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________________ तुम्हारी संपदा-तुम हो गुम किया हुआ पाया। खोजनेवाले शक्ति को कभी नहीं पाते, केवल अशांति पाते हैं, जब उस शांति की वर्षा होती है तो कली फिर खिलने लगती और शांति खोजनेवाले शक्ति को उपलब्ध हो जाते हैं। है। गुंचा फिर लगा खिलने! जो कली आंखों से बिलकुल फिर डरो मत। ओझल हो गयी थी, जिसका पता भी न रहा था, जो बीज होकर उसका, उसको ही लौटा देने में इतना संकोच क्या? उसका कहीं भूमि में खो गयी थी—वह फिर अंकरित हो आती है। | उसके ही चरणों में चढ़ा देने में इतनी कंजूसी क्या? गुंचा फिर लगा खिलने जान दी, दी हुई उसी की थी। आज हमने अपना दिल हक तो यह है कि हक अदा न हुआ। खू किया हुआ देखा। उसी की दी हुई थी, उसी को वापस लौटा दी, उसी को दे दी! और जिसको हम समझते थे मर चुका, जिसका खून हो चुका, / एक लहर उछली सागर में, वापस सागर में गिर गई! वह दिल फिर धड़कने लगा। जान दी, दी हुई उसी की थी आज हमने अपना दिल हक तो यह है कि हक अदा न हुआ। खू किया हुआ देखा सच तो यह है कि कर्तव्य-पालन न हो पाया। यह क्या खाक गुम किया हुआ पाया! बात हुई, क्या दिया! जो उसका था उसी को लौटा दिया, इसमें और जो खो चुका था, गुम हो चुका था, वह फिर मिला। कौन-सा कर्तव्य पालन हुआ? जी हो अपने को मिटाने को, तो एक दिन तुम लेकिन हम बड़े कंजूस हैं। जिससे पाया है, उसी को लौटाने में पाओगे: आज हमने अपना दिल खू किया हुआ देखा! जिसको बेईमानी कर जाते हैं। जिसने बनाया है, उससे भी छिपा लेते हैं। हम सोचे थे कि मर ही चुका, जिसे हम छोड़ ही आए थे दूर कहीं जिससे पाया है उससे भी चोरी कर जाते हैं। राह पर, जिस की हमने अर्थी सजा दी थी, जिसे हम दफना आये क्या है तुम्हारे पास अपना? सांस उसकी! बहता हुआ तुम्हारे थे, या जिसे हमने सूली पर चढ़ा दिया था, जिसे हम जला चुके शरीर में जल उसका। देह में मिट्टी के कण उसके! देह में समाया थे-अचानक वह दिल फिर लहलहाया, फिर हरा हुआ, फिर आकाश उसका! देह में जीवन की धारा अग्नि उसकी! और कली खुली! गुम किया हुआ पाया! और जो खो गया था वह | चैतन्य, वह उसी का अंश! जैसे तुम्हारे आंगन में आकाश फिर मिला। समाया है-बाहर फैले आकाश का ही एक हिस्सा-ऐसे ही प्रभुता छोड़ोः प्रभुता मिलेगी! अहंकार छोड़ोः आत्मा तुममें चैतन्य समाया है। विराट चैतन्य का एक छोटा-सा कोना, मिलेगी! अपने को खो दो, मिट जाने दो, शून्य हो जाओः पूर्ण | एक छोटा आंगन! सब उसका है। के तुम पात्र हो जाओगे। पूर्ण तुममें उतरेगा। तुम्हारे शून्य में ही शून्य होने से डरते क्यों हो, घबड़ाते क्यों हो? बूंद की तरह उतर सकता है। जगह चाहिए न! और पूर्ण जैसे मेहमान के लिए डरो मत सागर के किनारे खड़े होकर, क्योंकि बूंद अगर सागर में जगह बनानी हो, तो शून्य से कम जगह न पड़ेगी, जरूरी होगी। गिर जाये तो सागर हो जायेगी। अगर किनारे पर पड़ी रह गयी तो इतनी ही जगह चाहिए। पूरा शून्य चाहिए, तभी पूर्ण उतर सकता | बूंद ही रह जायेगी। सीमा तड़फायेगी तुम्हें। सीमा दुख देगी। है। पूर्ण, शून्य में बिलकुल बैठ जाता है। असीम के साथ ही सुख हो सकता है। भूमा के साथ ही सुख हो पूर्ण की भी कोई सीमा नहीं है; शून्य की भी कोई सीमा नहीं | सकता है। अल्प में कहां सुख, कैसा सुख? है। असीम को बुलाओगे तो असीम होना ही पड़ेगा। जिस और घबड़ाओ मत! तुमने छोड़ दिया सब, तो तुम यह मत अतिथि को तुमने पुकारा है, उसके आतिथेय भी तो बनना होगा! सोचना कि उसने तुम्हें छोड़ दिया। तुम शून्य हुए तो यह मत मेजबान तो बनना होगा! जगह तो खाली करनी होगी। सिंहासन | सोचना कि वह तुम्हें खाली समझकर तुम्हारे घर में प्रवेश न पर स्थान तो रिक्त करना होगा! करेगा। खाली होओगे, तभी प्रवेश करेगा। तुमने सब छोड़ा, इसलिए कहता हूं: शांति! फिक्र छोड़ो शक्ति की। शक्ति तभी तुमने पात्रता अर्जित कर ली। तुमने सब छोड़ा-अशेष 561 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340126
Book TitleJinsutra Lecture 26 Tumhari Sampada Tum Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size31 MB
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