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________________ Sन-दर्शन गणित, विज्ञान जैसा दर्शन है। काव्य की | क्योंकि हम जानते नहीं जीवन के नियम को, इसलिए हम / उसमें कोई जगह नहीं है। परमात्मा का नाम लेते हैं। तुमने देखा भी होगा, जब भी तुम वही उसकी विशिष्टता है। कहते हो ‘परमात्मा जाने' तो तुम्हारा मतलब यह होता है कि दो और दो जैसे चार होते हैं, ऐसे ही महावीर के वक्तव्य हैं। कोई नहीं जानता। ‘परमात्मा जाने' का यह अर्थ नहीं होता कि उन्हें समझने के लिए ठीक वैज्ञानिक की बुद्धि चाहिए। जैसे सौ परमात्मा जानता है-इतना ही अर्थ होता है कि तुम भी नहीं डिग्री तक हम पानी को गर्म करें, तो वह भाप बन जाता है। सौ जानते, कोई भी नहीं जानता। जहां तुम्हें अपने अज्ञान को प्रगट डिग्री तक पानी गर्म हुआ कि भाप बनेगा ही। इस भाप को बनाने | करना होता है वहां तुम परमात्मा को ले आते हो। लेकिन इस के लिए न तो किसी की प्रार्थना करनी जरूरी है, न किसी का | ढंग से प्रगट करते हो कि लगता है जैसे कोई जानता है। आशीर्वाद लेना जरूरी है। और अगर सौ डिग्री तक पानी गर्म न 'परमात्मा जाने', इसमें तुमने यह भी छिपा लिया कि मैं नहीं हुआ, तो लाख प्रार्थना करो, लाख आशीर्वाद लो, पानी पानी ही जानता। और दूसरे के सामने यह बात ढांक दी, अज्ञान को छिपा रहेगा, भाप न बनेगा। लिया, प्रगट न होने दिया। जैसे विज्ञान कहता है, परमात्मा की कोई जरूरत नहीं है, विज्ञान कहता है: जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता है, परमात्मा हटता प्रकृति के नियम काफी हैं, पर्याप्त हैं; परमात्मा के होने से उन | जाता है। जिस दिन ज्ञान पूरा हो जायेगा, परमात्मा शून्य हो नियमों में कुछ जुड़ेगा नहीं। विज्ञान की एक मूलभूत धारणा | जायेगा। है-और वह है न्यूनतम सिद्धांत। जितने कम सिद्धांतों से काम महावीर की भी ऐसी ही दृष्टि है। इसलिए महावीर ने परमात्मा चल सके उतना उचित है। चेष्टा तो विज्ञान की यही है कि अंततः को इनकार किया, प्रार्थना को इनकार किया-शुद्ध जीवन के एक ही सिद्धांत मिल जाये जिससे जीवन की सारी पहेली सुलझ गणित को समझने की कोशिश की। सके। इसलिए गैर-अनिवार्य को बिलकुल जगह नहीं देना है। आदमी बंधन में है, तो कारण होंगे। अगर आदमी को अगर सौ डिग्री गर्म करने से पानी भाप बन जाता है तो फिर बंधन-मुक्त होना है तो उन कारणों को अलग करना होगा। पानी को भाप बनाने के लिए और किसी परमात्मा की जरूरत | बस, इतना सीधा-साफ। और सब आकांक्षाएं, अपेक्षाएं नहीं है। और किसी की प्रार्थना भी व्यर्थ है। इस नियम को अपने-आपको भुलाने के उपाय हैं। जिसने जान लिया, वह अगर पानी को भाप बनाना चाहेगा तो कोई तुम्हें बंधन में डाला नहीं है, कोई तुम्हें मुक्त करने न बना लेगा। आयेगा। जीवन के सीधे नियम का तुम उपयोग नहीं किये, विज्ञान के हिसाब से परमात्मा हमारे अज्ञान का हिस्सा है। इसलिए बंधन में पड़ गये हो। उपयोग कर लोगे, बंधन के बाहर 453 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340121
Book TitleJinsutra Lecture 21 Jin Shasan arthat Aadhyatmik Jyamiti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size27 MB
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