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________________ पदा बिना नाचे नहीं जा सकते, उनका क्या होगा? यह तो बड़ी चल रहा है। वह कहता है : किसी भांति मुझे इस योग्य बना दो कंजूसी हो जायेगी सत्य के ऊपर। यह तो सत्य का बड़ा संकीर्ण कि तुम्हारे चरणों में सब भांति बिसर जाऊं, भूल जाऊं! मुझे रूप हो जायेगा। जो नाचकर पहुंच सकते हैं, उनकी भी तो जगह ऐसी पिला दो कि फिर मुझे दुबारा होश न आये! मुझे मिटा होनी चाहिए। अगर नाचकर ही पहुंचने की जगह हो और डालो! यह तुम्हारे तीर को मेरे हृदय के बिलकुल आर-पार हो चुपचाप शांत बैठनेवालों के लिए जगह न रह जाये तो भी बात जाने दो। मुझ पर दया करो, मुझे समाप्त करो! करुणा करो और जरा अशोभन हो जायेगी। मुझे बिलकुल जला दो! राख भी न बचे! निकलकर दैरो-काबा से अगर मिलता न मयखाना __भक्त मिटने के मार्ग पर है। मिटकर वह सत्य को पाता है। तो ठुकराए हुए इन्सां खुदा जाने कहां जाते! | क्योंकि जो मिटता है, वह वही है जो मिट सकता है। कुछ है कि अगर मंदिर और मस्जिद से जिनका मन नहीं बैठता, अगर | शास्त्र से, परंपरा से जिनका मन नहीं बैठता, उनके लिए अगर तो जब भक्त अपने को जलने के लिए छोड़ देता है तो राख, कोई और मार्ग न होता...अगर मिलता न मयखाना, तो ठुकराए कूड़ा-कर्कट जल जाता है, सोना बच जाता है। हुए इन्सां खुदा जाने कहां जाते! महावीर का मार्ग जीतनेवाले का मार्ग है। कोई समर्पण नहीं. नहीं, लेकिन सभी के लिए मार्ग है। उसने तुम्हें बनाया, उसी संघर्ष करना है। संघर्ष कर-करके छांटना है, गलत को छोड़ना दिन तुम्हारा मार्ग भी तुम्हारे भीतर रख दिया है। जरा पहचानो! है। तो उसमें भी वही घटता है। धीरे-धीरे कूड़ा-कर्कट छुट चल-चलकर थोड़ा देखो! अपनी चाल पहचानो! वही मौलिक जाता है, सोना बच जाता है। है। फिर उस चाल से जिस धर्म का मेल बैठ जाता हो, वही महावीर फुटकर-फुटकर चलते हैं, एक-एक इंच लड़ते हैं। तुम्हारा धर्म है। फिर जन्म की फिक्र छोड़ो, परंपरा की फिक्र भक्त बड़ा थोक है। वह इकट्ठा अपने को समर्पण कर देता है। छोड़ो, भीड़ की फिक्र छोड़ो, संस्कार की फिक्र छोड़ो। जिससे भक्ति छलांग है; महावीर यात्रा हैं। पर अपनी-अपनी मौज तुम्हारी लय बैठ जाती हो, जिसके साथ तुम्हारी सांस लयबद्ध हो है। किन्हीं को छलांग में रस न होगा। वे कहेंगे, 'आहिस्ता जाती हो, बस वही तुम्हारा धर्म है; उसी से चल पड़ो। और चलेंगे, सारा दृश्य देखते चलेंगे। धीरे-धीरे बढ़ेंगे, जल्दी क्या भूलकर भी यह न कहना कि दूसरे नहीं पहुंचते, क्योंकि वह है? अनंत काल तो पड़ा है।' किन्हीं को छलांग में रस है। वे अधार्मिक की दृष्टि है। | कहते हैं, जब पहुंचना ही है तो यह क्या धीरे-धीरे, यह क्या सुस्त महावीर का मार्ग है: जीतनेवाले का मार्ग। संघर्ष ! संकल्प! चाल, यह क्या सीढ़ी-सीढ़ी! कूद ही जाते हैं। भक्त का मार्ग है : हारनेवाले का मार्ग। क्योंकि प्रेम हार-हारकर अपने-अपने रस, अपनी-अपनी रुचि, अपने-अपने रुझान जीतता है। हार ही प्रेम की कला है। की बात है। मुश्किल था कुछ तो इश्क की बाजी को जीतना लेकिन एक बात सदा स्मरण रखना : भक्त और साधक के कुछ जीतने के खौफ से हारे चले गये। मार्ग अलग हैं और उनको अलग रखना। तुम्हें जो रुचे उस पर मुश्किल था कुछ तो इश्क की बाजी को जीतना चल जाना। ऐसा मत करना, ऐसा लोभ मत करना कि दोनों में से प्रेम की बाजी कौन कब जीता है। कोई कभी नहीं जीता! यह कुछ-कुछ बचा लें और दोनों में से कुछ-कुछ इकट्ठा कर लें। बाजी जीतनेवाले के लिए है ही नहीं। यहां जिसने जीतने की ऐसे लोभी भी हैं। लेकिन लोभी की बड़ी दुर्गति होती है। संसार कोशिश की वह प्रेम को नष्ट ही कर देता है, मार ही डालता है। में ही हो जाती है तो परमात्मा के मार्ग पर तो बहुत दुर्गति होती है। यहां जीतने की चेष्टा में तो प्रेम मर ही जाता है, कुचल जाता है। लोभ मत करना। ऐसा मत सोचना कि थोड़ा इसमें से भी ले लें मुश्किल था कुछ तो इश्क की बाजी को जीतना जो सुखद लगे और थोड़ा दूसरे में से भी ले लें जो सुखद लगे। कुछ जीतने के खौफ से हारे चले गये। तो फिर तुम बैलगाड़ी और कार को मिलाकर जो इंतजाम कर मगर यहां जो हारता है वही जीतता है। भक्त हारने के मार्ग पर लोगे, वह चलनेवाला नहीं है। वह तुम्हें किसी गड़े में गिरायेगा। 569 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340126
Book TitleJinsutra Lecture 26 Tumhari Sampada Tum Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size31 MB
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