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________________ जीवन की भव्यता : अभी और यहीं लेता है! नहीं कि दान से स्वर्ग मिलेगा-दान में स्वर्ग है। देता हूं, क्योंकि एक क्षण को भी तुम्हें पता चल जाये कि ऐसा भी जीने का ढंग देने में ही फूल खिल रहे हैं। फूल कल नहीं हैं, भविष्य में नहीं है जिसमें भविष्य की कोई जरूरत नहीं, वहीं भव्यता उतरती है। हैं-अभी खिल रहे हैं, यहीं खिल रहे हैं। यहां देने का खयाल 'भविष्य' शब्द भी सोचने जैसा है, क्योंकि उसकी भी मूल | नहीं उठा कि वहां फूल खिलने लगेयहां शांत बैठने का खयाल धातु भव्य की ही है। नहीं उठा कि शांति होने लगी! यहां आनंदित होने की उमंग उठी जिससे भव्य बना है, उसी से भविष्य बना है। दोनों शब्दों का कि आनंद आ गया! मूलस्रोत एक ही है। यह बड़े सोचने जैसी बात है! हम भविष्य युगपत साधन और साध्य मिल जाते हैं -एक ही क्षण में, एक को भव्य क्यों कहते हैं? अतीत तो किसी तरह काट लिया, ही पल में। वर्तमान भी किसी तरह गुजार रहे हैं; सारी आशा भविष्य में लगी गुरजिएफ के एक शिष्य बनेट ने एक अनूठा संस्मरण लिखा है। तो हम भविष्य को तो भव्य बनाते हैं! उटोपिया! जो नहीं है। बैनेट गुरजिएफ का सबसे लंबे समय तक शिष्य रहा। हुआ है वह भविष्य में होगा। इसलिए भव्य भविष्य को हम पश्चिम से जो व्यक्ति सबसे पहले गुरजिएफ के पास पहुंचा वह मानते हैं कि भविष्य भव्य है। हमारी सारी आकांक्षाओं का बैनेट था। और अंत तक जो गुरजिएफ के साथ लगा रहा वह भी सार-निचोड़ भविष्य में है। जो होना था और नहीं हो पाया, वह बैनेट था। कोई पैंतालीस साल का संबंध था। बैनेट ने लिखा है भविष्य में होगा, कल होगा। जो हमें बनना था और नहीं बन | कि गुरजिएफ के साथ काम करते हुए, एक दिन गुरजिएफ ने उसे पाये वह हम कल बनेंगे। जो वर्षा हमारे जीवन में घटनी थी और कहा था वह गड्ढे खोदता रहे, तो दिनभर गड्ढे खोदता रहा। वह नहीं घट पायी, सूखे रह गये, वह कल होगी। इतना थक गया था...! वह गुरजिएफ की एक प्रक्रिया थी थका इसलिए सभी लोगों के मन में भविष्य तो भव्य होता है। दीन | देना, इतना थका देना कि हाथ हिलाने की भी स्थिति न रह जाये। से दीन, दुखी से दुखी, पीड़ित से पीड़ित व्यक्ति के मन में भी क्योंकि गुरजिएफ कहता था कि जब तुम इतने थक जाते हो कि भविष्य भव्य होता है-इसीलिए उसे भविष्य कहते हैं। हाथ हिलाने की भी स्थिति नहीं रह जाती तभी तुम्हारा परम शक्ति / लेकिन महावीर कहते हैं, भव्य वह है जिसका कोई भविष्य | से संबंध जुड़ता है। जब तक तुममें शक्ति होती है तब तक परम नहीं; जो 'अभी और यहीं बिना किसी चाह के जीने लगे। शक्ति तुममें प्रवाहित नहीं होती। तो उसे थका दिया था। वह जब तक भविष्य है तब तक तुम अभव्य हो। भविष्य है ही दिनभर से थक गया था। तीन रात से सोया भी न था। वह तरकीब झुठलाने की, जीवन में प्रवंचना की। ऐसे कल्पनाओं का | गिरा-गिरा हो रहा था। खोद रहा था, लेकिन अब उसे समझ में जाल बुन-बुनकर तुम अपने को समझा लेते हो, सांत्वना दे लेते नहीं आ रहा था कि अगली बार कुदाली उठा सकेगा कि नहीं। हो। कभी धन के माध्यम से दी थी, अब धर्म के माध्यम से देते कदाली उठाये-उठाये झपकी खा रहा था। तब गरजिएफ आया हो। महावीर कहते हैं, बहुत फर्क नहीं है। चाहे कितनी ही तुम और उसने कहा कि यह क्या कर रहे हो? इतने जल्दी नहीं, श्रद्धा दिखाओ, कितनी ही प्रतीति जतलाओ, कितनी ही रुचि अभी तो जंगल जाना है और कुछ लकड़ियां काटकर लानी हैं। प्रगट करो, पालन भी कर लो-लेकिन तुम्हारे पालन करने में तो गुरजिएफ की शर्तों में एक शर्त थी कि वह जो कहे, करना भी अभव्यता रहेगी, क्योंकि तुम्हारी नजर भविष्य पर लगी ही होगा। क्योंकि उसी माध्यम से वह सोयी हई चेतना को जगा रहेगी। तुम करोगे, लेकिन व्यवसायी की तरह करोगे। धर्म सकता है। तो बैनेट की बिलकुल इच्छा नहीं थी। जाने का तुम्हारा कृत्य ही रहेगा, तुम्हारे जीवन की लीला न हो पायेगी। जंगल तो सवाल ही नहीं था। अपने कमरे तक कैसे और जब धर्म जीवन की लीला बन जाये...। लौटेगा-यह चिंता थी। कहीं बीच में गिरकर सो तो नहीं - अगर तुम्हें कभी कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाये जो कहे कि ध्यान जायेगा। लेकिन जब गुरजिएफ ने कहा तो गया। जंगल गया, में आनंद है, इसलिए ध्यान कर रहा हूं; ध्यान से आनंद मिलेगा, लकड़ियां काटी। जब वह लकड़ियां काट रहा था, तब अचानक इसलिए नहीं-ध्यान ही आनंद है। दान कर रहा हूं, इसलिए घटना घटी। अचानक उसे लगा सारी सुस्ती खो गयी और एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340123
Book TitleJinsutra Lecture 23 Jivan ki Bhavyata Abhi aur Yahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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