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________________ जिन सूत्र भागः1 HINDI Sangra Bories BAR पत्नी को भी पता न चले।' होकर नाचने लगता है और गीत गुनगुनाने लगता है। फिर भक्त पहले तो बड़ा निजी है। लेकिन ज्यादा देर निजी नहीं रहता।। तो सिर्फ बांस की पोंगरी है। फिर उसे जो गीत गाना हो गा ले, जब भरने लगता है पात्र तो पात्र ऊपर से बहने लगता है; फिर जो गुनगुनाना हो गुनगुना ले। भक्त सिर्फ राह देता है; छिपाए नहीं छिपता, फिर प्रगट होने लगता है। जब प्रगट होने उपकरण-मात्र हो जाता है। की घड़ी आती है, तब भजन कीर्तन बनता है। भक्ति जब तक चलो भाव से! भाव जब सघन होगा तो भजन। और जब भीतर-भीतर, भीतर-भीतर रसधार बहती है तो भजन, जप; भजन फूट पड़ेगा हजार-हजार फूलों में और सुगंध बिखर फिर जब बहने लगती है बाहर, अवश होकर, तुम चाहो तो भी जायेगी लोक-लोकांतर में, तब कीर्तन! रोक नहीं पाते, इतनी ऊर्जा का जन्म होता है कि चारों तरफ फैलने कीर्तन, भक्ति की परम दशा है। लगती है ऊर्जा अपने-आप, तब कीर्तन! कीर्तन भजन की अभिव्यक्ति है। कीर्तन भजन की आज इतना ही। अभिव्यंजना है। तुम भी मजाज इन्सां हो आखिर लाख छुपाओ इश्क अपना ये भेद मगर खुल जायेगा, ये राज मगर इफ्शां होगा। -छिप न सकेगा यह भेद। यह राज मगर इफ्शां होगा। यह पता चल ही जायेगा। प्रेम को कौन कब छिपा पाया! तो प्रेम जब तुम्हारे बिना दिखाए दिखायी पड़ने लगता है, तुम्हारे रग-रोएं में झलकने लगता है, प्रेम की आभा तुम्हें घेर लेती है, तुम्हारी आंखों के पास, तुम्हारे चेहरे के पास एक प्रेम का आभामंडल निर्मित हो जाता है कि कोई चाहे तो छू ले, कि कोई चाहे तो थोड़ा-सा आभामंडल अपनी मुट्ठी में बांध ले, कि कोई चाहे तो तुम्हारे आभामंडल को पी ले—जब आभामंडल इतना वास्तविक हो जाता है तब कीर्तन प्रगट होता है! तो जल्दी मत करना। कीर्तन तो भजन की आखिरी अवस्था है। पहले भजना। भीतर-भीतर-भीतर डुबाना, ताकि जड़ें फैल जायें। फिर एक दिन तुम भी चौंककर दखोगे: तुम भी मजाज इन्सां हो आखिर लाख छिपाओ इश्क अपना ये भेद मगर खुल जायेगा ये राज मगर इफ्शां होगा। तब उन्माद की आखिरी घड़ी आती है। तब तुम्हारे अंतर की कोयल कूक उठती है! तब तुम्हारे अंतर का मोर नाच उठता है! तब फिर चिंता नहीं रह जाती। तब कीर्तन! कीर्तन का अर्थ है: जब भक्ति प्रगट होकर बहने लगी। चैतन्य नाचते हुए, गांव-गांव ढोलक बजाते हुए! मीरा नाचती हुई गांव-गांव। फिर लोक-लाज की चिंता नहीं! फिर सब उपचार छूट जाते हैं। फिर सब उपाधियां गिर जाती हैं। निरुपाधिक! उपचार-मुक्त! भक्त उसके हाथ में कठपुतली 618] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340128
Book TitleJinsutra Lecture 28 Jivan ka Rut Bhav Prem Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size43 MB
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