________________ - जिन सत्र भाग : 1 फल लायेगा? वह तो झुके हुए हृदय से निकले तो ही लाभ होता | ध्यान बड़ी चेष्टा, बड़े परिमार्जन, बड़ी मर्यादा, बड़े है। वह तो लदे हुए वृक्ष की तरह है। जैसे वृक्ष झुक जाता है, | अनुशासन से उपलब्ध होता है। तो जो नैसर्गिक है उसे तुम जब फलों से लद जाता है। ऐसा जब कोई प्रेम से लदा हो और जल्दी काम में ला सकते हो। झका हो, तभी उससे मीठे फलों के आशीर्वाद उपलब्ध होते | तू न दे नामे को इतना तूल गालिब मुख्तसर लिख दे हैं।...अकड़े खड़े हैं! एक डाल नहीं झुकी। फल तो हैं ही कि हसरत सेज हूं, अर्जे-सितमहाए-जुदाई का। नहीं। आशीर्वाद कहां से होगा? लेकिन जैन मुनि अकड़कर ___-प्राणप्यारे को पत्र लिखते समय, पत्र को बहुत विस्तृत न खड़ा हो जाता है : तपश्चर्या है! कोई समर्पण किसी के प्रति नहीं बना, गालिब! बस इतना लिख दे, इतना काफी है-संक्षेप में कि है। सिर्फ संकल्प है। श्री चरणों में विरह की पीड़ा निवेदन करने की लालसा से तो सिर्फ संकल्प की शक्ति का खतरा यह है कि तुम्हारा लसित! काफी है! अहंकार विक्षिप्त न हो जाये। फिर चुनाव तुम्हारा है। इतना __ 'न दे नामे को इतना तूल' चिट्ठी को बहुत लंबी मत कर। निश्चित है कि उस मार्ग से भी लोग पहंचे हैं। 'गालिब, मुख्तसर लिख दे!' बस संक्षेप में इतना लिख दे 'कि लेकिन अगर मेरी सुनो तो हृदय की सुनना! और जब तुम | हसरत सेज हूं अर्जे-सितमहाए-जुदाई का।' कि विरह की पीड़ा हृदय की सुनोगे तो बुद्धि को तकलीफ होगी। क्योंकि हृदय को | बहुत हो गयी, अब श्री चरणों में यह निवेदन रखता हूं कि अब चुनने का अर्थ है: बुद्धि का प्रभुत्व गया; तर्क की तुम्हारे ऊपर | मिलने की बड़ी गहरी अभीप्सा है। बस काफी है। जो मालकियत है, वह टूटी! प्रेम की चिट्ठी छोटी होती है। न जाने आज में क्या बात कहनेवाला हूं ढाई आखर प्रेम का पर्दै सो पंडित होय! जुबान खुश्क है, आवाज रुकती जाती है। अगर प्रेम ने पुकारा हो तो इस आवाज को ऐसे ही मत लौट जैसे-जैसे प्रेम की बात कहने के करीब आओगे, वैसे ही जाने देना। अगर प्रेम ने पुकारा हो तो सुनना, दो गाम उसके पीछे पाओगेः जबान खुश्क हो गयी, आवाज रुकती जाती है, क्योंकि चलना! क्योंकि प्रेम के रास्ते से दो गाम चलकर भी आदमी बुद्धि काम नहीं करती। परमात्मा तक पहुंच जाता है। न जाने आज मैं क्या बात कहनेवाला हूं संकल्प का रास्ता बहुत लंबा, बहुत बीहड़, बहुत अकेले का जुबान खुश्क है, आवाज रुकती जाती है। | है। हां, कुछ को वैसी चुनौती ही भाती है। जिनको वैसी चुनौती हृदय की तरफ सरकोगे तो बुद्धि मरने लगेगी। इसलिए बुद्धि | भाती है, उनको वही मार्ग चुनना चाहिए। बहुत संघर्ष करेगी। लेकिन चुनाव तो करना ही होगा। | लेकिन प्रश्नकर्ता के प्रश्न से मुझे ऐसा लगता है कि उसे बुद्धि और प्रेम का मार्ग सुगम है, छोटा है-करीब से करीब है। का मार्ग जमेगा नहीं, संकल्प का मार्ग जमेगा नहीं। क्योंकि क्योंकि प्रेम सुगम है, सहज है। प्रेम को लेकर ही तुम पैदा हुए जिन्हें संकल्प का मार्ग जमता है, उन्हें प्रेम की पुकार ही सुनायी | हो, ध्यान को इतनी आसानी से नहीं कहा जा सकता कि तुम नहीं पड़ती। वह दस्तक प्रेम देता रहे, उनके कान बहरे होते हैं। लेकर पैदा हुए हो। ध्यान तो तुम बड़ी चेष्टा करोगे तो शायद प्रेम में उन्हें सिर्फ पाप दिखायी पड़ता है। नेकिन प्रेम की तड़फ तो तुम्हारे भीतर है ही; तुम्हारी तो संकल्प के मार्गवाला व्यक्ति तो यह पूछेगा ही नहीं। यह तो श्वास-श्वास में भरी है! तुम्हारे रोएं-रोएं में भरी है। कहां है | उसी ने पूछा है जिसका मार्ग प्रेम है; लेकिन बुद्धि की अड़चन में ऐसा मनुष्य जो प्रेम के लिए प्यासा न हो! कहां है ऐसा मनुष्य जो पड़ गया है। चाह तो गहरी यही है कि प्रेम में उतर जाये, लेकिन प्रेम देने को आतुर न हो! न दे पाओ, कुछ अड़चन आती हो; न अहंकार उतरने नहीं देता, झुकने नहीं देता। तो इस अहंकार को मिल पाये, कुछ बाधा पड़ जाती हो-और बात। लेकिन कहां है | तोड़ो! इस अहंकार से अपने को अलग करो। पूछनेवाला ऐसा मनुष्य जो प्रेम के लिए आतुर न हो! प्रेम स्वाभाविक है, | शिकार तो हो ही गया है। तीर तो लग ही गया है। नैसर्गिक है। वह जीवन के ऋत का हिस्सा है। दिल को हम सर्दे-वफा समझे थे, क्या मालूम था 1614 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org