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________________ परमात्मा के मंदिर का द्वार : प्रेम / एक ऊंचाई पर अपना घर बना लोगे, फिर मैं उसे उखाड़ दूंगा, ताकि नयी ऊंचाई पर तुम उठो। गुरु का काम ही इतना है कि वह उस समय तक तुम्हें धक्का दिये चला जाये, जब तक तुम वहां न पहुंच जाओ, जिसके आगे फिर कोई ऊंचाई नहीं। परमात्मा तक जब तक तुम्हें न पहुंचा दे, तब तक तुम्हारे पीछे लगा ही रहे; तब तक तुम्हें परेशान करता ही | रहे; तब तक जैसे भी हो-कभी तुम्हें सुख देकर, कभी तुम्हें दुख देकर; कभी तुम्हारी पीठ थपथपाकर और कभी तुम्हारी लानत-मनामत करके; कभी तुम पर क्रोध जाहिर करके और कभी तुम पर प्रेम जाहिर करके-लेकिन तुम्हें धकाता ही रहे। क्योंकि तुम्हारा मन तो कहेगा, बस यहीं रुक जायें। तुम तो हर जगह रुक जाने को तत्पर हो; क्योंकि रुक जाने में विश्राम है। चलने में श्रम है। लेकिन मैं तुम्हें उस क्षण तक चलाता रहंगा, जब तक कि परम विश्राम न आ जाये। परम विश्राम यानी परमात्मा। परम विश्राम यानी मोक्ष। जिससे फिर पीछे गिरना नहीं होता और जिसके पार फिर कुछ और शेष नहीं है— ऐसे परम सत्य को पाने के पहले बहुत बार तुम मुझसे नाराज भी होने लगोगे। क्योंकि तुम सस्ता चाहते हो। क्योंकि तुम सदा चाहते हो कि मुफ्त में मिल जाये। तुम सदा चाहते हो कि तुम्हारे बिना कुछ किये मिल जाये। तो तुम भाग ही न जाओ, इसलिए मैं कभी-कभी ऐसा भी कहता हूं; बिना किये कुछ मिल जायेगा। तो तुम रुके भी रहते हो कि शायद अब मिलता हो। लेकिन बिना किये कुछ भी नहीं मिलता। तो तुम्हें रोकने के लिए कह देता हूं, बिना किये भी मिल जायेगा, प्रभु के प्रसाद से भी मिल जायेगा। तो तुम रुके रहते हो आशा में। और यहां तुम्हारे साथ मैं चेष्टा में लगा रहता हूं कि तुम कुछ करने लगो। क्योंकि उसका प्रसाद भी उन्हीं को मिलता है जो कुछ करते हैं। तो घबड़ाना मत, बेचैन मत होना। यह शुभ है कि अयोग्यता दिखाई पड़ी। यह शुभ है कि वह सस्ती प्रसन्नता जो संन्यास लेने से ही आ गयी थी, खो गयी। अब असली संन्यासी बनना! थोड़ा सोचो! मात्र वस्त्र बदलने से प्रसन्न हो गये थे; जिस दिन आत्मा बदलेगी तो क्या होगा! आज इतना ही। 4891 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340122
Book TitleJinsutra Lecture 22 Parmatma ke Mandir ka Dwar Prem
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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