________________ Site साधु का सेवन: आत्मसेवन / किया, यह तो गौण बात है। अपना भोजन किया, यह महत्वपूर्ण मुझे हुआ। आप भी जब मेरे घर में आते हो तो मैं भोजन नहीं कर बात है। आत्म-आहार किया। और आत्म-आहार से ऐसे भर पाती। मैं इतनी प्रसन्न हो जाती हूं कि वर्ष में आप दो दिन के लिए गये कि भोजन कि जरूरत न रही। वह गौण बात है। आते हो, कि दो दिन मैं भोजन नहीं कर पाती; बस ऐसे ही चाय तुमने कभी खयाल किया! प्रेम के बहुत गहरे क्षणों में भूख इत्यादि से काम चल जाता है। भूख ही नहीं लगती, ऐसा कुछ नहीं लगेगी। कभी-कभी तुम चकित होओगे...एक महिला ने भरापन मालूम होता है।' मुझे कहा...मैं यह बात कर रहा था। उसने सुनी, वह मुझसे | जब भी तुम आनंदित होओगे, तुम हैरान हो जाओगे कि पेट मिलने आयी। उसने कहा कि एक बात आपसे कहनी है, मेरे | भरा है! तुम इतने भरे हो, इतने भीतर भरे हो कि पेट का जीवन में अटकी रही है सदा से। उसकी सास की मृत्यु हुई सांझ खालीपन पता न चलेगा। प्रेम के बहुत गहरे क्षणों में भूख न के वक्त। जैनों की 'अंथऊ' का समय। सूरज ढल गया, फिर लगेगी। दुख के क्षणों में भूख लगेगी। दुख में तुम एकदम भोजन तो हो नहीं सकता। सास मर गई बेवक्त। सासों के खाली हो जाओगे। दुख में न केवल पेट खाली हो जायेगा, ढंग...! अब वह कोई ढंग का वक्त भी चुन सकती थी। | आत्मा भी खाली हो जायेगी। दोपहर में मरती, रात मरती ठीक; अंथऊ के वक्त मर गई! तो इसलिए अकसर जिसने तुम्हारे जीवन को बहुत गहराई से भरा भोजन तो हो नहीं सका; पड़ा रह गया। और ऐसा भी नहीं कि था, अगर वह मर जायेगा तो तुम्हें तत्क्षण भूख लगेगी। बेचैनी इस बहू का अपनी सास से कुछ विरोध रहा हो-बड़ा लगाव होगी तुम्हें यह सोचकर कि यह कोई वक्त है भूख लगने का। था। तो उस समय तो कुछ खयाल नहीं आया, लेकिन जैसे रात क्योंकि भोजन को तो हम उत्सव मानते हैं। दुख में तो कोई बढ़ने लगी, उसकी भूख बढ़ने लगी। इधर रो भी रही। सास ने भोजन करता नहीं। पास-पड़ोस के लोगों को भोजन बनाकर उसे अपनी बेटी की तरह रखा था, बहुत गौरव से रखा था। वह | लाना पड़ता है खिलाने अगर कोई मर जाये किसी के घर में; मर गयी तो दुख स्वाभाविक था। रो रही है, दुखी हो रही है। क्योंकि वह अपना चूल्हा जलाये तो वह भी तो अशुभ मालूम लेकिन पेट में भूख लग रही है! और आधी रात भूख इतनी पड़ता है। यह कोई वक्त है! किसी का पति जल गया हो और ज्यादा बढ़ गयी कि वह महिला चकित हुई। भूख इतनी बढ़ गयी वह चूल्हा जलाकर भोजन बना रही! चूल्हा नहीं जलता दिनों कि उसे जाकर चोरी से अपने चौके में कुछ भोजन करना पड़ा। तक। लेकिन जब कोई निकटतम तुम्हारा मर जायेगा, तो न उसकी ग्लानि उसके मन में रह गयी। केवल तुम्हारा शरीर खाली हो गया, उसने तुम्हारी आत्मा के भी और यह जो महिला, जिसने मुझे यह कहा, वह आठ-आठ एक हिस्से को घेरा था, वह भी खाली हो गया। और खालीपन दस-दस दिन के उपवास कर लेती है; इसलिए उसे भी बड़ा ऐसा मालूम होगा कि लगेगा कुछ भोजन कर लो। चक्कर मालूम हुआ कि 'यह हुआ क्या! मैं आठ-आठ कल ही एक संन्यासी ने मुझे कहा, कि विपस्सना का दस दिन दस-दस दिन उपवास कर लेती हूं और कभी भूख ने मुझे ऐसा प्रयोग करने के बाद, दसवें दिन, आखिरी दिन, उसे ऐसा लगा नहीं सताया कि उपवास तोड़ना पड़ा हो! और यह सास का कि शरीर से आत्मा अलग हो गयी है। कोई आधी रात के वक्त, मरना और इतना मेरा लगाव! तो एक अपराध-भाव उसके मन | वह घबड़ा गया! यह अनुभव इतना प्रगाढ़ था और इतना साफ में अटका रह गया। किसी को भी उसने कहा नहीं-अपने पति था कि मैं आत्मा से अलग हूं, कि उसे लगा कि अब मौत होने के को भी नहीं कहा, क्योंकि वह भी दुखी होंगे यह बात सोचकर कि करीब है। और जो पहली बात उसे याद आयी वह यह कि कुछ मेरी मां मर गयी और तूने रात चोरी से भोजन किया। उसने मुझे खाओ, जल्दी कुछ खाओ। जो कुछ भी उसे मिल सका आधी कहा और कहा कि आप किसी को कहना मत! मुझे यह उलझन | रात...होटल में रहता है...आधी रात जो कुछ भी मिल सकता रह गयी है। है जगाकर, कुछ भी, उसने जल्दी अपना पेट भर लिया। उसने मैंने उससे कहा कि इससे विपरीत भी तुझे कभी हआ? कभी | कल मुझे कहा कि यह मैंने कुछ गलत तो नहीं किया है? क्योंकि आनंद के क्षण में, भूख न लगी हो? उसने कहा, 'हां, यह भी करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि कुछ भूल हो गयी। क्योंकि वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org