________________ साधु का सेवन : आत्मसेवन है या नहीं। तुम तो गले के नीचे उतार लेते हो भोजन को, फिर अगर बेजार हो अपनी किरण से? बात खतम हो गयी। अगर न पचे तो अड़चन होती है। और ये अपनी ही किरणें हैं। अगर इनसे हम बेजार हो गये, पंडित है ऐसा व्यक्ति जिसका ज्ञान समाहित नहीं हुआ। ज्ञानी और इनकी निंदा करने लगे और छोड़ने के चक्कर में पड़े गये, तो है ऐसा व्यक्ति जिसका ज्ञान समाहित हो गया। हम तोड़ते जायेंगे अपने को। लेकिन जीवन का अहोभाग्य इस पंडित है ऐसा व्यक्ति जिसको अपच हो जाता है। भर लेता है दिशा से नहीं आता। जीवन का अहोभाग्य तो तब आता है जब ज्ञान को, लेकिन वह ज्ञान कहीं उसके जीवन की धारा का अंग जो भी हमें मिला है उसे हम रूपांतरित करने में कुशल हो जायें, नहीं होता; वह धारा में कंकड़-पत्थर की तरह पड़ा रहता है, समाहित करने में कुशल हो जायें। धारा के साथ बहता नहीं। कामवासना समाहित होकर ब्रह्मचर्य बन जाती है। क्रोध समाहित का अर्थ है जिसे तुम भूल जाओ, फिर भी तुम्हारे | समाहित होकर करुणा बन जाता है। राग समाहित होकर प्रेम साथ हो; जिसकी तुम्हें चेष्टा न करनी पड़े, सहज तुम्हारे साथ | बन जाता है। हिंसा समाहित होकर अहिंसा बन जाती है। पचा हो। सहज-स्फूर्त यानी समाहित। लो। बेजार मत हो जाना! छोड़ने के उपद्रव में मत पड़ जाना! ___ 'जो आत्मा इन तीनों से समाहित हो जाता है और अन्य कुछ क्योंकि जो-जो तुम छोड़ दोगे, उस उसका रूपांतरण असंभव हो भी नहीं करता...' जायेगा। अगर क्रोध छोड़ दिया तो यह तो हो सकता है तुम अन्य कुछ की कोई जरूरत नहीं, ये तीन काफी हैं। इन तीन में अक्रोधी हो जाओ, लेकिन करुणावान न हो सकोगे। अगर सब हो जाता है। और न कुछ छोड़ता है। यह जैन मुनियों को कामवासना छोड़ दी, तो यह तो हो सकता है कि तुम काम-रहित बड़ी तकलीफ होगी सोचकर : न कुछ करता न कुछ छोड़ता; हो जाओ, लेकिन ब्रह्मचर्य उपलब्ध न हो सकेगा। यह क्योंकि छोड़ना भी कृत्य है। छोड़ने में भी कर्ता आ जाता है और काम-रहितता वैसे ही होगी जैसे हम सांड को बैल बना देते हैं, अहंकार आ जाता है। न तो पकड़ता और न छोड़ता, चुपचाप ग्रंथि काट देते हैं, यंत्र को नष्ट कर देते हैं। साक्षी-भाव से जीता है। और तुम ऐसा मत सोचना कि यह जो मैं दृष्टांत दे रहा हूं, बड़े 'उसी को निश्चय-नय से मोक्ष-मार्ग कहा है।' दूर का है। यह दूर का नहीं है। साधुओं ने यह सब किया है। वही है मुक्ति का मार्ग। रूस में साधुओं की एक जमात थी जो जननेंद्रिय काट लेती थी। जो छोड़ने-पकड़ने में पड़ा वह अड़चन में पड़ेगा। वह यहां से काट देने से, एक अर्थ में तो हल हो जाता था। जब जननेंद्रिय ही वहां डोलेगा। न रही तो कोई उपाय न रहा। लेकिन ब्रह्मचर्य इस तरह उपलब्ध कभं तो दैर में हूं, कभं हूं काबे में नहीं होता। ब्रह्मचर्य उपलब्ध तो तब होता है जब यह जीवंत कहां-कहां लिए फिरता है शौक उस दर का। ऊर्जा काम की समाहित होती है; जब तुम इसे बाहर नहीं फेंकते, वह उसके दरवाजे को कभी मंदिर में खोजेगा, कभी मस्जिद में भीतर पचा जाते हो; जब तुम इसे उछालते नहीं फिरते; जब यह खोजेगा, कभी यहां कभी वहां; और एक दरवाजा जहां कि वह ऊर्जा तुम्हारे भीतर ऊर्ध्वगमन बन जाती है। छिपा है-स्वयं का-अनखला रह जायेगा। __ क्रोध को काट देने से, कसम खा लेने से कि क्रोध न करूंगा, चमक सूरज में क्या रहेगी यह हो सकता है तुम दबा लो, दबाते जाओ, ऐसी घड़ी आ जाये अगर बेजार हो अपनी किरण से? कि किसी को भी पता न चले कि तुममें क्रोध है; लेकिन तुम्हें तो और जो व्यक्ति छोड़ने-पकड़ने में लग जायेगा, वह बेजार हो चलता ही रहेगा पता! तुम तो उसी के ऊपर बैठे हो। तुम तो जायेगा। छोड़ने का मतलब है निंदा करनी होगी अपने कुछ अंगों | ज्वालामुखी पर बैठे हो जो कभी भी फूट सकता है।। की; शरीर की निंदा करनी होगी; धन की निंदा करनी होगी; नहीं, करुणा पैदा न हो पायेगी। क्योंकि करुणा तो उसी ऊर्जा कामवासना की निंदा करनी होगी, सबकी निंदा करनी होगी। से निर्मित होती है जिससे क्रोध निर्मित होता है। ऊर्जा का दमन चमक सूरज में क्या रहेगी नहीं-ऊर्जा का रूपांतरण! 593 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org