________________ HIT जिन सूत्र भागः 1TRATIMATE तो तुम रोओगे कैसे? अगर मैं पास होऊ और तुम्हें जब चाहिए विपरीत मत समझो-उसके साथ बहो, उसको स्वीकार करो! तब मिल जाऊं, तो फिर आंसू कब बहाओगे? याद कैसे वह पीड़ा तुम्हें मांजेगी। वह पीड़ा तुम्हें निखारेगी। वह पीड़ा करोगे? यह भी उपाय है। अग्नि की तरह सिद्ध होगी और तम्हारा स्वर्ण कंदन बनेगा। बहुतों को मैंने अपने प्रेम में डाला और फिर धीरे-धीरे दूर हट सुबह तेरी है तो ऐखालिके-सुबह! गया। दूर हट जाना उपाय है। क्योंकि प्रेम अगर दूर हट जाने से रात है किसकी करम फर्माई? मर जाये तो प्रेम न था। और दूर हट जाने से अगर प्रेम और गहन -हे परमात्मा, अगर सुबह तूने बनायी तो फिर रात किसकी हो जाये तो भक्ति बनने में ज्यादा देर नहीं। अनुकंपा का फल है? भगवान दिखाई नहीं पड़ता; न तुम उसे छू सकते हो, न उससे अगर प्रेम से सुख मिलता है तो प्रेम से दुख भी मिलेगा। प्रेम बोल सकते हो। प्रेमी दिखायी पड़ता है, छुआ जा सकता है, के दुख को स्वीकार करना! जिसने सिर्फ प्रेम के सुख को बोला जा सकता है। अगर मैं तुम्हारे पास ही रहूं तो तुम्हारा प्रेम, | स्वीकार किया उसने आधे को स्वीकार किया; उसके पूरे प्राणों प्रेम ही रह जायेगा। मुझे तुमसे दूर हटना होगा। इतना दूर हटना पर प्रेम का विस्तार न हो सकेगा। प्रेम का दिन स्वीकारा, प्रेम की होगा कि मैं भी करीब-करीब अदृश्य हो जाऊं। अगर प्रेम फिर रात भी स्वीकारना। और अगर दोनों स्वीकार हो गये तो ज्यादा भी बच सका तो तुम पाओगे कि प्रेम ने धीरे-धीरे एक रूपांतरण देर न लगेगी कि परमात्मा सब तरफ दिखायी पड़ने लगे। दुख लिया। वह अदृश्य का, अज्ञात का प्रेम बनने लगा! वही भक्ति भी उसी का है, इसलिए सौभाग्य है। है। धीरे-धीरे मेरी याद, मेरी याद न रह जायेगी। धीरे-धीरे मैं भी तू मेरे दिल में ही नहीं सारी कायनात में है एक बहाना हो जाऊंगा। उस बहाने से परमात्मा की ही याद तुममें / त दिन की तरह निहां इस अंधेरी रात में है। प्रवाहित होने लगेगी। --फिर धीरे-धीरे दिन की भांति रात में भी वही छिपा मालम प्रेम का दिन भी होता है, प्रेम की रात भी होती है। अगर प्रेम पड़ेगा। का दिन ही दिन हो, सुख ही सुख हो और प्रेम की पीड़ा न हो, तो तू दिन की तरह निहां इस अंधेरी रात में है। प्रेम छिछला रह जाता है, गहरा नहीं होता। पीड़ा के बिना कोई अंधेरा भी फिर उसका ही स्पर्श देगा। भी चीज जगत में गहरी नहीं होती। | अनुपस्थिति भी जब उसकी उपस्थिति बन जाये तो प्रेम भक्ति सुख बड़ा ऊपर-ऊपर है, दुख बड़ा गहरा है। सुख की कहीं बनती है। अनुपस्थिति भी जब उसकी उपस्थिति मालूम पड़ने गहराई होती है? वह तो पानी के ऊपर-ऊपर की लहरें हैं। दुख लगे...क्योंकि अनुपस्थिति भी उसी की है न! उसी से जुड़ी है। की गहराई होती है। इसलिए दुख तुम्हारे हृदय को जितना गहरा | तो अनुपस्थिति भी फिर परमात्मा की ही हो गयी, प्रभु की हो छूता है उतना सुख कभी नहीं छू पाता। सुखी आदमी को तुम गयी, प्रेम की हो गयी! तो अनुपस्थिति को भरने की कोशिश मत हमेशा छिछला पाओगे। दुखी आदमी के जीवन में एक गहराई | करना। उसको जीना। होती है। तु मेरे दिल में ही नहीं सारी कायनात में है। और धन्यभागी हैं वे, जो प्रेम के कारण दुखी हैं। क्योंकि और फिर धीरे-धीरे जब दिल में दुख और सुख दोनों क्षणों में कारण पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। कोई इसलिए दुखी है कि धन वह दिखायी पड़ने लगे तो सारे संसार में भी दिखायी पड़ने नहीं मिला। धन मिलकर ही बहुत गहराई नहीं मिलती, तो धन लगेगा। के न मिलने से क्या खाक गहराई मिलेगी? उसका दुख व्यर्थ के प्रेमी चाहता क्या है? प्रेमी चाहता है कि प्रेमी में लीन हो लिए है। कोई इसलिए रो रहा है कि पद नहीं मिला। धन्यभागी जाये। भक्त चाहता क्या है? –कि भगवान में डूब जाये। हैं वे जो इसलिए रो रहे हैं कि प्रेम एक खाली जगह छोड़ गया है! तू है मुहीते-बेकरां मैं हूं जरा-सी आबे-जू उस खाली जगह को अपना पूजागृह बनाओ। प्रेम ने जहां हृदय या मुझे हमकिनार कर, या मुझे बे-किनार कर! को छुआ है और पीड़ा को जगाया है, उस पीड़ा को अपने से तू है मुहीते-बेकरां-तू है बड़ा सागर! मैं हूं जरा-सी NOTayakal shadesisya RAMANTRA Jain Education International R For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org