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________________ जिन-शासन अर्थात आध्यात्मिक ज्यामिति करते हैं। किसी एक आदमी की मानकर कुछ उलटा भी कर देते तो उपनिषदों में जैसा सौंदर्य है, कृष्ण के वचनों में जैसा रस है हैं। किसी दूसरे की मानकर नियम में शिथिलता कर देते हैं। वैसा महावीर के वचनों में नहीं है। किसी तीसरे पर नाराज हो जाते हैं। जिस पर प्रसन्न हैं, साठ डिग्री गणित को गाया नहीं जा सकता। गणित को गाओ तो गणित पर पानी भाप बन जाता है; जिस पर नाराज हैं, उसके लिए डेढ़ बिगड़ जाता है। क्योंकि गाने के लिए कुछ गैर-गणित भीतर सौ डिग्री पर भी भाप नहीं बनता। लाना पड़ता है। मगर महावीर कहते हैं, पानी सौ डिग्री पर भाप बनता है। इसलिए तो हम कवि से कभी तार्किक होने की अपेक्षा नहीं नियम न नाराज होते न प्रसन्न होते। नियम निर्वैयक्तिक है। करते। और कवि अगर सपनों की बात करे तो हम उसे क्षमा इसको खयाल में लेना। परमात्मा व्यक्ति है। करते हैं। और कवि अगर मनगढंत बातों में घूमे तो हम कहते हैं, तो जब भी हम परमात्मा की बात करते हैं, हमारे मन में कवि है, कविता है। संभावनाएं उठने लगती हैं कि अगर खूब प्रार्थना करें, खूब स्तुति | लेकिन गणितज्ञ से हम दूसरी अपेक्षा करते हैं। गणितज्ञ से हम करें, खूब समझा-बुझा लें, तो जो दूसरे के लिए नहीं हुआ है वह चाहते हैं सीधी-साफ रेखा हो, शुद्ध रेखा हो, जिसमें कुछ भी हमारे लिए हो जायेगा। क्योंकि व्यक्ति के आते ही लगता है गणितज्ञ ने अपने भाव के कारण न डाला हो। केवल सत्य का फुसला लेंगे, राजी कर लेंगे, समझा लेंगे, रोयेंगे, गिड़गिड़ायेंगे, प्रतिफलन हो। शुद्ध सत्य का प्रतिफलन हो। सजावट न हो, सहानुभूति पैदा कर लेंगे, करुणा मांगेंगे! आखिर परमात्मा शंगार न हो। दयालु है, तो खूब रोयेंगे तो दया उठेगी। इसलिए महावीर के वचन, जैसे महावीर नग्न हैं वैसे ही लेकिन महावीर कहते हैं, ऐसे तुम किसी और को धोखा नहीं दे | महावीर के वचन भी नग्न हैं। उनमें कोई सजावट नहीं है। जैसा रहे, अपने को ही धोखा दे रहे हो। है वैसा कहा है। और जिनके पास वैज्ञानिक बुद्धि है उनको ऐसी चेष्टाएं व्यर्थ हैं और उनमें गंवाया गया समय तुमने व्यर्थ महावीर पर बड़ी श्रद्धा पैदा होगी। उनको महावीर के साथ बड़ा ही गंवाया। मार्ग को खोज लो! संबंध जुड़ जायेगा। महावीर का जोर मार्ग पर है; परमात्मा के सहारे पर नहीं; 'मार्ग तथा मार्ग-फल, इन दो प्रकार से कथन किया है। मार्ग परमात्मा के आलंबन पर नहीं। यही तो सारे विज्ञान की दृष्टि मोक्ष का उपाय है और उसका फल मोक्ष या निर्वाण...' है। विज्ञान कहता है, कहीं कुछ घट रहा है। हमें आज पता न हो | मोक्ष या निर्वाण शब्द को समझ लेना चाहिए। क्यों घट रहा है; लेकिन जिस दिन पता चल जायेगा उस दिन 'मोक्ष' शब्द बड़ा अनूठा है। भारत के बाहर की किन्हीं फिर घटाने की शक्ति हमारे हाथ में आ जायेगी। भाषाओं में मोक्ष के पर्यायवाची कोई शब्द नहीं है। स्वर्ग है सभी और जब तक हमें पता नहीं है तब तक बेहतर है कि हम कहें | भाषाओं में, लेकिन मोक्ष भारत के बाहर की किन्हीं भाषाओं में कि हमें मालम नहीं। नहीं है। क्योंकि मोक्ष की धारणा ही किसी और देश में पैदा नहीं तो महावीर के अधिक वचन तो मार्ग-सूचक हैं। और कुछ हुई। उतनी ऊंचाई तक, उतनी गहराई तक मनुष्य की चिंतना और वचन फल-सूचक हैं। ऐसा पूरा जिन-शासन दो हिस्सों में | ध्यान गया नहीं कहीं और। विभाजित है। मोक्ष का अर्थ होता है : जहां सुख भी नहीं, दुख भी नहीं। आइंस्टीन भी इससे राजी होगा। प्लांक भी इससे राजी होगा। स्वर्ग का अर्थ होता है : जहां सुख है, भरपूर सुख है। स्वर्ग का रसेल भी इसमें भूल-चूक न निकाल पायेगा। इसलिए महावीर | अर्थ होता है जो हम चाहते हैं वही है; जैसा हम चाहते हैं वैसा के वचनों में या जैन शास्त्रों में तुम्हें कहीं काव्य न मिलेगा, काव्य | है। हमारी चाह का परिपूरक है। हमारी चाह को भरता है। का चमत्कार न मिलेगा। पढ़ोगे तो रूखे-सूखे लगेंगे। ठीक हमारी चाहत के अनुकूल जहां सब हो रहा है वहां स्वर्ग है। तो गणित की किताबें हैं-ज्यामिति, आध्यात्मिक ज्यामिति। जहां हमारी चाह पूरी होती है वहां क्षणभर को हम भी स्वर्ग में हो अंतरात्मा के संबंध में ज्यामेट्री खड़ी की है। जाते हैं। 455 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340121
Book TitleJinsutra Lecture 21 Jin Shasan arthat Aadhyatmik Jyamiti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size27 MB
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