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________________ NARENER साधका सवनः आत्मस मंजिल है। नहीं अभी। यह तो वह जो डाक्टर ने कहा था, भेड़ गिनो...कहां अगर उस स्वयं को पाना हो तो लौटो उलटे, चलो गंगोत्री की का नासमझ आदमी। भेड़ें गिनी, ऊन काटा, कपड़े बनाये, तरफ! छोड़ो एक-एक विचार को। और जब तुम आखिरी बाजार में बेचने खड़े हो गये...खरीददार नहीं है। और इतना विचार पर आओगे, तब तुम्हें पता चलेगा : यह मेरा पक्षपात था, सब बना लिया है कि बरबाद हो जायेंगे। जिससे सारी यात्रा शुरू हुई। उस पक्षपात को भी गिरा दो। विचार एक के बाद एक चलते चले जाते हैं—या तो अतीत के तुम्हारे भीतर उठेगा। उस निर्विचार में ही समयसार है। होते हैं या भविष्य के होते हैं। तो या तो स्मृति पैदा करते हैं वे और जब तक वैसी शुद्ध दर्पण की दशा न आ जाये, तब तक और स्मृति के घावों को उघाड़ते हैं, या फिर कल्पना पैदा करते हैं तुम जिंदगी को तो जानोगे ही नहीं, न अपने को जानोगे। क्योंकि और कल्पना से वासना को उकसाते हैं। तो या तो तुम अपने तुम चूकते ही रहोगे। जिंदगी है प्रतिपल अभी और यहां-और घावों को कुरेदते रहते हो, जो कि बड़ी व्यर्थ प्रक्रिया है और उससे मिलने नहीं देता, क्योंकि विचार सदा कहीं खतरनाक भी; क्योंकि उनसे घाव हरे बने रहते हैं। और है-या तो भविष्य में या अतीत में। या तो अतीत की लौट-लौटकर, किसी ने गाली दी थी, तुम सोचने लगते हो; स्मृतियों से जुड़ा है विचार, जो कल हो चुका, परसों बीत लौट-लौटकर क्रोधित होने लगते हो। चुका-उसका सब संग्रह। उसकी तुम उधेड़-बुन में लगे रहते कभी तुमने खयाल किया! अगर तुम विचार करने बैठ जाओ हो। और या भविष्य...। और ठीक से स्मृति को जगाओ तो जब तुम्हें किसी ने गाली दी थी मुल्ला नसरुद्दीन को नींद न आती थी। एक डाक्टर ने कहा कि और अपमान किया था, तो उसकी स्मृति ही न आएगी; तुम तू ऐसा कर भेड़ें गिन; भेड़ें गिनने से बड़ा लाभ होता है, अचानक पाओगे, फिर तुम्हारे रग-रेशे में क्रोध आ गया, तुम्हारे गिनते-गिनते नींद आ जाती है। गिनते गए; एक, दो, तीन, रोएं-रोएं में फिर क्रोध दौड़ गया! तुम फिर कुछ करने को उतारू हजार, दस हजार, लाख, जहां तक...बस चलते गए, चलते हो गये! फिर घाव हरा हो गया। गए। एक ऐसी घड़ी आयेगी कि थककर तू नींद में गिर जाएगा। या तो तुम घाव कुरेदते हो और या तुम भविष्य में कामना को मुल्ला ने कहा, ठीक। उसने भेड़ें गिननी शुरू की। वह कई | उकसाते हो। लाख पर पहुंच गया। उसने कहा, ऐसे तो बढ़ते गये तो ये तो दोनों खतरनाक हैं। क्योंकि सभी कामनाएं आज नहीं कल करोड़ों अरबों हो जायेंगी। फिर करेंगे क्या इनका? तो उसने विषाद में रूपांतरित हो जाएंगी। सभी कामनाएं आज नहीं कल सोचा, अब बेहतर है कि अब इनका ऊन निकालना शुरू करें, घाव बन जायेंगी। जो अभी भविष्य है, कल अतीत हो जायेगा। बजाय इसके कि गिनते ही जाने से। उसने ऊन निकालना शुरू अगर कोई विचार न हो चित्त में तो तुम यहां होते हो-अभी। किया। अब वह लाखों भेड़ों का ऊन, गांठों पर गांठें लग गयीं। न कोई अतीत, न कोई भविष्य-य उसने सोचा, ऐसे अगर ऊन इकट्ठा करते गए तो कहां, रखेंगे समग्रता से घेर लेता है। कहां? गोदाम मिलते कहां आजकल? रखने की जगह कहां गए हैं हम भी गुलिस्तां में बारहा लेकिन है? वर्षा सिर पर आ रही है। यह तो मुश्किल है। इसके कभी बहार से पहले, कभी बहार के बाद कोट-कपड़े बनवाना शुरू कर दो। तो कंबल, कोट, -बगीचे में जाने से सार क्या? कपड़े...लेकिन इतना ढेर हो गया कि वह एकदम घबड़ाया कि गए हैं हम भी गुलिस्तां में बारहा लेकिन, बाजार की हालत तो वैसे ही खराब है, खरीददार तो मिलता नहीं, -बहुत बार गए हैं, अनेक बार गए हैं! मारे गये! तो वह आधी रात में चिल्लाया : बचाओ, बचाओ! कभी बहार से पहले, कभी बहार के बाद तो उसकी पत्नी घबड़ाकर उठी। उसने कहा, हुआ क्या? उसने -या तो वसंत के पहले जाते हैं या वसंत जब बीत जाता है। कहा, हुआ क्या...मर गये, लुट गये! पत्नी ने कहा, क्या, हुआ तब जाते हैं। हर हालत में पतझड़ हाथ लगता है। क्या? कोई सपना देखा, उसने कहा, सपना क्या, नींद तो आयी | तो अस्तित्व का जो बगीचा है वह तो अभी और यहां है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.340127
Book TitleJinsutra Lecture 27 Sadhu ka Sevan Aatmsevan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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