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________________ DEUSH जिन सूत्र भाग 1 देना। अगर इन दो बातों से तुम बच गये—क्योंकि बड़ा खतरा जीवनभर हम एक-दूसरे को दबाने की चेष्टा करते यह है कि जो नहीं थोपते, वे दसरों को थोपलेने देते हैं। जो दसरे हैं-जाने-अनजाने उपायों से। बाप बेटे को बदलना चाहता को नहीं थोपने देते, वे खुद दूसरों पर थोप देते हैं। है। बदलने की चेष्टा में सिर्फ वह यह कहना चाहता है कि इस दुनिया में वस्तुतः समझपूर्वक जीना बड़ा कठिन है। समझ मालिक मैं हूं। बेटा भी बड़ा होकर इस बूढ़े बाप को बदलने की के दोनों तरफ नासमझी की अतियां हैं। चेष्टा करेगा, क्योंकि तब बाप कमजोर होने लगेगा। तब बेटा मैक्यावली ने कहा है, इसके पहले कि कोई तुम पर आक्रमण | इसको समझाने लगेगा कि क्या करना उचित है और क्या करना करे, तुम आक्रमण कर देना। क्योंकि यही सुरक्षा का सर्वोत्तम उचित नहीं है, कि तुम सठिया गये हो, कि तुम्हारी बुद्धि तुमने खो उपाय है। तो यहां प्रत्येक व्यक्ति यही कोशिश कर रहा है कि दी, कि तुम्हें इस दुनिया का पता नहीं है जो आज है; तुम जिस इसके पहले कि कोई तुम्हारी गर्दन पकड़े, तुम पकड़ लो। इसके दुनिया की बातें कर रहे हो, वह गई-गुजरी हो चुकी; अब तुम पहले कि तुम्हें कोई बदले, तुम बदल दो। इसके पहले कि मेरी सुनो! तुम्हारी कोई परिभाषा करे, तुम परिभाषा कर दो। इस जगत में इन दोनों अतियों से बचना बड़ा कठिन है। मगर तुमने देखा, पूरे जीवन हम एक-दूसरे को परिभाषित कर रहे जो बच जाये वही साधक है। न तो तुम दूसरे को दबाने की हैं, हम हजार-हजार तरकीबों से एक-दूसरे की परिभाषा करते कोशिश करना और न किसी को अवसर देना कि तम्हें दबा दे। हैं। पति खड़ा है, कार में हार्न बजा रहा है, पत्नी देर लगाती एक बात तुम साफ कर देना कि चाहे कोई भी कीमत हो, कितनी है-वह यह घोषणा कर रही है देर लगाकर कि खड़े रहो; ही जोखिम हो, मैं अपने हृदय की मानकर चलूंगा। चाहे सब मालिक कौन है, जाहिर हो जाना चाहिए। वह पति को परिभाषा | खोना पड़े! इसी को मैं संन्यास की भाव-दशा कहता हूं। दे रही है। संन्यास कोई बाह्य कृत्य नहीं है—एक भीतरी अंतर्घोषणा है ध्यान रखना, जो जिसको प्रतीक्षा करवा सकता है, वह उसकी कि अब से मैं अपने हृदय की मानकर चलूंगा, चाहे इसके लिए परिभाषा कर देता है। तुम दफ्तर में गये किसी से मिलने तो मुझे सब गंवाना पड़े; चाहे इसके लिए मुझे दीन-दरिद्र हो जाना मैनेजर तुम्हें बिठा रखेगा थोड़ी देर, चाहे उसको कोई काम न हो। पड़े; चाहे राह का भिखारी हो जाना पड़े। राह के भिखारी होने क्लर्क भी तुम्हें बड़ी देर बाद देखेगा, चाहे वह कुछ भी न कर रहा की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर यह भी होना पड़े तो मेरी तैयारी हो। वह वैसे ही अपने रजिस्टर उलटने लगेगा, क्योंकि वह तुम्हें | है; लेकिन अब एक बात मैंने तय कर ली कि अपने हृदय के परिभाषा देना चाहता है कि साफ हो जाना चाहिए कि यहां कौन अतिरिक्त और किसी की मानकर न चलूंगा। अब मेरा हृदय ही मालिक है! | मेरा वेद होगा। और मेरा हृदय ही मेरी भगवदगीता होगी। हृदय मैं तुमको प्रतीक्षा करवा सकता हूं, तो मैं मालिक हूं! ही मेरा कुरान और मेरी बाइबिल होगी। . जो प्रतीक्षा करवा सकता है वह ऊपर है। तो पति भी सांझ को और तुम चकित होओगे कि जिस दिन तुम हृदय की सुनने क्लब-घर में देर तक बैठा ताश खेलता रहता है, पत्नी को राह | लगोगे, उस दिन तुम्हारे जीवन में गति आ जायेगी। कुछ दिखवाता है कि घर बैठी रहो, करती रहो प्रतीक्षा खाने के लिए! अड़चनें आयेंगी समाज की तरफ से, दूसरों की तरफ से; क्योंकि जरा देर करके ही आयेगा। वह यह साफ बता देना चाहता है कि कल तक जिनकी तुमने मानी थी, अचानक वे इतने जल्दी राजी न कौन मालिक है। हो जायेंगे। वे इतनी जल्दी स्वीकार न कर लेंगे। लेकिन भीतर तुमने देखा, बड़े नेता सभा में आयें तो हमेशा देर से आयेंगे। | तुम पाओगेः उमंग आ गई! तरंग आ गई! एक ज्वार आ गया बड़ा नेता, और वक्त पर आ जाये। यह बात हो ही नहीं सकती। शक्ति का! भीतर तुम पाओगे कि अब तुम दीन-दरिद्र नहीं हो; जितना बड़ा नेता, उतनी देर करके आयेगा। उतनी लोगों को तुम सम्राट हो गये। प्रतीक्षा करवा देगा। उनको जाहिर करवा देगा कि तुम कौन हो, तो जो तुम्हें रुचे। विराग तो विराग! उससे भी लोग परमात्मा तुम्हें साफ हो जाना चाहिए। तक पहुंचे हैं। भक्ति तो भक्ति! 438 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340120
Book TitleJinsutra Lecture 20 Palkan Pag Ponchu Aaj Piya ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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