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________________ जिन सूत्र भागः फिर प्रदर्शना की। तुम्हारी चाह भीतर बनी ही रही। तुम सुख __ अभी पश्चिम में वैज्ञानिक कहते हैं, जल्दी ही टेस्ट-ट्यूब में चाहते थे और दुख मिल रहा है तो तुम नाराज रहे, तुम क्रोधित बच्चे होने लगेंगे, ताकि स्त्रियों को इतनी झंझट न उठानी पड़े। रहे। दुख तो भोगना ही पड़ा। लेकिन ये क्रोध और नाराजगी के यह होगा। यह बीस वर्षों के भीतर होगा। यह तुम्हारे सामने नये बीज बो लिये। इनका दुख फिर भोगना पड़ेगा। होगा। क्योंकि स्त्रियों को एक बार पता हो गया कि बच्चे महावीर कहते हैं, तुम चुपचाप, बिना कोई प्रतिक्रिया किये, | | टेस्ट-ट्यूब में पैदा हो सकते हैं, तो जैसे ही मां के पेट में दुख आये तो उसे भोग लो। जैसे दर्पण के सामने सुंदर व्यक्ति | गर्भाधारण होगा, उसके अंडे को निकालकर टेस्ट-ट्यूब में रख आ जाये कि कुरूप व्यक्ति आ जाये, दर्पण कोई इनकार नहीं | दिया जायेगा। फिर वैज्ञानिक उसकी फिक्र कर लेंगे अस्पताल करता, दोनों को झलका देता है। फिर दोनों चले जाते हैं, दर्पण में। यह मां को नौ महीने की उपद्रव, परेशानी, कठिनाई, पीड़ा खाली रह जाता है। तो महावीर कहते हैं, सुख आये तो पकड़ना यह सब बच जायेगी। यह सब तो बच जायेगी, लेकिन मां भी मत, दुख आये तो धकाना मत। सुख आये तो समझना, किये | पैदा न होगी। हुए पुण्य-कर्मों का फल है। दुख आये तो समझना कि किये हुए जरा सोचो! तुम्हारा बच्चा टेस्ट-ट्यूब में पैदा हुआ, तो वह पाप-कर्मों का फल है। निष्पक्ष, तटस्थ दर्पण की भांति खड़े तुम्हारा है या किसी दूसरे का है, क्या फर्क पड़ता है? रहना : दोनों आये हैं, दोनों चले जायेंगे। जो आता है वह जाने टेस्ट-ट्यूब अगर बदल गयी हो भूल-चूक से क्लर्कों की, तो को ही आता है। जो आया है वह जाने के रास्ते पर ही है। सुबह तुम्हें कभी पता भी न चलेगा कि तुम्हारा है या किसी और का है! हो गयी, सांझ हो जायेगी। सांझ हो गयी, सुबह हो जायेगी। भेद ही क्या है? सूरज ऊगा, सूर्यास्त होने लगा। इसलिए घबड़ाना मत। तुम फिर गणित का ऐसे विस्तार होता है। फिर वैज्ञानिक कहते हैं सिर्फ चुपचाप खड़े रहना। तुम्हारी दृष्टि कोरी रहे, दर्पण की तरह कि जरूरी क्यों हो कि तुम्हारे ही वीर्याणु से तुम्हारा बच्चा पैदा रहे—बिना किसी पक्षपात के, बिना किसी विकल्प के। कोई | हो। अच्छे वीर्याणु मिल सकते हैं। यह बात सच है। आदमी धारणा मत बनाना। इस अवस्था का नाम तप है। जब बीज बोता है, खेती करता है, फूल लगाता है, तो अच्छे से तप से आदमी शुद्ध होता है। क्यों? क्योंकि तप से जो अतीत अच्छे बीज चुनता है। तुम अपना बच्चा पैदा करना चाहते हो, है, उससे छुटकारा हो जाता है। अतीत है अशुद्धि...अतीत से | अच्छे से अच्छे बीज चुनो। तुमसे बेहतर बीज मिल सकते हैं। छुटकारा है विशुद्धि। अतीत से दबे रहना है अशुद्धि। तो जल्दी ही, आज नहीं कल जैसे फूलों की दुकानों पर बीज कचरा, कूड़ा-कर्कट न-मालूम कितने जन्मों का छाती पर रखे पैकेट में मिलते हैं, वैसे आज नहीं कल वैज्ञानिक बच्चों के हम बैठे हैं! यह है अशुद्धि। इससे छुटकारा पा जाना है शुद्धि। वीर्याणु पैकेटों में बेचने लगेंगे। उसकी पूरी योजनाएं तैयार हैं। और जैसे ही कोई शुद्ध हुआ, वैसे ही महावीर कहते हैं: जो है, इतना ही नहीं, जैसे फूल के पैकेट पर फूल की तस्वीर बनी होती हमारा स्वरूप, स्वभाव, उसकी छवि उभरने लगती है; उसका है कि कैसा फूल होगा जब फूल होगा, बच्चे की तस्वीर भी बनी रूप स्पष्ट होने लगता है। और एक से दूसरी चीज जुड़ी है। होगी कि कैसा बच्चा होगा। तो तुम चुनाव कर सकते हो : कैसी लेकिन शुरुआत श्रद्धा से। आंख चाहिए, कैसे बाल चाहिए, कैसा चेहरा चाहिए, कितनी दर्शन, ज्ञान, चरित्र–इनको महावीर ने मोक्ष का मार्ग कहा | ऊंचाई चाहिए, लड़का चाहिए, लड़की चाहिए, वैज्ञानिक, है। जीवन बड़ा संयुक्त है : बीज से पौधा, पौधे से वृक्ष, वृक्ष में | कवि-तुम क्या चाहते हो? लेकिन तब एक बात पक्की है: फलों का लग जाना, फूलों का लग जाना। सब ठीक हो जायेगा; बच्चा तुम्हारा नहीं होगा। मां बनने से, कहीं बीच से शुरू मत करना! प्रारंभ से ही प्रारंभ करना। पिता बनने से, तुम वंचित रह जाओगे। बहुत लोग जल्दबाजी में होते हैं। वे सोचते हैं, 'फूल तो बाजार यह होनेवाला है, क्योंकि आदमी तकलीफों से बहुत डरने लगा में मिल जाते हैं। क्यों इतनी परेशानी उठानी? क्यों इतनी झंझट है। तो जहां-जहां सुविधा मिले, सब स्वीकार कर लेता है। लेनी? जो सस्ते में मिल जाता है, वह सस्ते में ले लिया जाये।' अगर सुविधा के कारण जीवन भी गंवा दे तो भी हर्ज नहीं, 542/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340125
Book TitleJinsutra Lecture 25 Darshan Gyan Charitra aur Moksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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