगी। मैं यहां बोल रहा हूं, लेकिन चीटी के लिए जो में बोल एक शरीर दिख गया तो दूसरे शरीर भी दिखाई पड़ने लगे। रहा हूं, वह बिलकुल सुनायी न पड़ेगा। वह चींटी की सीमा के तत्क्षण पूरा लंदन भरा था-एक क्षण में-लंदन खाली न था! बाहर है। यहां वृक्ष खड़े हैं: जो मैं कह रहा हूं, वह जैसे कहा ही हजारों लोग आ-जा रहे थे, मकान भरे थे! नहीं गया।...वे मौजूद हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी का आयाम | यह कहानी मुझे बड़ी प्रीतिकर लगी, जिसने भी लिखी हो, बड़ी अलग है। सूझ से लिखी है। कहानी तो कल्पित है, लेकिन सूझ गहरी है। मैं एक कहानी पढ़ता था। एक हवाई जहाज जल गया बीच हमें वही दिखायी पड़ता है जहां हम हैं। अभी हमें शरीर आकाश में और एक युवती मर गई। वह युवती लंदन जा रही दिखायी पड़ते हैं। इसलिए मौत से हमारा संबंध होने ही वाला थी। तो मरते वक्त उसे बस एक ही खयाल था कि अरे, लंदन न है। मौत हमें दिखायी पड़ेगी क्योंकि शरीर की मौत होती है। पहुंच पायी! वह पति की प्रतीक्षा कर रही थी। पति आतुर होकर | इसलिए हम मौत से भयभीत हैं। जैसे ही दृष्टि जगती है और हमें प्रतीक्षा कर रहा होगा। बस एक ही धुन थी, उस धुन के कारण दिखायी पड़ता है, हम शरीर नहीं हैं-मौत के हम बाहर हो उसकी प्रेतात्मा सीधी लंदन पहंच गयी। लेकिन वह चकित हई : गये। फिर मौत भी हमको नहीं देख सकती। वह भी हमको तभी लंदन बिलकुल खाली था। लोग कहां खो गये। क्योंकि जब तक देख सकती है जब तक हम शरीर हैं और शरीर में हैं, और 635 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340129
Book TitleJinsutra Lecture 29 Moksh ka Dwar Samyak Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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