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________________ जिन सत्र भाग 1 देखता ही नहीं और अलोभ को साधने लगता है। यही फर्क है। वैसा न कभी हआ है, वैसा न कभी होगा। वह क्रोध को देखता ही नहीं, अक्रोध की आकांक्षा में संलग्न हो सोए हुए लोगों का आचरण पंक्तिबद्ध होता है, दूसरों जैसा जाता है। कामवासना में आंख नहीं डालता, और ब्रह्मचर्य के होता है; अनुकरण पर निर्भर होता है। दो महावीर नहीं हुए, न दो नियम ले लेता है। यही महावीर कह रहे हैं। | बुद्ध हुए, न दो कृष्ण हुए, न हो सकते हैं। इस अद्वितीयता को ऐसा चरित्र पहुंचाएगा न। उधार से कभी कोई गया नहीं। धर्म | खूब गहरे में बिठा लेना। तब तुम्हें भय न रहेगा। तब तुम्हारी चाहिए नगद! दृष्टि जागेगी तो तुम्हारा आचरण तुम जैसा होगा। और परमात्मा एक मुअम्मा है समझने का न समझाने का अगर कहीं होगा और तुमसे पूछेगा तो वह यह न पूछेगा कि तुम जिंदगी काहे को है एक ख्वाब है दीवाने का। महावीर जैसे क्यों न हुए; वह तुमसे पूछेगा, तुम तुम जैसे क्यों न जिसे अभी हम जिंदगी कह रहे हैं, सोयी-सोयी, एक स्वप्न से हुए? तुमने अपने स्वभाव को खिलाया क्यों न? तुम जो होने ज्यादा नहीं है। जिस दिन तुम जागोगे उस दिन तुम पाओगे, अब को पैदा हुए थे, विकसित क्यों न हुए? तुमने अपने बीज को तक तुमने जिसे जीवन जाना था वह केवल एक स्वप्न था; और फूलों तक क्यों न पहुंचाया? इसकी फिक्र छोड़ देना कि तुम स्वप्न भी कोई बहुत मधुर नहीं। दुख-स्वप्न, नाइट-मेयर। कोई किसी से तालमेल खा रहे हो कि नहीं; क्योंकि सत्य अनूठा है। धन के सपने देख रहा है, कोई पद के सपने देख रहा है। किसी गहरे अर्थ में तालमेल खाता भी है और किसी गहरे अर्थ में चरित्र का अनुयायी कहता है, छोड़ो धन की दौड़, छोड़ो पद बिलकुल भिन्न होता है। अगर बहुत गहराई में कृष्ण के उतरोगे, की दौड़! और दृष्टि का अनुयायी कहता है, देखो पद की दौड़ | अंतस्तल में, तो ठीक महावीर को पा लोगे। लेकिन बाहर-बाहर को, देखो धन की दौड़ को! इस फर्क को खयाल में ले लेना। से देखोगे तो महावीर कहां, कृष्ण कहां, बड़े अलग-अलग हैं! दृष्टिवाला कहता है, भागो मत! भागकर कहां जाओगे? अगर तुम भी अलग ही होनेवाले हो। भीतर नींद है तो साथ चली जायेगी। अगर भीतर स्वप्न है तो धर्म व्यक्ति को व्यक्ति बनाता है। और संप्रदाय व्यक्ति को | साथ चला जायेगा। भागो मत! जागो! देखो जहां हो, जो है। भीड़ बना देते हैं। भीड़ से बचना! जीवन का जो भी तथ्य है, मधुर कि कड़वा, सुस्वादु कि धर्म निजी और वैयक्तिक खोज है। विषाक्त-चखो, पहचान बनाओ! उसी पहचान से धीरे-धीरे दूसरा सूत्र : 'एक ओर सम्यक्त्व का लाभ और दूसरी ओर ज्ञान निसृत होता है। उसी से धीरे-धीरे बूंद-बूंद ज्ञान की टपकती त्रैलोक्य का लाभ हो तो त्रैलोक्य के लाभ से सम्यक दर्शन का है। तुम्हारा मधु-पात्र एक दिन भर जाएगा। और तब तुम्हारे लाभ श्रेष्ठ है।' जीवन में आचरण होगा। लेकिन वह आचरण जरूरी नहीं कि एक तरफ मिलती हो दृष्टि और दूसरी तरफ मिलते हों तीनों जैनों की मान्यता के अनुसार हो कि हिंदुओं की मान्यता के लोक के खजाने और सारी संपदा और साम्राज्य, तो भी महावीर अनसार हो कि बौद्धों की मान्यता के अनसार हो। वह आचरण | कहते हैं. तीनों लोक के साम्राज्य और संपदा से दष्टि का लाभ तुम्हारे स्वभाव के अनुसार होगा। यह भी खयाल में ले लेना। श्रेष्ठ है। क्योंकि अंधे के हाथ में साम्राज्य हो तो भी वह भिखारी प्रत्येक जाग्रत पुरुष का आचरण अद्वितीय होता है। तो तुम रहेगा। और आंखवाले के पास भिक्षा का पात्र भी हो तो राम को कृष्ण से मत तौलना। अगर कृष्ण से राम को तौलोगे तो साम्राज्य बन जाता है। आंख का सारा खेल है। इसीलिए तो यह दो में एक ही ठीक रह जायेगा, दोनों ठीक नहीं हो सकते। और न | अनूठी घटना घटी कि महावीर भिखारी की तरह राह पर खड़े हो तुम बुद्ध को महावीर से तौलना। और न तुम मुहम्मद को जीसस गये। लेकिन इनसे बड़े सम्राट कभी किसी ने देखे? कि बुद्ध ने से तौलना। और न तुम जरथुस्त्र को लाओत्से से तौलना। तुम | राजमहल छोड़ दिया, राह के भिखारी हो गये, कुछ भी उनके तौलना ही मत। क्योंकि प्रत्येक जाग्रत व्यक्ति का आचरण पास न रहा; लेकिन फिर भी जितना इस आदमी के पास था उसके अपने जागरण का परिणाम होता है। वह निजी है, किसके पास कब रहा! जीवन को बड़ी से बड़ी संपदा मिलती है अद्वितीय है, अनूठा है। दृष्टि से; और कोई संपदा उसके मुकाबले बड़ी नहीं। 6341 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org' |
SR No.340129
Book TitleJinsutra Lecture 29 Moksh ka Dwar Samyak Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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