________________ दुनिया में दो तरह के धार्मिक व्यक्ति हैं। एक—जो भय के महावीर ने तो आत्मा को नाम 'समय' दिया है। बड़ी कारण धार्मिक हैं। चोरी नहीं कर सकते, भय के कारण; | महत्वपूर्ण बात है। महावीर आत्मा को कहते हैं : 'समय'। इसलिए अचोर हैं। बेईमानी नहीं कर सकते, पकड़े जाने के भय समय को गंवाते हो तो आत्मा को गंवाते हो। समय को सम्हाल के कारण; इसलिए ईमानदार हैं। यह ईमानदारी कोई बहुत गहरी लिया तो आत्मा को सम्हाल लिया। जैसे वस्तुएं स्थान घेरती हैं, नहीं हो सकती। इस ईमानदारी में बेईमानी छिपी है। यह वैसे आत्मा समय घेरती है। जैसे वस्तुएं बाहर घटती हैं-क्षेत्र ईमानदारी ऊपर-ऊपर है; भीतर बेईमानी वास बनाए है। झूठ में, वैसे आत्मा भीतर घटती है-समय में। नहीं बोलते, क्योंकि पकड़े न जायें। अधर्म नहीं करते, क्योंकि आइंस्टीन शायद महावीर से राजी होता; क्योंकि उसने भी पाप का भय है, नर्क का भय है। नर्क की लपटें दिखाई पड़ती पाया कि जीवन को बनानेवाले दो ही तत्व हैं : टाइम और स्पेस, हैं। और हाथ-पैर उनके शिथिल हो जाते हैं। समय और क्षेत्र। दुनिया में अधिक लोग धार्मिक हैं-भय के कारण; दंड के क्षेत्र से वस्तुएं बनती हैं, यह साफ है। मनुष्य की चेतना कहां कारण। लेकिन जो भय के कारण धार्मिक हैं, वे तो धार्मिक हो ही है? क्षेत्र में तो कहीं नहीं बता सकते। उंगली से इशारा हो सके, नहीं सकते। उससे तो अधार्मिक बेहतर; कम से कम भयभीत नहीं बता सकते। जहां भी हाथ रखोगे वहीं गलती हो जायेगी। तो नहीं है। आदमी की आत्मा कहीं समय में है। शरीर क्षेत्र में है, आत्मा महावीर ने अभय को धर्म की मूल भित्ति कहा है। और है भी समय में है। वस्तुएं क्षेत्र में हैं, घटनाएं समय में हैं। अगर अभय धर्म कि मूल भित्ति। क्योंकि संसार को तो गंवाना है और तुम्हारा किसी से प्रेम हो जाये और कोई पूछे कहां है प्रेम, तो तुम कुछ ऐसी खोज करनी है जिसका हमें अभी पता भी नहीं। यह क्या कहोगे? तुम कहोगे, प्रेम घटना है, वस्तु नहीं। जब तुम साहस के बिना कैसे होगा? जो सामने दिखाई पड़ता है उसे तो | कहते हो, प्रेम घटना है, तो तुम यह कह रहे हो कि समय में है, छोड़ना है और जो कभी दिखाई नहीं पड़ता, सदा अदृश्य है, स्थान में नहीं। इसलिए हम यह न बता सकेंगे, कहां है। हम अदृश्यों की गहरी पर्तों में छिपा है, रहस्यों की पर्तों में छिपा इतना ही कह सकते हैं, कब घटा। 'कहां' से कोई संबंध भी है-उसे खोजना है। | नहीं है--कब, किस घड़ी में, किस मुहूर्त में! समझदार कहता है, हाथ की आधी भी भली। दूर की पूरी रोटी समय को गंवा सकते हैं हम क्षुद्र को इकट्ठा करने में। क्षुद्र से हाथ की आधी रोटी भली! तो समझदार तो कहता है, जो है सामने है और जो विराट है वह छिपा है। इस क्षुद्र को इकट्ठा उसे भोग लो। चाहे उसमें कुछ भी न हो; लेकिन इसे दांव पर कर-करके भी तो कुछ पाया नहीं जाता। इसलिए महावीर कहते मत लगाओ, क्योंकि कौन जानता है, जिसके लिए तुम दांव पर हैं, इसे दांव पर लगा दो। यह कचरा ही है; इसको दांव पर लगा रहे हो वह है भी या नहीं! जिस सत्य की, जिस आत्मा की, लगाने में कुछ खो नहीं रहे हो। और जो समय बच जायेगा, जो जिस परमात्मा की खोज पर निकलते हो—किसने देखा? शुद्ध समय बच जायेगा, जिसको तुमने संसार में नहीं गंवाया, इसलिए चार्वाक कहते हैं, 'ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत।' पी लो घी वही शुद्ध समय ध्यान बनता है। ऋण लेकर भी सामने तो है! किस स्वर्ग के लिए छोड़ते हो? संसार में न गंवाया गया समय ध्यान है। संसार की ऋण न भी चुके तो फिक्र मत करो। लेकिन जो सामने है, उसे व्यस्तताओं में कलुषित न किया गया समय ध्यान है। भोग लो। इसलिए महावीर के लिए ध्यान के लिए जो शब्द है वह है: धर्म का पहला कदम तब उठता है, जब तुम देखते हो जो 'सामायिक'। वह 'समय' से बना है। सामने है वह भोगने योग्य ही नहीं। भोगा तो, न भोगा तो सब महावीर बड़े वैज्ञानिक हैं, उनकी शब्दावली में। बराबर है। इसे भोग भी लिया तो क्या भोगा? इसे पाकर भी | जो समय संसार में नहीं लगा है, वही 'सामायिक'। क्या मिलेगा? हां, इसे पाने में, इसे भोगने में जो समय गया वह महावीर के पास परमात्मा तो है नहीं कि कह दें कि परमात्मा में जीवन की संपदा गई। जो समय लगा है, वह ध्यान। नहीं, जो संसार में नहीं लगा, जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org